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sushma Nayyar
अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही चंद शब्दों और अल्फाजों में मैं सारा जीवन बांच रही सांसों के नैन कटोरे में, मै तिनका तिनका डाल रही जीवट है जिजीविषा जहां, मै वहीं से रास्ता लांघ रही काजल टीका नैनो से ले, मैं नजर दोष को बांध रही न नदी समंदर ताल जहां, है मुझको जल की आस वहीं बिन पिए ही जो बुझ जाए ,इतनी हल्की मेरी प्यास नहीं हैं अंतर्द्वंद तो रहने दो,मेरे मन के भीतर आस बड़ी जीवट है मन जीवट है तन ,मैं हार जीत के पार खड़ी अंतर्द्वंद ही अंतर्द्वंद मैं उनके भीतर आन खड़ी मैं अंतर द्वंद्व आे की गठरी में अपने मन को बांध रही ।। _____सुषमा नैय्यर अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही जहां
sushma Nayyar
Manmohan Dheer
सामने घर से खुशबू आती है पेट हमारे गुड़गुड़ाने लगते हैं मैं बेवजह उन्हें मुस्कुरा देता हूँ थोड़ी देर में कटोरे आने लगते हैं ऐसा रोज नही, कभी ही होता है कभी उनके भी पेट गुड़गुड़ाते हैं वो भी हमें देख तब मुस्कुराते हैं . धीर कटोरे
Pravesh Khare Akash
चाँदी के कटोरे में.. चाँदी के कटोरे में सजा रखा है क्या, चाँद तारे..... नहीं कुछ नहीं, हीरे जवाहरात मोती, नहीं वो भी नहीं! देखो,मत छुओ ये पिघल जायेगा जो यादों से है संजोया हुआ.... देखो,कितना है ये सहमा हुआ बुलबुले हैं इसमें हाँ...ख्वाबों के! हैं देखे चेहरे कई बदलती हवाओं के, नहीं.....नहीं मत छुओ ये फिसल जायेगा.... डरता है दिल ये इसे ले न जाये, कहीं वक्त की हसीं परी बिन बताये बिन कहे सोचते हुये.... चाँदी के कटोरे में सजा रखा है क्या....। चाँदी के कटोरे में...
लेखक ओझा
कटोरे में पड़ोसी कटोरे में कब से पड़ा था पड़ोसी फिर भी कुछ गुण गाते थे खा के दवा बेहोसी। अच्छे लगते हो गुहार लगाते हुए कितने सांसों की डोर तुमने भी तो तोड़ी है आतंकवाद के आंकाओ तुमने किसको छोड़ी है। जन्नत के नाम पर मासूमों का गला घोटा है अब वो क्या बयां करे जिन्हे तुमने 72 हूरो के नाम पर लूटा है। हमने तो सबको गले लगाया है प्रेम की भाषा में समझाया है और भूखे पेट दुश्मन को भी भरपेट भोजन कराया है। वक्त की पुकार सुनो रार छोड़ो अब मानवता की बात करो आंतकियो को छुपाए बैठे हो उन्हे अब सरेआम करो। मानता हूं कुछ देर के लिए मैला होगा आंचल लेकिन फिर से एक नया सबेरा होगा नहीं तो पड़ोसी अभी और तेरा गर्क बेड़ा होगा ।। ।।लेखक ओझा।। ©लेखक ओझा कटोरे में पड़ोसी #poem
दीक्षा गुणवंत
वो नैन-नैन की बात प्रिये, जो लफ़्ज़ों की मौहताज नहीं। तुम दूर हुए चाहे जितने, है दिल में अभी भी प्यार वही। - लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" नैन
BSagar
अगर अल्फाज से सब कुछ हो सकता तो नैनाे का मोल क्या लबों के बोल से धड़कन का शोर क्या हर रिश्ते को न तोलो दौलत से क्योंकि दिल के रिश्ते का मोल नही होता ©NSagar नैन
Adbhut Alfaz
जब से होने लगे चार उनसे नयन.. तब से पढ़ने लगे प्रीत का व्याकरण.. फिर तो गाते रहे गुनगुनाते रहे, नैन अधरों से हम प्रीत वाले भजन.. नैन से नैन का यूँ मिलन हो गया, और होने लगा नेह का आगमन.. हो गए सच सभी स्वप्न अपने प्रिये, नैन बूंँदों से होने लगा आचमन.. ©चीनू शर्मा "अद्भुत"® #नैन