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N S Yadav GoldMine
White गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं- ध्यानहेयास्तद् वृत्तयः॥ (पातञ्जलयोगदर्शन २: ११) {Bolo Ji Radhey Radhey} तो सूक्ष्ममय जो वृत्तियाँ हैं पहले सेती वो ध्यान करके हैं, ध्यान करके त्याग, माने ध्यान के प्रभाव से सूक्ष्म वृत्तियां भी खत्म हो जाती हैं एक प्रकार से, तो ध्यान की सभी कोई महिमा गाते हैं। सभी शास्त्र अर गीता का तो विशेष लक्ष्य है, गीता का जोर तो भगवान् के नाम के जप के ऊपर इतना नहीं है, कि जितना भगवान् के स्वरूप के चिंतन के ऊपर है, स्मरणके ऊपर है, स्मरण की जो आगे की अवस्था हैं वो ही चिंतन है और चिंतन की और अवस्था जब बढ़ जाती है, तो चिंतन ही ध्यान बन जाता है। भगवान् के स्वरूप की जो यादगिरी है उसका नाम स्मरण है, अर उसका जो एक प्रकारसे मनसेती स्वरूप पकड़े रहता है, उसकी आकृति भूलते नहीं हैं, वह होता है चिंतन, अर वह ऐसा हो जाता है कि अपने आपका बाहरका उसका ज्ञान ही नहीं रवे एकतानता ध्यानं, एक तार समझो कि उस तरह का ध्यान निरंतर बण्या रवे, वह है सो ध्यान का स्वरूप है, तो परमात्मा का जो ध्यान है वह तो बहुत ही उत्तम है। तो परमात्माकी प्राप्ति तो ध्यानसे शास्त्रों में बतलायी है। किंतु अपने को परमात्मा का ध्यान इसलिये करना है, कि ध्यान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। जितने जो साधन हैं वह साधन के लिये हैं, और ध्यान है जो परमात्मा के लिये है किंतु हम एक प्रकार से ध्यान तो करें, और परमात्मा को नहीं बुलावें तो परमात्मा समझो कि अपने आप ही वहाँ आते हैं। सुतीक्ष्ण जो है भगवान् से मिलने के लिये जा रहा है, तो उसका ध्यान अपने आप ही हो गया, ऐसा ध्यान लग गया कि फिर भगवान् आकर उसका ध्यान तोड़ना चावे तो भी नहीं टूटता है तो भगवान् कितने खुश हो गये उसके ध्यान को देखकर, उसके ध्यान को देख करके भगवान् है सो मुग्ध हो गये। बोल्या यदि ध्यान न हो तो, ध्यान न हो तो भगवान् के केवल नाम का जप ही करना चाहिये, भगवान् के नामके जप से, भगवान् के भजन सेती ही समझो कि परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि भगवान् के नाम का जप करने से भगवान् में प्रेम होता है, अर भगवान् के मायँ प्रेम होने से समझो कि भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। इसलिये नाम के जप से भी परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है, नाम के जप से सारे पापों का नाश हो जाता है, नाम के जप से परमात्माके स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, नाम के जपसे भगवान् उसके वश में हो जाते हैं, नाम के जपसे उसकी आत्मा का उद्धार हो जाता है। तो सारी बात नाम के जप से हो जाती है, तो इसलिये समझो कि यदि ध्यान न लगे, तो भगवान् के नाम का निरंतर जप ही करना चाहिये। सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखे। सुमरिअ नाम रूप बिनु देखे। होत हृदयँ सनेह विसेषें। होत हृदयँ सनेह विसेषें । भगवान् के नाम का सुमरन करना चाहिये, ध्यान के बिना भी तो भगवान् के वहां विशेष प्रेम हो जाता है, प्रेम होने से भगवान् मिल जाते हैं। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ हरि सब जगहमें सम भावसे विराजमान हैं और वे प्रेम से प्रकट होते हैं, शिवजी कहते हैं इस बात को मैं जानता हूँ। ©N S Yadav GoldMine #mothers_day गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि क
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१*मिलन*हर्ष *जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के सन्नाटे, मेरी हयात में आजा महरबा की तरह/२ *घोर अन्धकार *शाश्वत मेरे फ़सानो के किस्से बहुत रसीले है,के लोग पूछते रहते है,लापता की तरह//३ ये*वहश्तो के तकाजे यहीं पे रहने दो,क्यूं पूछते हो मिरा हाल राजदां की तरह//४ कई दफा तेरे*हुजरे से होके गुजरें है,तेरे दीदार में *खांबिदा की तरह//५ *इबादतगाह *निद्रालु दशा तुम्हारे साथ तो सेहरा में भी मेरे हमदम,ये खिंजा भी मुझे लगती है *गुलसिता की तरह/६ *पुष्पाच्छादित चमन तेरी मसर्रते*आराइयां कहाँ"अख्तर"हो*मयस्सरे विसाल*नौख़ेज़ दास्ता की तरह//७ *संवारने वाला *मिलन*उपलब्ध *नया उत्पन्न/नया नया #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Nojoto तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१ *मिलन*हर्ष*जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के स
N S Yadav GoldMine
White महाभारत: आश्रमवासिक पर्व एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्नी गान्धारी और बहू कुन्ती के साथ नृपश्रेष्ठ पृथ्वी पति धृतराष्ट्र वनवास के लिये चले गये, विदुर जी सिद्धि को प्राप्त होकर धर्मराज युधिष्ठिर के शरीर में प्रविष्ट हो गये और समस्त पाण्डव आश्रम मण्डल में निवास करने लगे, उस समय परम तेजस्वी व्यास जी ने जो यह कहा था कि मैं आश्चर्यजनक घटना प्रकट करूँगा वह किस प्रकार हुई? यह मुझे बतायें। अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले कुरूवंशी राजा युधिष्ठिर कितने दिनों तक सब लोगों के साथ वन में रहे थे? प्रभो। निष्पाप मुने। सैनिकों और अन्तःपुर की स्त्रियों के साथ वे महात्मा पाण्डव क्या आहार करके वहाँ निवास करते थे? वैशम्पायन जी ने कहा । कुरूराज धर्तराष्ट्र पाण्डवों को नाना प्रकार के अन्न-पान ग्रहण करने की आज्ञा दे दी थी, अतः वे वहाँ विश्राम पाकर सभी तरह के उत्तम भोजन करते थे। 📒 इसी बीच में जैसाकि मैनें तुम्हें बताया है, वहाँ व्यास जी का आगमन हुआ। राजन्। राजा धृतराष्ट्रके समीप व्यास जी के पीछे उन सब लोगों में जब उपयुक्त बातें होती रहीं, उसी समय वहाँ दूसरे-दूसरे मुनि भी आये। भारत। उन में नारद, पर्वत, महातपस्वी देवल, विश्वावसु, तुम्बरू तथा चित्रसेन भी थे। धृतराष्ट्र की आज्ञा से महातपस्वी कुरूराज युधिष्ठिर ने उन सब की भी यथोचित पूजा की। युधिष्ठिर से पूजा ग्रहण करके वे सब के सब मोरपंख के बने हुए पवित्र एवं श्रेष्ठ आसनों पर विराजमान हुए। कुरूश्रेष्ठ। उन सब के बैठ जाने पर पाण्डवों से घिरे हुए परम बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र बैठे। गान्धारी, कुन्ती, द्रौपदी, सुभद्रा तथा दूसरी स्त्रियाँ अन्य स्त्रियों के साथ आस -पास ही एक साथ बैठ गयीं। नरेश्वर। उस समय उन लोगों में धर्म से सम्बन्ध रखने वाली दिव्य कथाएँ होने लगीं। प्राचीन ऋषियों तथा देवताओं और असुरों से सम्बन्ध रखने वाली चर्चाएँ छिड़ गयीं। 📒 बातचीत के अन्त में सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं और वक्ताओं में श्रेष्ठ महातेजस्वी महर्षि व्यास जी ने प्रसन्न होकर प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र से पुन: वही बात कही। राजेन्द्र। तुम्हारे हृदय में जो कहने की इच्छा हो रही है, उसे मैं जानता हूँ। तुम निरन्तर अपने मरे हुए पुत्रों के शोक से जलते रहते हो। महाराजा। गान्धारी, कुन्ती और द्रौपदी के हृदय में भी जो दुःख सदा बना रहता है, वह भी मुझे ज्ञात है। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु के मारे जाने का जो दुःसह दुःख हृदय में धारण करती है, वह भी मुझे अज्ञात नहीं है। कौरवनन्दन। नरेश्वर। वास्तव में तुम सब लोगों का यह समागम सुनकर तुम्हारे मानसिक संदेहों का निवारण करने के लिये मैं यहाँ आया हूँ। ये देवता, गन्धर्व और महर्षि सब लोग आज मेरी चिरसंचित तपस्या का प्रभाव देखें।l ©N S Yadav GoldMine #love_shayari महाभारत: आश्रमवासिक पर्व एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्
Yogi Sonu
Holi is a popular and significant Hindu festival celebrated as the Festival of Colours, Love, and Spring. महर्षि पतंजलि कहते है सुख न मांगो तो कोई दुःख भी नही देता अपेक्षा ही छोड़ दो मांग कि बस दो और मांगो ही मत ।। ©Yogi Sonu महर्षि पतंजलि कहते है सुख न मांगो तो कोई दुःख भी नही देता अपेक्षा ही छोड़ दो मांग कि बस दो और मांगो ही मत ।। #yogisonu #Holi
N S Yadav GoldMine
भगवान राम को विष्णु के सबसे महत्वपूर्ण अवतारों में से एक माना जाता है:- जानिए और रोचक कथा !! 🌱🌱{Bolo Ji Radhey Radhey} मर्यादा पुरुषोत्तम राम:- 🌌 भगवान राम या श्री रामचंद्र भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। वह हिंदू महाकाव्य रामायण के मुख्य पात्र हैं, जिन्होंने लंकापति रावण का वध किया था और उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। राम हिंदू धर्म के कई देवताओं में से एक हैं और विशेष रूप से वैष्णव धर्म के लोग राम की को ही परमेश्वर मानते हैं। उनके जीवन पर आधारित धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया की कई संस्कृतियों में एक प्रारंभिक घटक रहे हैं। कृष्ण के साथ, राम को विष्णु के सबसे महत्वपूर्ण अवतारों में से एक माना जाता है। श्रीराम का जन्म कथा:- 🌌 राजा दशरथ की 3 पत्नियाँ थीं, कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। अपनी तीनों पत्नियों से संतान पाने में असफल रहने के बाद, उन्होंने पुत्रकामेष्टि यज्ञ (पुत्रों को जन्म देने के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान) किया। इससे, अनुष्ठान के अंत में खीर का एक बर्तन प्राप्त किया गया था। कहा जाता है कि कौशल्या ने इसे एक बार लिया और राम को जन्म दिया, कैकेयी ने एक बार भरत को जन्म दिया और सुमित्रा ने इसे दो बार लिया और इसलिए उन्होंने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। इसी से अयोध्या के राजकुमारों का जन्म हुआ। भगवान राम की एक बड़ी बहन, शांता, दशरथ और कौशल्या की बेटी थी। जय श्री राम जी:- मर्यादा पुरुषोत्तम राम की पत्नी और पुत्र:- 🌌 हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन भगवान राम का विवाह सीता से हुआ था। भगवान राम और उनकी पत्नी सीता के दो जुड़वां बेटे लव और कुश थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम की मृत्यु के बाद, यह उनके बड़े बेटे कुश थे, जिसे नया राजा बनाया गया था। श्राम के नाम का मतलब:- 🌌 कहा जाता है कि भगवान राम का नाम रघु वंश के गुरु वशिष्ठ महर्षि द्वारा दिया गया था। उनके नाम का एक महत्वपूर्ण अर्थ था, क्योंकि यह दो बीज अक्षरों से बना था - अग्नि बीज (रा) और अमृत बीज (मा)। जबकि अग्नि बीज ने उनकी आत्मा और शरीर को महत्वपूर्ण बनाने के लिए सेवा की और अमृत बीज ने उनको सारी थकान से उबार दिया। 🌌 पुराणों में लिखा है कि दुष्ट रावण को हराने के बाद, राम ने अपने राज्य अयोध्या पर 11,000 वर्षों तक पूर्ण शांति और समृद्धि का शासन किया। 🌌 कहा जाता है कि एक बच्चे के रूप में, भगवान राम ने एक बार अपने खिलौने को चंचलता से फेंक दिया और इसने मन्थरा की पीठ पर चोट की। मंथरा ने कैकेयी के माध्यम से अपना बदला लिया और भगवान राम को 14 साल के वनवास पर भेज दिया। मृत्यु के समय हनुमान को भेज दिया था नागलोक:- 🌌 कहा जाता है कि श्रीराम ने मृत्यु के वक्त हनुमान को अलग करने के लिए अपनी अंगूठी को फर्श में आई दरार में डाल दिया था और हनुमान जी से उसे लाने के लिए कहा था। जब हनुमान नीचे गए तो वह नागों की भूमि में पहुंच गए और राजा वासुकी से राम की अंगूठी मांगी। राजा ने उन्हें एक अंगूठियों के विशाल पहाड़ को दिखाते हुए कहा कि वह अंगूठी ढूंढ लें। जब बजरंगबली ने पहली अंगूठी उठाई वह भी श्री राम की थी और बाकी सभी श्रीराम की ही थी। तब राजा वासुकी ने उन्हें समझाया कि जो भी पृथ्वीलोक पर आता है उसे एक दिन सबकुछ छोड़कर जाना ही पड़ता है। भगवान विष्णु के 1000 नामों में से 394वां नाम है:- राम. 🌌 भगवान राम का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था, जिसकी स्थापना भगवान सूर्य के पुत्र राजा इक्ष्वाकु ने की थी। इसीलिए भगवान राम को सूर्यवंशी भी कहा जाता है। विष्णु सहस्रनाम नामक पुस्तक में भगवान विष्णु के एक हजार नामों को सूचीबद्ध किया गया है। इस सूची के अनुसार, राम भगवान विष्णु का 394 वां नाम है। 14 साल तक नहीं सोए थे लक्ष्मण:- 🌌 कहा जाता है कि राम और सीता की रक्षा के लिए, लक्ष्मण को 14 साल तक नींद नहीं आई! यही कारण है कि, वह गुदाकेश के रूप में जाने जाते हैं, जो कि नींद को हराने वाला व्यक्ति था। इसके बजाय, लक्ष्मण की पत्नी, उर्मिला जो अयोध्या में थी, 14 साल तक सोती रही, क्योंकि उन्होंने अपनी और लक्ष्मण के हिस्से की नींद को पूरा किया था। उर्मिला रामायण की कहानी में एक कम ज्ञात चरित्र थी। लंकापति रावण को मिला था श्राप:- 🌌 पौराणिक मान्यतानुसार, भगवान शिव के द्वारपाल नंदी ने रावण को एक बार भगवान शिव से मिलने से रोक दिया। रावण ने नंदी के प्रकट होने का मजाक उड़ाया और इससे नंदी नाराज हो गए। फिर उन्होंने रावण के राज्य को शाप दिया, लंका को बंदरों द्वारा नष्ट कर दिया जाएगा। यह शाप तब सच हुआ जब हनुमान ने लंका को जलाया। युद्ध जीतने के लिए रावण ने किया था यज्ञ:-🌌 कहा जाता है कि लंकापति रावण ने युद्ध जीतने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। तब राम जी ने बाली के पुत्र अंगद की मदद मांगी और लंका में अराजकता पैदा करने की मांग की। लेकिन रावण तब भी टस से मस नहीं हुआ और यज्ञ करता रहा। फिर अंगद ने रावण की पत्नी मंदोदरी के बाल खींचने शुरु किए ताकि रावण यज्ञ से उठ जाए और यज्ञ अधूरा रह जाए। शुरुआत में रावण स्थिर रहा लेकिन जब मंदोदरी ने उससे मदद की गुहार लगाई तो उसे यज्ञ छोड़ दिया। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #Holi भगवान राम को विष्णु के सबसे महत्वपूर्ण अवतारों में से एक माना जाता है:- जानिए और रोचक कथा !! 🌱🌱{Bolo Ji Radhey Radhey} मर्यादा पुरुषोत
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Life Like दोहा:- बोलो सीता राम सब , बोलो राधेश्याम । यही जगत में सत्य है , भज ले प्यारे नाम ।। बाला जी महराज की , कृपा रहे दिन रात । अब तो उनके भक्त की , बढ़ जाये तादात ।। क्यों लड़ते हो आप अब , लव नगरी लाहौर । लेने दो हमको शरण , वो भी अपना ठौर ।। धाम अयोध्या पास में , बसा लखन पुर देख । जन-जन जपकर राम जी , बदले अपनी रेख ।। चलिये खाटूश्याम जी , जपिये राधे नाम । वही मिलेंगे आपको , अपने राधेश्याम ।। बागेश्वर के धाम में , हो प्रभु की जयकार । सत्य सनातन धर्म के , शास्त्री जी अवतार ।। काया से मत मोह कर , समझ इसे गोदाम । इसके अन्दर ही छिपे , है तेरे श्री राम ।। प्रेमा जी महराज का , सुनता नित सत्संग । जिनसे जीवन में खिला , मेरे भगवत रंग ।। तुझमें मुझमें राम हैं , मत कर ऐसे बैर । चल भगवन से माँगतें , इक दूजे की खैर ।। त्रिकुटा पर्वत पे वहाँ , माता बैठी देख । दर्शन करके हम चलो , बदले अपनी रेख ।। जय कारे महादेव के , करते रहिये आप मिट जायेंगे एक दिन ,जीवन के संताप ।। २१/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा:- बोलो सीता राम सब , बोलो राधेश्याम । यही जगत में सत्य है , भज ले प्यारे नाम ।। बाला जी महराज की , कृपा रहे दिन रात । अब तो उनके भक्त क
Ravendra