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Shree
ख़ामोशी खामखां गाती है, लय, सुर, ताल अबोले इसके निरी बदहवास बहती है, अस्तित्व को झंक-झोड़ती है जहरीले डंक सी दुखती है। ख़ामोशी खुद को खाती है, बेतरतीब बेवक्त आती है, शब्दों के झंझावात लेकर तूफान पूर्व जैसी चिरनिंद्रा अखंड ठहराव लाती है। ख़ामोशी खामोश होती हैं खामोशी जितनी स्थिर होती है उतना ही उद्विग्न करती है लहर सी आती है और प्रहर सी बीत जाती है। Thank you Bhai for the beautiful topic 😊🙋♀️ For better read: ख़ामोशी खामखां गाती है, लय, सुर, ताल अबोले इसके निरी बदहवास बहती है, अस्तित्
Dr Jayanti Pandey
तुम्हारे चमकते सितारों के निगेहबान बहुत मिल जाएंगे जो अंधियारों में साथ दें,ऐसे अज़ीज़ मुश्किल से पाएंगे एक संवेदनशील मन लेकर ,तुम जो खुलूस मेें निकले हो; निरी ओस सी कैफियत लेकर,सुनो तुम धूप में निकले हो वक्त ही सिकंदर इस जहां में,उसी से है आपकी हैसियत वक्त के बिगड़ते ही,साये की भी बदल सकती है फितरत अपने उजाले ही उजागर करो , अंधेरे भीतर ही रहने दो ठहाके लगाओ जमाने के सामने,आंसू अकेले में बहने दो तुम्हारे सपने अगर तुम्हारी नींद के मोहताज नहीं हैं; मंजिल शर्तिया मिल जाएगी तुम्हें,ये कोई राज़ नहीं है तुम्हारे चमकते सितारों के निगेहबान बहुत मिल जाएंगे जो अंधियारों में साथ दें,ऐसे अज़ीज़ मुश्किल से पाएंगे एक संवेदनशील मन लेकर ,तुम जो खुलूस
Jai Singh
मैं चश्माधारी, तुम खुर्दबीन तुम ये खुर्राट मैं दीन हीन मैं भौतिक चीज़ें भी मिस कर दूं तुम सोंच परख लो बीन बीन बाथरूम की लाइट ऑफ फ़्रिज का दरवाजा बंद पंखा बंद, लाइट बंद AC बंद के नारों से प्रिये कर डाला जीवन क्षीण क्षीण मैं भौतिक चीज़ें भी मिस कर दूं तुम सोंच परख लो बीन बीन यहां का कूड़ा वहां का कूड़ा यहां की सामान वहां पड़ा है जूता क्यों तिरछा रखा है इतनी तीखी नज़र लिए प्रिये बड़ी कड़क है ये निगाहबीन मैं भौतिक चीज़ें भी मिस कर दूं तुम सोंच परख लो बीन बीन मैं चश्माधारी, तुम खुर्दबीन तुम ये खुर्राट मैं दीन हीन मैं भौतिक चीज़ें भी मिस कर दूं तुम सोंच परख लो बीन बीन बाथरूम की लाइट ऑफ
Jai Singh
Part 2. complete poem in caption मैं चश्माधारी, तुम खुर्दबीन तुम ये खुर्राट मैं दीन हीन चश्मा यहां क्यों, ये कलम गिरी है तुम्हारी जेब मे बीड़ी मिली है तुम आड़ा तिरछा क्यों बैठे हो गेस्ट आये हैं मुँह तो धो लो कितनी कर्मठ तुम, मैं कर्महीन मैं चश्माधारी, तुम खुर्दबीन तुम ये खुर्राट मैं दीन हीन मायके से कोई आ जाये तो ऊपर से तो मीठा मीठा चुपके से पर ठूंस ठूंस कर कोटा चौगुना कर देते प्रिये तुम निरी गाय, मैं ही कमीन मैं चश्माधारी, तुम खुर्दबीन तुम ये खुर्राट मैं दीन हीन अब आदत पड़ गयी है जीवन वीरान से लगने लगता जब नही होती तुम पास प्रिये तब सब कर लेता हूँ एकदम परफेक्ट कब क्या डांटोगी किस बात पर मन मे रीप्ले कर देता मैं गिन गिन मैं चश्माधारी, तुम खुर्दबीन तुम ये खुर्राट मैं दीन हीन Complete poem मैं चश्माधारी, तुम खुर्दबीन तुम ये खुर्राट मैं दीन हीन मैं भौतिक चीज़ें भी मिस कर दूं तुम सोंच परख लो बीन बीन