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Abhishek Kashyap

सियासत बहुत आती है हमको लेकिन कभी शायरी में सियासत नहीं की । @ ज्ञानेश कुमार नापित

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सियासत बहुत आती है हमको लेकिन
कभी शायरी में सियासत नहीं की ।
@ ज्ञानेश कुमार नापित सियासत बहुत आती है हमको लेकिन
कभी शायरी में सियासत नहीं की ।
@ ज्ञानेश कुमार नापित

Abhishek Kashyap

गये छोड़ वालिद तो हमनें ये जाना वो दौलत थे हमनें हिफाज़त नहीं की । @ज्ञानेश कुमार नापित#शायरीसिसायत

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गये छोड़ वालिद तो हमनें ये जाना 
वो दौलत थे हमनें हिफाज़त नहीं की ।
@ज्ञानेश कुमार नापित गये छोड़ वालिद तो हमनें ये जाना 
वो दौलत थे हमनें हिफाज़त नहीं की ।
@ज्ञानेश कुमार नापित#शायरी#सिसायत

Gyaneshwar Anand

कविता "धिक्कार है उन बेटों को" कठोर हृदय बनते जा रहे हैं, इस भारत माँ की भूमि पर। सरवन से लाल भी पैदा हुए, इस भारत मां की भूमि पर।

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कविता  "धिक्कार है उन बेटों को"

कठोर हृदय बनते जा रहे हैं,
इस भारत माँ की भूमि पर।

सरवन से लाल भी पैदा हुए,
इस भारत मां की भूमि पर।

धिक्कार है ऐसे बेटों को,
जो मां बाप की सेवा,कर ना सके।

धिक्कार है उन बेटों को,
जो मां-बाप की संपत्ति हड़प गए।

कितने वृद्धा आश्रम भारत में,
भी देखो कैसे हैं खड़े हुए।

धिक्कार है उन बेटों को,
जिनके माता-पिता वहां पड़े हुए।

इतने ऊंचे उड़ रहे हैं जो,
आकाश को छूना चाहते हैं।

वो क्या जाने ऐसे बेटे,
सबकी नज़रों से गिर जाते हैं।

मां बाप को दुख देकर वो,
धरती पर कलंक बन जाते हैं।

कितने स्वार्थी बनते हैं,
यह लोग यहां इस धरती पर।

इतना धन इकट्ठा करके भी,
मां बाप को टुकड़ा दे न सके।

धिक्कार है ऐसे बेटों को,
जो मां बाप की सेवा कर न सके।

यह जानते हुए भी के सब कुछ,
छोड़ के यहां से जाना है।

संसार में सब कुछ देखकर भी,
कर्मों से बना अनजाना है।

फिर भी अत्याचार करे वो,
कैसी यह धर्म की मर्यादा है।

"ज्ञानेश" इस निर्मम रीति से,
बढ़ रहा क्रोध कुछ ज्यादा है।
     रचनाकार
ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश"
राजस्व एवं कर निरीक्षक
किरतपुर (बिजनौर)
सम्पर्क सूत्र 9719677533
Email id-gyaneshwar533@gmail.com

©Gyaneshwar Anand कविता  "धिक्कार है उन बेटों को"

कठोर हृदय बनते जा रहे हैं,
इस भारत माँ की भूमि पर।

सरवन से लाल भी पैदा हुए,
इस भारत मां की भूमि पर।

Gyanesh Tiwari KAVI

चेहरे बदल-बदल कर मैं भी, मतलब साध रहा होता। मन में भाव नहीं होते तो, स्वारत गांठ रहा होता। मैं भी मक्खन पॉलिश करके, रिश्ते नाप रहा होता। किस

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चेहरे बदल-बदल कर मैं भी,
मतलब साध रहा होता।
मन में भाव नहीं होते तो,
स्वारत गांठ रहा होता।
मैं भी मक्खन पॉलिश करके,
रिश्ते नाप रहा होता।
किस

Gyanesh Tiwari KAVI

आजकल के आदमी में, जहर इतना भर गया है। विषधरों का वंश सारा, डर गया है। इस गली में उस गली में, #कविता #nojotophoto

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 आजकल के आदमी में,
              जहर इतना भर गया है।
विषधरों का वंश सारा,
              डर          गया          है।
इस गली में उस गली में,

Gyanesh Tiwari KAVI

Follow my thoughts on the YourQuote app at https://छुक-छुक करते जीवन की, गाड़ी दौड़ी जाती है। बिना ब्रेक के बिना

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Follow my thoughts on the YourQuote app at https://छुक-छुक करते जीवन की,
                     गाड़ी  दौड़ी  जाती  है।
बिना  ब्रेक  के   बिना

Gyanesh Tiwari KAVI

सभ्यता नाच रही है नंगी। संस्कृति उड़ती जाए पतंग सी। समय की बलिहारी है। भद्र की लाचारी है। मती हुई भ्रष्ट हमारी मां की ममता ख्वारी। बिलखती है

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सभ्यता नाच रही है नंगी।
संस्कृति उड़ती जाए पतंग सी।
समय की बलिहारी है।
भद्र की लाचारी है।
मती हुई भ्रष्ट हमारी
मां की ममता ख्वारी।
बिलखती है
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