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RAVAN
न मुझे लिखने का सलिका आता न मेरे शव्दो को बड़ा बनने का तरीका आता फिर भी हर दफ़ा मेरा लेख गुलजार के लेख से क्यू आका जाता 🤔 #शव्दो की #नुमाईश करने वाले लेखक ही होते हे ........
Sachin Ratnaparkhe
"खाली पन्ने" जैसे कुछ कहना चाह रहे हो, कि हमें भी खालीपन अच्छा नहीं लगता, ठीक उसी तरह जिस तरह तुम्हें अकेलापन, आखिर हमें भी तो प्यार है, इश्क है, शब्दों से भरी हुई शायरी किस्से कहानियों से, रंगों से भरी हुई तस्वीरें चित्रों से, चित्रकारों से, कलम से रेखांकित स्याही और उसकी महक से, लेखनी करते एवं उसे पढ़ते हुए लेखक पाठक से, बस यही तो है हम खाली पन्नों की दुनिया, और जो हमारी पीड़ा को, खालीपन को, महसूस कर सकता है, पुकार हमारी सुन सकता है, शब्दों से चित्रों से रंगो से हमको भर सकता है, वही तो है हमारे सच्चे दोस्त यानी कि "लेखक एवं चित्रकार" "खाली पन्ने"... और उसे भरने वाले "लेखक एवं चित्रकार"...
Sabir Khan
#OpenPoetry लिखने वाला चाहे जैसा भी हो, उसके लेख को पढ़ें-भाव को पढ़ें, उसकी लेखनी की प्रशंसा करें। आपकी प्रशंसा में वो सामर्थ्य है जो कि लेखक का जीवन बदलने के लिये काफ़ी है। .....भावार्थ यह है कि किसी की निजी जिंदगी पर टिप्पणी न करते हुए उसके अच्छे कार्य की प्रशंसा करें, उसका जीवन परिवर्तन निश्चित है। लेखक
Shikha Dubey
लेखक अपने भीतर उमड़े शैलाबों में डूब कर उभरता है तब जा कर वो कुछ लिख पाता है देर तलक वो खुद से लड़ता है तब जा कर वो एक मुकाम पाता है कालिख (स्याही) से कुछ लिखता है तब कहीं जा कर इतिहास पन्नों पर छपता है शब्दों से संग्राम में कुछ चुन कर लाता है तब जा कर उन्हें ,कुछ तहजीब , कुछ तरीके से कतार में लगाता है फिर कतार में लगे शब्दों को पन्नों पर बिठाता है तब कहीं जा कर वो लोगों के दिलों को छू पाता है लेखक
Sabir Khan
#Pehlealfaaz लिखने वाले समाज के रचयिता हैं, समाज लिखने वालों से ही चलता है। अब लिखने वाले ही स्वयं सोच लें कि उनको समाज कैसा बनाना है। लेखक
Vinit Kumar
लेखक अच्छे शब्द इस्तेमाल करने से नहीं बनते बल्कि बनते है समाज की बुर्राईओं के खिलाफ आवाज उठाकर बनते हैं और जब दिल के मरीज खुद को लेखक कहते हैं तो लगता है कौन नाराज हैं समाज से लेखनी,कागज़ या ईश्वर। #लेखक
Andy Mann
लेखक दुनियां का सबसे असफ़ल व्यक्ति होता है .जो जिंदगियाँ वो जी नहीं पाता उन्हें तरह तरह के किरदारों में जीवित करता है .. ©Andy Mann #लेखक
Gurudeen Verma
शीर्षक- और तो क्या ? --------------------------------------------------------- खास तुम भी होते साथ में, या फिर मैं होता तुम्हारे साथ में, और तो क्या ? यह खुशी दुगनी नहीं होती। ये दिन सुकून से गुजर जाते, मगर इस शक की दीवार को तो, तोड़ना ही नहीं चाहता कोई भी, और अपने अहम को भी, छोड़ना ही नहीं चाहता कोई भी। और तो क्या ? लोगों नहीं मिल जाता अवसर, कहानियां नई गढ़ने का, वहम को और बढ़ाने को, लेकिन इसमें हार तो, हम दोनों की ही होती, लेकिन मुझको बिल्कुल भी नहीं है, मेरे हारने का कोई गम। मुझको रहती है हमेशा यही चिन्ता, मैं तुमको खोना नहीं चाहता हूँ , भगवान को तो मैं मानता नहीं हूँ , फिर भी मिल जाये कुछ खुशी, आत्मा को निश्चिंत रखने के लिए, जला रहा हूँ मैं अकेले ही दीपक, और मना रहा हूँ मैं अकेले ही दीपावली, और तो क्या ? हंस लेता मैं भी--------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #लेखक