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गीत लिखे हैं मैंने मन के गीत लिखे हैं मैंने मन के, भावों के सुंदर उपवन के। जहां खिले हैं पुष्प हजारों, महकते हैं वन चंदन के। गीत लिखे हैं मैंने मन के कलमकार वाणी साधक, शब्द सुरीले मोती चुनता। ओज बने हुंकार लेखनी, देशभक्ति के स्वर बुनता। शब्द शिल्प सृजन सारथी, दीप जलाता जन मन में। उजियारा आलोक भरें, घट-घट चंचल चितवन में। गीत लिखे हैं मैंने मन के स्नेह सुधा रस बहती धारा, मोती बरसते प्यार के। अधरों पर मुस्कान मधुर सी, वीणा की झंकार से। गीत गजल दोहा चौपाई, पावन छंदों की फुहार से। मुक्तक मंद मंद मुस्कुराया, मृदु लेखनी की धार से। गीत लिखे हैं मैंने मन के आडंबर से दूर रहा नित ,सत्य का मार्ग अपनाया। शील सादगी समर्पण, किर्तिमान परवान चढ़ाया। राष्ट्रप्रेम में डूबा मनमौजी, गीत रचता मैं वतन के। गाओ मेरे देश प्रेमियों, बोल सुरीले अपने मन के। गीत लिखे हैं मैंने मन के ©Instagram id @kavi_neetesh #Path गीत लिखे हैं मैंने मन के गीत लिखे हैं मैंने मन के, भावों के सुंदर उपवन के। जहां खिले हैं पुष्प हजारों, महकते हैं वन चंदन के। गीत लिख
Vedantika
जब तुम होते हो मेरे निकट पुष्पित हो जाता है निर्जन वन विस्मृत हो जाता है संसार तुममे ही हो जाता हूँ मैं मग्न जब तुम होती हो, बेफिक्र रहता मैं, आबशार की तरह झरता रहता मैं। सुवासित मंजरी सी छुपाती मुझे, तेरे सर्वांग में अंतर्लीन हो रहता मैं। #अशोककुमा
संवेदिता "सायबा"
सोमराज मेघपूत
उम्मीदों की धुंध... ताउम्र ..... ©सोमराज मेघपूत ललिता - मंजरी....मोहित ....जिंदगी चंद्रवीर गर्ग आबदार
Vandana
प्रणाम दीदी सद्गुणों से सुसज्जित रोम-रोम पुलकित नयी कोंपलो की तरह नवजीवन हर्षित,,,,,,,,, आम के वृक्ष में आई नई नई मंजरी अनुपम निखार प्यार सत्कार असीम द
Vandana
प्रिय तुम्हें पत्र लिखती,,, प्रेम माधुरी कि है हृदय से पुकार प्राणों में भर उन्माद करुण झंकार,,, प्रिय तुम्हें पत्र लिखती बसंत के पुष्पों से सजा श्रृंगार,,, अनुराग से
Vandana
बसंत पंचमी आयी जीवन में बनकर नयी दुल्हन प्रेम बरसाती यौवन महकाती कई आभूषण और श्रृंगार में सुसज्जित होकर बिखरेती अपनी छटा,, कण कण में अपनी खुशबू से प्रकृति को अपने आगोश में लेती,, पीली सरसों के फूलों से गुनगुनाते उनके ऊपर भंवरों तक,, खिलती आम की मंजरी से सरस्वती की वीणा तक,, पत्तों को छूकर जाती नई कोपलों में जीवन भरती
Vandana
वो बरसात की भीगी शाम गई वो शरद ऋतु की धूप गई आम के पेड़ों से आती नई बसंत की बयार गई चेरी ब्लॉसम के पेड़ों से गिरती फूलों की पंखुड़ियां गई बीत गए दिन रैन मन बेचैन जबसे मिले तोसे नैन,,, बसंत के आने से खिलती है मन में मंजरी इत्र की सुगंध से महक जाती दोपहरी,,,,
Vandana
'हर एक बोल में संस्कार, सहज, सरलता, रस में भिगोए एक-एक शब्द मिठास की खुशबू,शालीनता की महकता, हिमालय से पश्चिम तक जोड़ता, यह हमारी मातृभाषा की महत्वता, 'हिंदू से हिंदी के,, 'कभी कविताओं अलंकारों छंदों से, खुद को महकाती,, 'कभी भारत के कोने कोने में, 'हर इंसान को एक इंसान से जोड़ने का माध्यम बन जाती,, 'चाहे बोली हो अनेक, पर हिंदी का ही रूप, 'यह हमारे हिंदुत्व की पहचान, 'अगर शिक्षित हो तो,, करें फिर हिंदी का ह्रदय से सम्मान,, 'मिल जाते हैं परदेस में बिछड़े अपने लोग, 'उन को जोड़ती है हिंदी की ही डोर,, 'अगर शास्त्रीय संगीत वीणा वादन यत्रों का लेना है,, मनोरंजन, 'हिंदी ही उनमें में प्राण फूंकती,, 'आज मैं हिंदी कहीं रह गई अधूरी सी,, 'अपने ही घर में चीथड़ों में लिपटी सी,, 'मान दिया था बड़े बड़े महानायक, महा कवियों ने,आज वह अधूरा सा रह गया,, पूरा कैप्शन में जरूर पढ़ें। अगर हिंदू होने में गर्व है । और हिंदी हमारी मातृभाषा है। तो हिंदी बोलने में तनिक भी शंका मत कीजिए। भले अंग्रे
Poonam Suyal
जबसे देखा तुझे, हम दीवाने से हो गए खुद का रहा ना होश अपनी सुध बुध हम खो गए अपना सब कुछ भुलाकर हम तो तेरे हो गए पर तू ना समझा हमें, करता रहा हमें नज़रंदाज हमारी तकलीफ़ का ज़रा ना हुआ तुझे अंदाज़ हमसे दूर होकर, हमारे प्यार का भी ना किया तूने लिहाज़ Hello Resties! ❤️ Day 20 of #RzPoDiMo brings to you- "Contrast Poem" You can attempt it in both Hindi and English and best ones will be fea