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Jai sawaliya seth
Vs. Gaming
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विजात छन्द :- हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।। हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।। भला सबका वही करता । सुनो विश्वास जग करता ।। बुलावे पे नही जाना । करे जो दिल चले जाना ।। हुआ हूँ आज दीवाना । उसी को आज सब माना ।। करूँ क्यूँ चाहतें आधा । जपूँगा नाम नित राधा ।। वही मुरली मनोहर है । उसी की सब धरोहर है ।। बनूँ मैं दास मोहन का । यही अरदास जीवन का ।। मुझे अपने शरण रखना । बुराई से बचा रखना ।। न कलयुग की पड़े छाया । शरण तेरी चला आया ।। सुनी तेरी कथा सारी , बहुत महिमा रही न्यारी ।। तुम्हारे द्वार जब आऊँ, दरश हर बार मैं पाऊँ ।। नजर जाये जिधर भी वह, रहे उजियार मधुवन वह ।। करूँ क्यों बन्द मैं फेरी , कृपा होगी कभी तेरी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विजात छन्द :- हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।। हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत:- डर नहीं इंसान तू अब साथ में हनुमान है । आज कलयुग में नहीं इनसे बड़ा भगवान है ।। डर नहीं इंसान तू अब .... जा झुका ले शीश उनको कष्ट सारे दूर हों । जब शरण उनकी ठिकाना क्यों यहाँ मजबूर हों ।। आस जिसने भी लगाई वो न खाली हाथ है । जो न माने आज इनको वो बड़ा नादान है ।। डर नहीं इंसान तू अब.... राम के ही भक्त है वह राम का ही नाम लें । राम के वह नाम बिन देखो न कोई काम लें ।। राम का तू जाप कर ले राम ही आधार हैं । राम का ही नाम सुनकर खुश सदा हनुमान है ।। डर नहीं इंसान तू अब.... काम इस संसार में कोई हुआ ऐसा नही । दूत दानव दैत्य जो सुन नाम हनु कांपा नही ।। व्यर्थ फिर चिंता तुम्हारी है सुनो संसार में । सब सफल ही काज होंगे जब कृपा हनुमान है ।। डर नहीं इंसान तू अब... जानते हैं लोग भोलेनाथ के अवतार हैं । राम जी का काज करने को सदा तैयार हैं ।। इस जगत में भक्त इनसा सुन जगत में है नही । राम का ही नित्य करते ये सदा गुणगान हैं ।। डर नहीं इंसान तू अब .... डर नहीं इंसान तू अब साथ में हनुमान है । आज कलयुग में नहीं इनसे बड़ा भगवान है ।। २३/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत:- डर नहीं इंसान तू अब साथ में हनुमान है । आज कलयुग में नहीं इनसे बड़ा भगवान है ।। डर नहीं इंसान तू अब .... जा झुका ले शीश उनको कष्ट सारे
Shivkumar
ब्रह्माण्ड में चारों तरफ़ सिर्फ अंधकार था व्याप्त। चौथे रुप में माता ने तब किया अण्ड निर्माण।। सभी जीवों और प्राणियों में है मां का तेज। माता के कृपा बिना हो जाते हैं सब निस्तेज।। सारा चराचर जगत है मां के ही माया से मोहित। मां के ही प्रेरणा से होता है जगत में सबका हित।। दिव्य प्रकाश जगत में मां कुष्मांडा फैलाती। ममतामई, करुणामई, कल्याणकारी कहलाती।। सौम्य स्वभाव वाली है मेरी मां अष्टभुजाओंवाली। भक्तों की सारी विपदा दूर करती है महामाई।। जो कोई श्रद्धा भक्ति से मां के शरण में आता। सुख, समृद्धि,धन, सम्पदा बिन मांगे मिल जाता।। ©Shivkumar #navratri #navratrispecial #नवरात्रि #navratri2024 #ब्रह्माण्ड में चारों तरफ़ सिर्फ #अंधकार था व्याप्त । चौथे रुप में माता ने तब किया
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Life Like दोहा:- बोलो सीता राम सब , बोलो राधेश्याम । यही जगत में सत्य है , भज ले प्यारे नाम ।। बाला जी महराज की , कृपा रहे दिन रात । अब तो उनके भक्त की , बढ़ जाये तादात ।। क्यों लड़ते हो आप अब , लव नगरी लाहौर । लेने दो हमको शरण , वो भी अपना ठौर ।। धाम अयोध्या पास में , बसा लखन पुर देख । जन-जन जपकर राम जी , बदले अपनी रेख ।। चलिये खाटूश्याम जी , जपिये राधे नाम । वही मिलेंगे आपको , अपने राधेश्याम ।। बागेश्वर के धाम में , हो प्रभु की जयकार । सत्य सनातन धर्म के , शास्त्री जी अवतार ।। काया से मत मोह कर , समझ इसे गोदाम । इसके अन्दर ही छिपे , है तेरे श्री राम ।। प्रेमा जी महराज का , सुनता नित सत्संग । जिनसे जीवन में खिला , मेरे भगवत रंग ।। तुझमें मुझमें राम हैं , मत कर ऐसे बैर । चल भगवन से माँगतें , इक दूजे की खैर ।। त्रिकुटा पर्वत पे वहाँ , माता बैठी देख । दर्शन करके हम चलो , बदले अपनी रेख ।। जय कारे महादेव के , करते रहिये आप मिट जायेंगे एक दिन ,जीवन के संताप ।। २१/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा:- बोलो सीता राम सब , बोलो राधेश्याम । यही जगत में सत्य है , भज ले प्यारे नाम ।। बाला जी महराज की , कृपा रहे दिन रात । अब तो उनके भक्त क
Mukesh Poonia
सारा जग है प्रभु तेरी शरण में सर झुकाते हैं शिव तेरे चरण में हम बनें भोले की चरणों की धूल आओ शिव जी पर चढ़ायें श्रद्धा के फूल। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ©Mukesh Poonia #mahashivaratri सारा जग है #प्रभु तेरी #शरण में सर झुकाते हैं #शिव तेरे चरण में हम बनें #भोले की चरणों की धूल आओ शिव जी पर चढ़ायें #श्रद्धा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- राधे राधे जप कर , बुलाते हैं गिरधर , दौड़े-दौड़े चले आते , मन से पुकारिये ।। राधा में ही श्याम दिखे , श्याम को ही राधा लखे , दोनो की ये प्रीति भली , कभी न बिसारिये ।। रूप ये बदल आये , देख निधिवन आये , मिले कभी समय तो , उधर निहारिये ।। कट जाये जीवन यूँ , राधे-राधे जपते यूँ , शरण बिहारी के यूँ , जीवन गुजारिये ।।१ पटरी की रेल है ये , जीवन का खेल है ये , तेरा मेरा मेल है ये , प्रीति ये बढ़ाइये । चाँद जैसी सूरत है , अजन्ता की मूरत है , सुन चुके आप हैं तो , घुंघट उठाइये ।। नहीं हूर नूर देखो , पीछे हैं लंगूर देखो , जैसे भी हूँ अब मिली , जीवन गुजारिये ।। आई हूँ तू ब्याह कर , नहीं ज्यादा चाह कर , मुझे और नखरे न , आप तो दिखाइये ।।२ २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- राधे राधे जप कर , बुलाते हैं गिरधर , दौड़े-दौड़े चले आते , मन से पुकारिये ।। राधा में ही श्याम दिखे , श्याम को ही राधा लखे
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- नम आँखों से बेटियाँ , करती बस ये चाह । मातु-पिता की अब यहाँ , कौन करे परवाह ।। कौन करे परवाह , हमारी डोली उठते । ले जाती मैं साथ , साथ जो मेरे चलते ।। अब क्या मेरे हाथ , मुझे ले जाते हमदम । देख पिता को आज , हुई मेरी आँखें नम ।। देने को तैयार हूँ , सभी *परीक्षा* आज । जैसे चाहो साँवरे , रोकों मेरे काज ।। रोको मेरे काज , शरण तेरी मैं पकडूँ । यही हृदय की चाह , प्रीति में तेरी अकडूँ ।। आओगे तुम पास , भेद फिर मेरे लेने । रहूँ सदा तैयार , परीक्षा जो हैं देने ।। उतनी तुमने साँस दी , इतनी है अब शेष । और नहीं कुछ आस है , फिर क्यों भदलूँ भेष ।। फिर क्यों बदलू भेष , *परीक्षा* देने आया । बनकर बैठा शिष्य , हृदय क्यों है घबराया ।। पाया हूँ जो ज्ञान , कहूँ कम कैसे इतनी । कपट न पाया सीख , रही बस देखो उतनी ।। ०१/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- नम आँखों से बेटियाँ , करती बस ये चाह । मातु-पिता की अब यहाँ , कौन करे परवाह ।। कौन करे परवाह , हमारी डोली उठते । ले जाती मैं स
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं । शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।। मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में । सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।। तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में । आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।। जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में । उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।। सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में । मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।। जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के । दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।। जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के । यही सीढ़ियां ऊपर जाएं , देखो नित संसार के ।। २८/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु