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Satish Yadav
‘सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी’🙏🙏 ©Satish Yadav ‘सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी’🙏🙏 Rashmika Madhu Chauhan✍️ Sucheta Jena Satish Kumar Meena DHEERAJ KUMAR MISHRA Nandita
Sonu Delhi
Satya Prakash Upadhyay
”पाथर पूजे हरी मिले,तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे,जाको पीस खाए संसार!!” ”कांकर पाथर जोरि के ,मस्जिद लई चुनाय | ता उपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ||” – कबीर satyprabha💕 ”पाथर पूजे हरी मिले,तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे,जाको पीस खाए संसार!!” ”कांकर पाथर जोरि के ,मस्जिद लई चुनाय | ता उपर मुल्ला ब
Poetry with Avdhesh Kanojia
दोहा- श्यामल छबि तन पीत पट, मोर मुकुट प्रभु माथ। युगल चरन में शत नमन, करूँ जगत के नाथ।। चौपाई- जय गिरिधर जय -जय व्रजनंदन। जोरि पानि हम करते वंदन।। तव पद पंकज नावहुँ शीशा आरति हरहु मोर जगदीशा।। परम शक्ति तव राधे रानी। वंदहि देवर्षि: अरु ध्यानी।। देवराज कर मान नसाई। अरु बिरंचि अभिमान हटाई।। पंच शत्रु मोहि घेरे ठाढ़े। अवगुन दोष सकल हैं बाढ़े।। त्राहिमाम प्रभु!शरण तिहारी। हौं प्रसन्न अब पातकहारी।। दोहा- जय माधव रणबाँकुरे!, नमन प्रेम अवतार। कण कण में छवि आपकी, महिमा अमित अपार।। #जन्माष्टमी #श्रीकृष्ण #कृष्णमेरे #krishna #poem #poetry #lovequote दोहा- श्यामल छबि तन पीत पट, मोर मुकुट प्रभु माथ। युगल चरन
atrisheartfeelings
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥ जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥ मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥ पुनि संभारि उठी सो लंका। जोरि पानि कर बिनय ससंका॥ जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥ बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥ तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥ तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥ #sundarkand #sunderkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #devotional #goodmorning मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंक
शब्दिता
*धरती है बलिदानों की विद्वानों का वर्चस्व यहां।।* अनुशीर्षक पढ़ें.......!!! यह धरती बलिदानियों की है विद्वानों की विद्वता का वर्चस्व सदैव से इस देश में रहा है। यहां की मिट्टी चंदन के समान सुगंधित यहां मनुष्य के भ
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 3 हनुमानजी छोटा सा रूप धरकर लंका में प्रवेश करने का सोचते है पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥3॥ हनुमानजी ने बहुत से रखवालो को देखकर मन में विचार किया की मै छोटा रूप धारण करके नगर में प्रवेश करूँ ॥3॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम लंकिनी का प्रसंग और ब्रह्माजी का वरदान हनुमानजी राम नामका स्मरण करते हुए लंका में प्रवेश करते है मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥1 हनुमानजी मच्छर के समान छोटा-सा रूप धारण कर,प्रभु श्री रामचन्द्रजी के नाम का सुमिरन करते हुए लंका में प्रवेश करते है॥लंकिनी, हनुमानजी का रास्ता रोकती हैलंका के द्वार पर लंकिनी नाम की एक राक्षसी रहती थी।हनुमानजी की भेंट, उस लंकिनी राक्षसी से होती है।वह पूछती है कि, मेरा निरादर करके (बिना मुझसे पूछे) कहा जा रहे हो? हनुमानजी लंकिनी को घूँसा मारते है जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥ मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥2॥ तूने मेरा भेद नहीं जाना? जहाँ तक चोर हैं, वे सब मेरे आहार हैं॥ महाकपि हनुमानजी उसे एक घूँसा मारते है,जिससे वह पृथ्वी पर लुढक पड़ती है। लंकिनी हनुमानजी को प्रणाम करती है पुनि संभारि उठी सो लंका। जोरि पानि कर बिनय ससंका॥ जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥3॥ वह राक्षसी लंकिनी, अपने को सँभाल कर फिर उठती है और डर के मारे हाथ जोड़ कर हनुमानजी से कहती है॥ लंकिनी, हनुमानजी को, ब्रह्माजी के वरदान के बारे में बताती है जब ब्रह्मा ने रावण को वर दिया था, तब चलते समय उन्होंने राक्षसों के विनाश की यह पहचान मुझे बता दी थी कि॥ ब्रह्माजी के वरदान में राक्षसों के संहार का संकेत बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥ तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥4॥ जब तू बंदर के मारने से व्याकुल हो जाए,तब तू राक्षसों का संहार हुआ जान लेना। हनुमानजी के दर्शन होने के कारण, लंकिनी खुदको भाग्यशाली समझती है हे तात! मेरे बड़े पुण्य हैं, जो मैं श्री रामजी के दूत को अपनी आँखों से देख पाई। विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 133 से 143 नाम 133 लोकाध्यक्षः समस्त लोकों का निरीक्षण करने वाले 134 सुराध्यक्षः सुरों (देवताओं) के अध्यक्ष 135 धर्माध्यक्षः धर्म और अधर्म को साक्षात देखने वाले 136 कृताकृतः कार्य रूप से कृत और कारणरूप से अकृत 137 चतुरात्मा चार पृथक विभूतियों वाले 138 चतुर्व्यूहः चार व्यूहों वाले 139 चतुर्दंष्ट्रः चार दाढ़ों या सींगों वाले 140 चतुर्भुजः चार भुजाओं वाले 141 भ्राजिष्णुः एकरस प्रकाशस्वरूप 142 भोजनम् प्रकृति रूप भोज्य माया 143 भोक्ता पुरुष रूप से प्रकृति को भोगने वाले 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 3 हनुमानजी छोटा सा रूप धरकर लंका में प्रवेश करने का सोचते है पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरों नि
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 16 प्रभु राम की कृपा से सब कुछ संभव सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥16॥ हनुमानजी ने कहा कि हे माता! सुनो, वानरों मे कोई विशाल बुद्धि का बल नहीं है।परंतु प्रभु का प्रताप ऐसा है की उसके बल से छोटा सा सांप गरूड को खा जाता है(अत्यंत निर्बल भी महान् बलवान् को मार सकता है)॥16॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम माता सीता का हनुमानजी को आशीर्वाद मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥ आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥1॥ भक्ति, प्रताप, तेज और बल से मिली हुई हनुमानजी की वाणी सुनकर सीताजी के मन में बड़ा संतोष हुआ फिर सीताजी ने हनुमान को श्री राम का प्रिय जानकर आशीर्वाद दिया कि हे तात! तुम बल और शील के निधान होओ॥ हनुमानजी – अजर, अमर और गुणों के भण्डार अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥ करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥2॥ हे पुत्र! तुम अजर (जरारहित – बुढ़ापे से रहित),अमर (मरणरहित) और गुणों का भण्डार हो और रामचन्द्रजी तुम पर सदा कृपा करें॥प्रभु रामचन्द्रजी कृपा करेंगे, ऐसे वचन सुनकर हनुमानजी प्रेमानन्द में अत्यंत मग्न हुए॥ हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥ अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥3॥ और हनुमानजी ने वारंवार सीताजीके चरणों में शीश नवाकर,हाथ जोड़ कर, यह वचन बोले॥हे माता! अब मै कृतार्थ हुआ हूँ,क्योंकि आपका आशीर्वाद सफल ही होता है,यह बात जगत् प्रसिद्ध है॥ अशोकवन के फल और राक्षसों का संहार हनुमानजी अशोकवन में लगे फलों को देखते है सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा॥ सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी॥4॥ हे माता! सुनो, वृक्षोंके सुन्दर फल लगे देखकर मुझे अत्यंत भूख लग गयी है, सो मुझे आज्ञा दो॥तब सीताजीने कहा कि हे पुत्र! सुनो,इस वन की बड़े बड़े भारी योद्धा राक्षस रक्षा करते है॥ हनुमानजी सीताजी से आज्ञा मांगते है तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥5॥ तब हनुमानजी ने कहा कि हे माता ! जो आप मनमे सुख माने (प्रसन्न होकर आज्ञा दें),तो मुझको उनका कुछ भय नहीं है॥ आगे शनिवार को ... विष्णु सहस्त्रनाम (एक हजार नाम) आज 634 से 645 नाम 634 अर्चितः जो सम्पूर्ण लोकों से अर्चित (पूजित) हैं 635 कुम्भः कुम्भ(घड़े) के समान जिनमे सब वस्तुएं स्थित हैं 636 विशुद्धात्मा तीनों गुणों से अतीत होने के कारण विशुद्ध आत्मा हैं 637 विशोधनः अपने स्मरण मात्र से पापों का नाश करने वाले हैं 638 अनिरुद्धः शत्रुओं द्वारा कभी रोके न जाने वाले 639 अप्रतिरथः जिनका कोई विरुद्ध पक्ष नहीं है 640 प्रद्युम्नः जिनका दयुम्न (धन) श्रेष्ठ है 641 अमितविक्रमःजिनका विक्रम अपरिमित है 642 कालनेमीनिहा कालनेमि नामक असुर का हनन करने वाले 643 वीरः जो शूर हैं 644 शौरी जो शूरकुल में उत्पन्न हुए हैं 645 शूरजनेश्वरः इंद्र आदि शूरवीरों के भी शासक 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 16 प्रभु राम की कृपा से सब कुछ संभव सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥16
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 26 हनुमानजी फिर से माता सीता के पास आते है पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि। जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥26॥ अपनी पूंछ को बुझा कर, श्रम को मिटा कर (थकावट दूर करके),फिर से छोटा स्वरूप धारण कर के हनुमान जी हाथ जोड़ कर सीताजी के आगे आ खडे हुए ॥26॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम माता सीता का प्रभु राम के लिए संदेशा सीताजी हनुमानजीको पहचान का चिन्ह देती है मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥ चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥1॥ और बोले कि हे माता!जैसे रामचन्द्रजी ने मुझको पहचान के लिये मुद्रिका का निशान दिया था,वैसे ही आप भी मुझको कुछ चिन्ह (पहचान) दो॥तब सीताजी ने अपने सिर से उतार कर चूडामणि दिया।हनुमानजी ने बड़े आनंद के साथ वह ले लिया॥ सीताजी श्री राम के लिए संदेशा देती है कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥ दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी॥2॥ सीताजी ने हनुमानजी से कहा कि हे पुत्र!मेरा प्रणाम कह कर प्रभु से ऐसे कहना कि हे प्रभु!यद्यपि आप सर्व प्रकारसे पूर्णकाम हो(आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है)॥हे नाथ! आप दीनदयाल हो,दीनो (दुःखियो) पर दया करना आपका विरद है,(और मै दीन हूँ)अतः उस विरद को याद करके, मेरे इस महासंकट को दूर करो॥ माता सीता का श्रीराम को संदेशा तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥ मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥3॥ हे पुत्र । फिर इन्द्र के पुत्र जयंत की कथा सुना कर प्रभु कों बाणों का प्रताप समझाकर याद दिलाना और कहना कि हे नाथ जो आप एक महीने के अन्दर नहीं पधारोगे,तो फिर आप मुझको जीवित नहीं पाएँगे॥ सीताजी को हनुमानजी के जाने का दुःख कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना॥ तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती॥4॥ हे तात! कहना, अब मैं अपने प्राणोंको किस प्रकार रखूँ?क्योंकि तुम भी अब जाने को कह रहे हो॥तुमको देखकर मेरी छाती ठंढी हुई थीपरंतु अब तो फिर मेरे लिए वही दिन हैं और वही रातें हैं॥ आगे शनिवार को ..., Affirmations:- 6.मैं खुला हुआ हूँ और बहुत कुछ पाने के लिए तैयार हूँ..., 7.हमारे अंदर जो उत्तर हैं वो आसानी से मुझे पता चल जाते हैं ..., 8.मैं अतीत को आसानी से पीछे छोड़ देता हूँ और जीवन की प्रक्रिया पर विश्वास करता हूँ ..., 9.मैं अपना व्यक्ति होने के लिए स्वतंत्र हूँ ..., 10. मैं उसी प्रकार से संपूर्ण हूँ जैसा मैं हूँ..., 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 26 हनुमानजी फिर से माता सीता के पास आते है पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि। जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥26॥ अ
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 21 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥ रावण का साम्राज्य, भगवान् राम के बल के थोड़े से अंश के बराबर और हे रावण! सुन,जिसके बल के लवलेश अर्थात किन्चित्मात्र, थोडे से अंश से तूने तमाम चराचर जगत को जीता है,उस परमात्मा का मै दूत हूँ जिनकी प्यारी सीता को तू हर ले आया है ॥21॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम रावण का सहस्रबाहु और बालि से युद्ध जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥ समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥ हे रावण! तुम्हारी प्रभुता तो मैंने तभी से जान ली है कि जब तुम्हे सहस्रबाहु के साथ युद्ध करनेका काम पड़ा था और मुझको यह बात भी याद है कि तुमने बालि से लड़ कर जो यश प्राप्त किया था। हनुमानजी के ये वचन सुनकर रावण ने हँसी में ही उड़ा दिए॥ हनुमानजी ने अशोकवन क्यों उजाड़ा? खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥ सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी॥ तब फिर हनुमानजी ने कहा कि हे रावण!मुझको भूख लग गयी थी इसलिए तो मैंने आपके बाग़ के फल खाए है औरजो वृक्षो को तोडा है सो तो केवल मैंने अपने वानर स्वाभावकी चपलतासे तोड़ डाले है और जो मैंने आपके राक्षसों को मारा उसका कारण तो यह है की हे रावण!अपना देह तो सबको बहुत प्यारा लगता है,सो वे खोटे रास्ते चलने वाले राक्षस मुझको मारने लगे॥ हनुमानजी ने राक्षसों को क्यों मारा? जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥ मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥ तब मैंने अपने प्यारे शरीर की रक्षा करने के लिए जिन्होंने मुझको मारा था उनको मैंने भी मारा।इस पर आपके पुत्र ने मुझको बाँध लिया है,हनुमान जी कहते है कि मुझको बंध जाने से कुछ भी लज्जा नहीं आती क्योंकि मै अपने स्वामी का कार्य करना चाहता हूँ॥ हनुमानजी रावण को समझाते है बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥ देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥ हे रावण! मै हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करता हूँ।सो अभिमान छोड़कर मेरी शिक्षा सुनो॥और अपने मन मे विचार करके तुम अपने आप खूब अच्छी तरह देख लो और सोचनेके बाद भ्रम छोड़कर भक्तजनों के भय मिटाने वाले प्रभुकी सेवा करो॥ ईश्वर से कभी बैर नहीं करना चाहिए जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई॥ तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै॥ हे रावण! जो देवता, दैत्य और सारे चराचर को खा जाता है,वह काल भी जिसके सामने अत्यंत भयभीत रहता है॥उस परमात्मा से कभी बैर नहीं करना चाहिये।इसलिए जो तू मेरा कहना माने तो सीताजी को रामचन्द्रजी को दे दो॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 824 से 835 नाम 824 अश्वत्थः श्व अर्थात कल भी रहनेवाला नहीं है 825 चाणूरान्ध्रनिषूदनः चाणूर नामक अन्ध्र जाति के वीर को मारने वाले हैं 826 सहस्रार्चिः जिनकी सहस्र अर्चियाँ (किरणें) हैं 827 सप्तजिह्वः उनकी अग्निरूपी सात जिह्वाएँ हैं 828 सप्तैधाः जिनकी सात ऐधाएँ हैं अर्थात दीप्तियाँ हैं 829 सप्तवाहनः सात घोड़े(सूर्यरूप) जिनके वाहन हैं 830 अमूर्तिः जो मूर्तिहीन हैं 831 अनघः जिनमे अघ(दुःख) या पाप नहीं है 832 अचिन्त्यः सब प्रमाणों के अविषय हैं 833 भयकृत् भक्तों का भय काटने वाले हैं 834 भयनाशनः धर्म का पालन करने वालों का भय नष्ट करने वाले हैं 835 अणुः जो अत्यंत सूक्ष्म हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 21 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥ रावण का साम्राज्य, भगवान् राम के