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AK__Alfaaz..
एक भूमि पर उपजी.. दो फसल..एक धान,,,एक गेहूँ.. एक स्त्री.. एक पुरूष.. पुरूष,,,,जहाँ बोया.. वहीं उपजा.. वहीं पोषित हो.. पककर लहलहाने लगा.. स्त्री,,,,रोपी गयी मायके में.. क्षण भर को स्नेह लिप्त हो.. बढ़ने लगी जो.. उखाड़ी गयी.. ममता की भूमि से अपनी.. पुनः बोयी गयी ससुराल में.. #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #कितु_स्त्री...? एक भूमि पर उपजी.. दो फसल..एक धान,,,एक गेहूँ.. एक स्त्री.. एक पुरूष..
Rishi Unwal
AK__Alfaaz..
बैसाख ने अंगड़ाई ली.. धरती की गोद सुनहरी हो गयी.. हवा ने सोंधी सी महकती पुरवाई भेजी.. गेहूँ की बालें पककर विवाह योग्य जो हो गयीं.. शामें अँधियारी हो गयीं.. रातें काली से और काली हो गयीं.. चाँद की चाँदनी का एक घूँट पीकर नदी अपने यौवन में चमक उठी.. बादलों ने समुंदर से एक लोटा जल उधार ले लिया.. धरती ने सुबह आँखें जब खोलीं.. बारिश ने उसका हौले से माथा चूम लिया.. जैसे तपती धरा को नवजीवन का आलिंगन मिल गया.. पेड़ो पर अमिया लटक गयी.. बागों से आयी कोयल.. इक दिन मुंडेर पर बैठकर सारी कहानी कह गयी.. कि बाग के आखिर वाला पेड़.. अपना अमृत टपकाने लगा है.. मौसम ने एक जादू कर दिया.. चाँद तारों ने आकर निशा का आँचल सजा दिया.. निशा भी इतरायी जरा सा,,शर्मायी जरा सा.. आकर फिर सलीके से हाथ अपना .. पिघले नीलम से अम्बर के हाथों में दे दिया.. आज श्वाँस के जुगनुओं ने फिर आत्मा के दीपक से पूछा.. क्या,,वक्त के आशियाने में.. प्रेम अब भी है जल रहा..? क्या,,उम्र का तेल अब भी है तुझमें बचा..? जो हर रात तू उसके लिए जल रहा.. रौशनी तो रोज दरिया से नहाकर निकलती है.. फिर दूर क्षितिज पर अपनी प्रेयसी रात की माँग भरती है.. और कल की आस मे,,प्रतिदिन मिलती-बिछड़ती है.. अब क्या कहूँ,,सब तो हैं साथ मेरे.. बस,,एक तेरी कमी रह गयी है..।। -AK__Alfaaz.. #एक_तेरी_कमी_रह_गयी... बैसाख ने अंगड़ाई ली.. धरती की गोद सुनहरी हो गयी.. हवा ने सोंधी सी महकती पुरवाई भेजी.. गेहूँ की बालें पककर विवाह यो
i am Voiceofdehati
★किसान और उसकी विवशता★ किसान के वास्तविक जीवन की मार्मिक दास्तां ★बातें गांव की बातें मध्यमवर्गीय किसान के जीवन की वास्तविकता से परिपूर्ण★ जरूर पढ़ें 🙏🙏 ~~~~~~~~~~~~~~ गांव में किसान फसल उगाता है ना जाने क
AK__Alfaaz..
कल, सिंदूरी साँझ की, चूनर ताने, भूमि चली क्षितिज पर, अपने प्रिय, सूर्य को निहारने, नदी चली बलखाती, छोड़ के पीहर, ओढ़ के घूँघट केसरिया, सागर से मिलने उसके द्वारे, कल, सिंदूरी साँझ की, चूनर ताने, भूमि चली क्षितिज पर, अपने प्रिय, सूर्य को निहारने, नदी चली बलखाती, छोड़ के पीहर,