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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं । कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१ लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।। न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२ मन #शायरी

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ग़ज़ल :-
वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं ।
कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१
लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।।
न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२
मनाएं उन्हें हम भला आज कैसे ।
जिन्हें आज अपना खुदा जानते हैं ।।३
मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का ।
यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।।४
मुझे बस है उम्मीद अपने सनम से ।
कि देना वही इक दुआ जानते हैं ।। ५
न रहता मेरा दिल कभी दूर उनसे ।
मगर लोग सारे  जुदा जानते हैं ।।६
ठहरती नहीं है नज़र उन पे कोई ।
तभी से उन्हें हम बला जानते हैं ।।७
नही प्यार तू उस तरह कर सकेगा ।
वो करना हमेशा जफ़ा जानते हैं ।।८
न पूछो प्रखर तुम हँसी वो है कितना ।
कहूँ सच तो सब अप्सरा जानते हैं ।।९
३०/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं ।
कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१
लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।।
न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२
मन

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

लेकर हाथ गुलाल में , चला लगाने रंग । आ जायें जो सामने , लगा उन्हें लें अंग ।। रंग छुपाये हैं सभी , देख हाथ में ग्वाल । #शायरी

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लेकर हाथ गुलाल में , चला लगाने रंग ।
आ जायें जो सामने , लगा उन्हें लें अंग ।।
रंग छुपाये हैं सभी , देख हाथ में ग्वाल ।
अब बचकर चलना सखी , छुपे नन्द के लाल ।।
हो जाओगी अप्सरा , अगर रंग दूँ डाल ।
गोरे-काले गाल ये , हो जायेंगे लाल ।।
भर पिचकारी मार दूँ ,  जब मैं प्रीत फुहार ।
आकर दोगी बोल तुम , हमको तुमसे प्यार ।।
आज प्रीत के रंग का , चढ़ा सभी को रंग ।
जीजा साली झूमते , देखो पीकर भंग ।।
१५/०३/२०२४   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

लेकर हाथ गुलाल में , चला लगाने रंग ।

आ जायें जो सामने , लगा उन्हें लें अंग ।।


रंग छुपाये हैं सभी , देख हाथ में ग्वाल ।

सागर मंथन

#Tulips मानो कोई अप्सरा आई है #hunarbaaz

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लो तुम्हारी याद को हम ताजा करते हैं
आओ कुछ किस्से पुराने साँझा करते हैं
वो देख आया कक्षा में किसी दमकते चेहरे को
फ़िर आया मुझे बताया उस चमकते चेहरे को
मैं भी हक्का वक्का था यार के कहने सुनने पर
चैन न आया धैर्य न पाया लगा यार से कहने को
कल सबेरे मैं भी चलूँगा तेरे साथ में पढ़ने को
उठा के साइकल लगा किताबें सीधा कक्षा में प्रवेश हुआ
जिगरी बोला उधर को देखो, देखा ह्रदय में क्लेश हुआ
रंग गोरिया, ढँग शर्मीला आँखो में मदिरा छाई है
काले तिल से सजी हुई मानो कोई अप्सरा आई है!

©सागर मंथन #Tulips मानो कोई अप्सरा आई है
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