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Google सादगी कुछ इस तरह एक किरदार की थी बिना कुछ कहे भी हर जुबान पे कहानी एक सरदार की थी। शत शत नमन आर्थिक मंदी में भारत को संभालने के लिए ©ek_khoya_sa_ladka) #Manmohan_Singh_Dies एस पी "हुड्डन" –Varsha Shukla RAVINANDAN Tiwari sapna prajapati❤ ASHISH KUMAR TIWARI
#Manmohan_Singh_Dies एस पी "हुड्डन" –Varsha Shukla RAVINANDAN Tiwari sapna prajapati❤ ASHISH KUMAR TIWARI
read moreKasim Ali Latif
"When patience became the measure of love" - Status "जब सब्र का जाम पी लिया, तो ज़ालिम से कहने का हौसला भी पा लिया। दर्द को अब दोस्त मान लिय
read moreGoluBabu
मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स Islam शायरी मोटिवेशनल देवता भी मनुष्य जीवन को तरसते हैं क्योंकि मोक्ष मनुष्य जीवन में ही हो सकता है। और परमा
read morePriyawant Markamji
wringtone bhakti wdesh bhakti geet wbhakti gana #MiracleOfGodKabir_In_1513 आज से 511 वर्ष पूर्व कपड़ा बुनकर आजीविका चलाने वाले समर्थ कबीर पर
read moreGovind Singh rajput GSR
White जो सफ़र में हमेशा से चलते रहे आज देखो वही आदमी बन गए वो मज़े ले रहा था रुलाकर मुझे जिंदगी ने उसी के मज़े ले लिये ©Govind Singh rajput GSR #GoodMorning बाबा ब्राऊनबियर्ड एस पी "हुड्डन" Monu Kumar h m alam s irslan khan hindi poetry on life urdu poetry sad poetry quotes urd
#GoodMorning बाबा ब्राऊनबियर्ड एस पी "हुड्डन" Monu Kumar h m alam s irslan khan hindi poetry on life urdu poetry sad poetry quotes urd
read moregudiya
Nature Quotes आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच तब तब अचानक मुझे लगता है यही तो तुम हो मेरी मां मेरी मातृभूमि धान के पौधों ने तुम्हें इतना ढक दिया है कि मुझे रास्ता तक नहीं सुझता और मैं मेले में कोई बच्चे सा दौड़ता हूं तुम्हारी ओर जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले हाहाता और उठती हैं शंख ध्वनि कंधराओं के अंधकार को हिलोडती यह बकरियां जो पहली बूंद गिरते ही भाग और छप गई पेड़ की ओट में सिंधु घाटी का वह सेंड चौड़े पत्ते वाला जो भीगा जा रहा है पूरी सड़क छेके वे मजदूर जो सुख रहे हैं बारिश मिट्टी के ढीले की तरह घर के आंगन में वह नवोढ़ा भीगती नाचती और काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोए तक भीगते और इलायची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुथंम गुत्था यह सब तुम ही तो हो कई दिनों से भूखा प्यासा तुम्हें ही तो ढूंढ रहा था चारों तरफ आज जब भी की मुट्ठी भर आज अनाज भी भी दुर्लभहै तब चारों तरफ क्यों इतनी बाप फैल रही है गरम रोटी की लगता है मेरी मां आ रही है नकाशी दार रुमाल से ढकी तश्तरी में खुबानीनिया अखरोट मखाने और काजू भरे लगता है मेरी मां आ रही है हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए यह सारे बच्चे तुम्हारी रसोई की चौखट पर कब से खड़े हैंमां धरती का रंग हरा होता है फिर सुनहला फिर धूसर छप्परों से इतना धुआं उठता है और गिर जाता है पर वहीं के वहीं हैं घर से निकले यह बच्चेतुम्हारी देहरी पर सर टेक सो रहे हैं मां यह बच्चे कालाहांडी के यह आंध्र के किसानों के बच्चे यह पलामू के पटन नरोदा पटिया के यह यदि यह यतीमअनाथ यह बंदहुआ उनके माथे पर हाथ फेर दो मां इनके भीगी के सवार दो अपने श्यामलहाथों से तुम कितनी तुम किसकी मन हो मेरी मातृभूमि मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम ही तो हो मुझे प्यार से तख्ती और मैं भेज रहा हूं नाच रही धरती नाच आसमान मेरी कल पर नाच नाच मैं खड़ा रहा भेजता बीचो-बीच। -अरुण कमल ©gudiya #NatureQuotes #मातृभूमि #Nojoto #nojotoquote #nojotohindi #nojotophoto #nojoyopoetry आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच
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