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Sabir Khan
संभ्रांत शब्द आपके रहन-सहन में समाहित है,,, यह आपकी गलत फहमी है। इतिहास गवाह है कि संभ्रांत शब्द तो मर्यादित लोगों के लिए उपयोग किया गया है। संभ्रांत
Nir@j
तू संभ्रांत आशातीत नारी, असीम सौंदर्यता से मनोहारी। आज आधुनिक युग में अकलुष, तुझे कोटि कोटि नमन राजकुमारी। संभ्रांत- प्रतिष्टित, उतेजित। आशातीत- आशा से अधिक। अकलुष- दोषरहित, बेदाग़, साफ #yqhindi #yqdidi #yqbeauty #yqlove #nirajnandini
Divyanshu Pathak
कोरोना और जीवन संक्रमण और मौत का बढ़ता ग्राफ़ विश्व भर की चिंता तो बढ़ा ही रहा है ऊपर से प्राकृतिक आपदाओं ने भी डेरे जमा लिए है। कुल मिलाकर जीवन संकट में है। ग़रीब, मजदूर, किसान को दोहरी मार झेलनी पड़ी। प्रश्न ये है कि इस संकट से कैसे निपटा जाए? देश का धनी वर्ग भले ही लॉक डाउन के समर्थन में हो और उसके बहुत सारे फायदे भी गिनाने लग जाए किन्तु कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि यह कारगर उपाय नही था। हमने असर देखा है। पलायन करते,सड़कों पर रोते मरते लोगों को।इसलिए तो लॉक डाउन हटाना पड़ा। अर्थव्यवस्था को लेकर देशभर में ख़ूब चर्चा है। सरकार के द्वारा दिए गए पैकेज से भी लोग संभ्रांत हैं। संक्रमण की रफ़्तार भी थमती नही दिख रही। ---
पत्रकार रमेश सोनी Soni
Anita Saini
स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व को कभी स्वीकारा नहीं गया! उससे जुड़े नाम, पद-प्रतिष्ठा और संबंध के आधार स्वीकारा गया। अमुक की माँ, बहन, बेटी, बुआ, मासी,अमुक की पत्नी, बहू, सास से ही स्त्री को पहचाना जाता है। यदि कोई स्वतंत्र जीवनयापन करना चाहे तो उसके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं। कितनी ही कठिनाईयों से बच्चे का पालन-पोषण करे एकाकी माँ! उसके कठिनतम समय में भी समाज के सुशील संभ्रांत ठेकेदार उसे अच्छी दृष्टि से नहीं देखते.. स्त्री की अदृश्य बेड़ियाँ पहले से अधिक जकड़ गई हैं वर्तमान में.. स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व को कभी स्वीकारा ही नहीं गया! उससे जुड़े नाम, पद-प्रतिष्ठा और संबंध के आधार स्वीकारा गया केवल... अमुक की माँ, बहन,
Divyanshu Pathak
वात्स्यायन का बाजारीकरण करके अश्लीलता फ़ैलाना बंद हो। यह मानसिक प्रदूषण समाज और सभ्य जीवनशैली में विकार है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ( पुरुषार्थों ) को समझे बिना जीवन को आहार, निद्रा,भय और मैथुन तक सीमित कर लेना ही सामाजिक अपराधों की जड़ है। अश्लीलता को लेकर अक़्सर कहीं न कहीं विवाद होते रहते हैं।समाज की सच्चाई दिखाने के नाम पर फिल्में, शार्ट स्टोरीज़,या सीरियल के साथ आज़कल वेबसीरीज
Ravendra
Bhaskar Anand
Sarita Shreyasi
कब तक? जब तक मेरी नमी तुम्हारे सीने में उतर न जाये अपनेपन की गर्मी से भाप बन ये उड़़ न जाए। या तबतक, जबतक मेरे बाजुओं की गिरफ्त खु़द-ब़-खु़द ढीली न पड़ जाये। ( please Read the caption) #कभी फुर्सत से, साथ बैठेंगे, मैं और तुम, हाँ, बस हमदोनों। बेरोकटोक हर बात करेंगे, पहले सारे गिले-शिकवे,फिर नाज़ुक गीले अहसास रखेंगे। छूट गए