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@Mp.khaqzada
बहुत ज़्यादा खाकर बीमार होने वालों की तादाद भी इतनी ही हैं जितनी फांकाकशी से बीमार होने वालों की भुखमरी
Abhi
पानी पी पी कर भूख मिटाता है वह गरीब। जिसके हिस्से में दो वक्त की रोटी तक नहीं होती। #भुखमरी
DILBAG.J.KHAN { دلباغ.جے.خان }
दुनियां की सबसे ऊंची मूर्ति वाले, देश में गरीबी की एक झलक ©DILBAG J KHAN #भुखमरी
DINESH SHARMA
अब भुखमरी मिटाने के डिजिटल इश्तिहार छपते है लिंक से डाउनलोड मगर रोटियां नहीं होती ©दिनेश शर्मा 15.09.2019, 07:00 AM #RDV19 #भुखमरी #इश्तिहार
Raj Kumar
प्रस्तुत है मेरी कविता 'भूख' आपके लिये अग्रिम आभार सहित- डॉ हरिओम पवार मेरा गीत चाँद है ना चांदनी है आजकल ना किसी के प्यार की ये रागिनी है आजकल मेरा गीत हास्य भी नहीं है माफ़ कीजिये साहित्य का भाष्य भी नहीं है माफ़ कीजिये मैं गरीब के रुदन के आंसुओं की आग हूँ भूख के मजार पर जला हुआ चिराग हूँ। मेरा गीत आरती नहीं है राजपाट की कसमसाती आत्मा है सोये राजघाट की मेरा गीत झोपडी के दर्दों की जुबान है भुखमरी का आइना है आँसू का बयान है भावना का ज्वार भाटा जिए जा रहा हूँ मैं क्रोध वाले आँसुओं को पिए जा रहा हूँ मैं मेरा होश खो गया है लोहू के उबाल में कैदी होकर रह गया हूँ मैं इसी सवाल में आत्महत्या की चिता पर देखकर किसान को नींद कैसे आ रही है देश के प्रधान को। सोचकर ये शोक शर्म से भरा हुआ हूँ मैं और अपने काव्य धर्म से डरा हुआ हूँ मैं मैं स्वयम् को आज गुनहगार पाने लगा हूँ इसलिये मैं भुखमरी के गीत गाने लगा हूँ गा रहा हूँ इसलिए कि इंकलाब ला सकूं। झोपडी के अंधेरों में आफताब ला सकूं।। इसीलिए देशी औ विदेशी मूल भूलकर जो अतीत में हुई है भूल, भूल-भूल कर पंचतारा पद्धति का पंथ रोक टोक कर वैभवी विलासिता को एक साल रोक कर मुझे मेरा पूरा देश आज क्रुद्ध चाहिए झोपडी की भूख के विरुद्ध युद्ध चाहिए मेहरबानों भूख की व्यथा कथा सुनाऊंगा महज तालियों के लिए गीत नहीं गाऊंगा चाहे आप सोचते हो ये विषय फिजूल है किंतु देश का भविष्य ही मेरा उसूल है आप ऐसा सोचते है तो भी बेकसूर हैं क्योकिं आप भुखमरी की त्रासदी से दूर हैं आपने देखी नहीं है भूखे पेट की तड़प काल देवता से भूखे तन के प्राण की झड़प मैंने ऐसे बचपनों की दास्तान कही है जहाँ माँ की सूखी छातियों में दूध नहीं है यहाँ गरीबी की कोई सीमा रेखा ही नहीं लाखों बच्चे हैं जिन्होंने दूध देखा ही नहीं शर्म से भी शर्मनाक जीवन काटते हैं वे कुत्ते जिसे चाट चुके झूठन चाटते हैं वे भूखा बच्चा सो रहा है आसमान ओढ़कर माँ रोटी कमा रही है पत्थरों को तोड़कर जिनके पाँव नंगे हैं लिबास तार-तार हैं जिनकी साँस-साँस साहुकारों की उधार है जिनके प्राण बिन दवाई मृत्यु की कगार हैं आत्महत्या कर रहे हैं भूख के शिकार हैं बेटियां जो शर्मो-हया होती हैं जहान की भूख ने तोड़ा तो वस्तु बन बैठी दुकान की भूख आस्थाओं का स्वरूप बेच देती है निर्धनों की बेटियों का रूप बेच देती है भूख कभी-कभी ऐसे दांव-पेंच देती है सिर्फ दो हजार में माँ बेटा बेच देती है भूख आदमी का स्वाभिमान तोड़ देती है आन-बान-शान का गुमान तोड़ देती है भूख सुदामाओं का भी मान तोड़ देती है महाराणा प्रताप की भी आन तोड़ देती है भूख तो हुजूर सारा नूर छीन लेती है मजूरन की मांग का सिन्दूर छीन लेती है किसी-किसी मौत पर धर्म-कर्म भी रोता है क्योंकि क्रिया कर्म का भी पैसा नहीं होता है घर वाले गरीब आँसू गम सहेज लेते हैं बिना दाह संस्कार मुर्दा बेच देते हैं थूक कर धिक्कारता हूँ मैं ऐसे विकास को जो कफ़न भी दे ना सके गरीबों की लाश को। कहीं-कहीं गोदामो में गेहूं सड़ा हुआ है कहीं दाने-दाने का अकाल पड़ा हुआ है झुग्गी-झोपड़ी में भूखे बच्चे बिलबिलाते हैं जेलों में आतंकियों को बिरयानी खिलाते हैं पूजा पाठ हो रहे हैं धन्ना सेठों के लिए कोई यज्ञ हुआ नहीं भूखे पेटों के लिए कोई सुबह का उजाला रैन बना देता है कोई चमत्कार स्वर्ण चैन बना देता है कोई स्वर्ग जाने की भी दे रहा है बूटियां कोई हवा से निकाल देता है अंगूठियां पर कोई गरीब की लंगोटी न बना सका कभी कोई साधू बाबा रोटी न बना सका भूख का सताया मन प्राण बीन लेता है राजाओं से तख्त और ताज छीन लेता है भूख जहाँ बागी होना ठानेगी अवाम की मुँह की रोटी छीन लेगी देश के निजाम की देश में इससे बड़ा कोई सवाल होगा क्या ? भूख से भी बड़ा कोई महाकाल होगा क्या ? फिर भी इस सवाल पर कोई नहीं हुंकारता कहीं अर्जुन का गांडीव भी नहीं टंकारता कोई भीष्म प्रतिज्ञा की भाषा नहीं बोलता कहीं कोई चाणक्य भी चोटी नहीं खोलता इस सवाल पर कोई कहीं क्यों नहीं थूकता। कहीं कोई कृष्ण पाञ्चजन्य नहीं फूंकता।। भूख का निदान झूठे वायदों में नहीं है सिर्फ पूंजीवादियों के फायदों में नहीं है भूख का निदान जादू टोनों में भी नहीं है दक्षिण और वामपंथ दोनों में भी नहीं है भूख का निदान कर्णधारों से नहीं हुआ गरीबी हटाओ जैसे नारों से नहीं हुआ भूख का निदान प्रशासन का पहला कर्म है गरीबों की देखभाल सिंहासन का धर्म है इस धर्म की पालना में जिस किसी से चूक हो उसके साथ मुजरिमों के जैसा ही सुलूक हो भूख से कोई मरे ये हत्या के समान है हत्यारों के लिए मृत्युदण्ड का विधान है कानूनी किताबों में सुधार होना चाहिए मौत का किसी को जिम्मेदार होना चाहिए भूखों के लिए नया कानून मांगता हूँ मैं समर्थन में जनता का जुनून मांगता हूँ मैं खुदकशी या मौत का जब भुखमरी आधार हो उस जिले का जिलाधीश सीधा जिम्मेदार हो वहां का एमएलए, एमपी भी गुनहगार है क्योंकि ये रहनुमा चुना हुआ पहरेदार है चाहे नेता अफसरों की लॉबी आज क्रुद्ध हो हत्या का मुकद्दमा इन्ही तीनों के विरुद्ध हो अब केवल कानून व्यवस्था को टोक सकता है भुखमरी से मौत एक दिन में रोक सकता है आज से ही संविधान में विधान कीजिये। एक दो कलक्टरों को फाँसी टांग दीजिये।। डॉ. हरिओम पंवार ©Raj Kumar भुखमरी की कविता #Karwachauth
Up Wali Class
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