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#PassG Comedy king
White ए नसीब जरा एक बात तो बता, तू सबको आज़माता है या मुझसे ही दुश्मनी है।। ©#PassG Comedy king #GoodMorning ए नसीब जरा एक बात तो बता, तू सबको आज़माता है या मुझसे ही दुश्मनी है।।#PassG
Bitterone_me
जवानी से अच्छा बचपन हुआ करता था; जहाॅं दुश्मनी सिर्फ़ एक कट्टी हुआ करती थी... ©Bitterone_me #जवानी #बचपन #दुश्मनी #कट्टी #यार #दोस्त #viral #Popular #bitteroneme
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Holi is a popular and significant Hindu festival celebrated as the Festival of Colours, Love, and Spring. ग़ज़ल :- हर तरफ़ है बहार होली में । दिल को आया करार होली में ।।१ देखकर जो बदलते थे रस्ता । वो भी आयें हैं द्वार होली में ।।२ इस तरह अब वफ़ा करो हमसे । हो जाऊँ मैं बीमार होली में ।।३ आप ऐसे अगर हमें चाहें । जान भी दूँगा वार होली में ।४ दुश्मनी भूल अब सभी जाए । रब से करता पुकार होली में ।।५ पी लिया भंग आज भी जिसने । बरसा उनपे ही प्यार होली में ।।६ हाथ में हाथ तुम प्रखर देना । तो करूँ इंतजार होली में ।।७ २५/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- हर तरफ़ है बहार होली में । दिल को आया करार होली में ।।१ देखकर जो बदलते थे रस्ता ।
Ganesh joshi
Holi is a popular and significant Hindu festival celebrated as the Festival of Colours, Love, and Spring. चलो आज हम बरसों पुरानी अपनी दुश्मनी भुला दें। कई होलियां सूखी गुजर गई इस होली पर आपस में रंग लगा लें। ©Ganesh joshi #Holi चलो आज हम बरसों पुरानी अपनी दुश्मनी भुला दें। कई होलियां सूखी गुजर गई इस होली पर आपस में रंग लगा लें। #holikadahan #holihai #holi2024
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ । माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।। दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ । धूल में फूल खिलाने के लिए रहता हूँ ।। शहर में मैं नही जाता कमाने को पैसे । हाथ बापू का बटाने के लिए रहता हूँ ।। जानता हूँ दूरियों से खत्म होगें रिश्ते । मैं उन्हें आज बचाने के लिए रहता हूँ ।। हर जगह जल रहे देखो आस्था के दीपक । मैं उन्हीं में घी बढ़ाने के लिए रहता हूँ ।। कितने कमजोर हुए हैं आजकल के रिश्ते । उनको आईना दिखाने के लिए रहता हूँ ।। कुछ न मिलता है प्रखर आज यहाँ पे हमको । फिर भी इनको मैं हँसाने के लिए रहता हूँ । ११/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ । माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।। दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ । धूल में फूल