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Sandeep Kothar
Unsplash "खामोशी का आईना" शहर की भीड़ से, कहीं दूर, सुकून के पल तलाशता हूं, शोरगुल की आगोश में खोया हुआ, मेरा अक्स, मेरी पहचान तलाशता हूं। न जाने कब और कहां, मेरे खयालों का जहां मिल जाए, इस उम्मीद में, खामोशी का आईना तलाशता हूं। ©Sandeep Kothar प्रिय पाठकों, मैं आपके साथ अपने दिल की गहराई से बात करना चाहता हूं। मेरी कविता में मैंने अपनी जीवन यात्रा को व्यक्त किया है, जो शहर की भीड़
प्रिय पाठकों, मैं आपके साथ अपने दिल की गहराई से बात करना चाहता हूं। मेरी कविता में मैंने अपनी जीवन यात्रा को व्यक्त किया है, जो शहर की भीड़
read moreSurbhi Awasthi
Rajesh kohli Arjun Rawat पार्थ shivom upadhyay sakshi Pandey Kshitija प्रिय-अंक
read moreDevanand Jadhav
Andaaz bayan
जी भर के निहारों,इस तरह प्रभु को, कि हृदय में तस्वीर छप जाए । बंद करें,जब-जब आंखों को प्रभु भोलेनाथ जी के दर्शन हो जाए।।✍🏻 📿📿📿📿📿📿📿📿📿📿📿 ©Andaaz bayan #Shiva#pray#wish#bhole Dr.UMESH ARSHAAN Anshu writer Satyaprem Upadhyay Ravi vibhute प्रिय-अंक
Maya Sharma
White उसे मेरी फिक्र है वो जताता बहुत था उसे मुझसे प्यार है दिखाता बहुत था कहता था यकीन करो मेरा मेरे लिए इस जहां में तुमसे बेहतर कोई नहीं है पर क्या हुआ जब उसे हमने , बेहतर से बेहतरीन लोग मिले बोला तुम्हारा मेरा साथ यही तक था मुझे अब बहुत बेहतरीन चाहने वाले मिले हैं वो उसका प्यार उसकी फिक्र करना बस एक दिखाना था ।और हम समझ रहे थे की हमें बहुत बेहतर चाहने वाला मिला है तो समझ आया बेहतर से बेहतरीन होता है 🌹🌹राधे राधे जी 🌹🌹 ©Maya Sharma #sad_quotes आलोक जी Author kunal rasmi प्रिय-अंक Neha Bhargava (karishma) Prince_"अल्फाज़"
#sad_quotes आलोक जी Author kunal rasmi प्रिय-अंक Neha Bhargava (karishma) Prince_"अल्फाज़"
read morepuja udeshi
#RadheGovinda #Comedy #pujaudeshi Arshad Siddiqui Sangeet... Tushar प्रिय-अंक nishu dubey
read moregudiya
White वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैं इलाहाबाद के पथ पर - वह तोड़ती पत्थर कोई ना छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार ; श्याम तन, भर बंधा यौवन, नत नयन ,प्रिय- कर्म -रत मन, गुरु हथोड़ा हाथ , करती बार-बार प्रहार ;- सामने तरु -मालिका अट्टालिका ,प्राकार । चढ़ रही थी धूप; गर्मियों के दिन दिवा का तमतमाता रूप; उठी झुंझलाते हुए लू रूई - ज्यों जलती हुई भू गर्द चिनगी छा गई, प्राय: हुई दुपहर :- वह तोड़ती पत्थर ! देखे देखा मुझे तो एक बार उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार; देखकर कोई नहीं, देखा मुझे इस दृष्टि से जो मार खा गई रोई नहीं, सजा सहज सीतार , सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार; एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर, ढोलक माथे से गिरे सीकर, लीन होते कर्म में फिर जो कहा - मैं तोड़ती पत्थर 'मैं तोड़ती पत्थर।' - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ©gudiya #love_shayari #Nojoto #nojotophoto #nojotoquote #nojotohindi #nojotoenglish वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैं इलाहाबाद के पथ पर - वह तोड़ती प
#love_shayari nojotophoto #nojotohindi #nojotoenglish वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैं इलाहाबाद के पथ पर - वह तोड़ती प
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