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Pankaj K Mahto

यह एक निबंध है जिसका शीर्षक है कुटज बहुत ही सुंदर है एक बार पढ़ कर देखिए । #waterfall&Stars

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सच्ची बाते

दुनिया है कि मतलब से मतलब है, रस चूस लेती है, छिलका और गुठली फेंक देती है। 

 लेखक (हजारी प्रसाद द्विवेदी ) यह एक निबंध है जिसका शीर्षक है कुटज बहुत ही सुंदर है एक बार पढ़ कर देखिए ।

#Waterfall&Stars

Ankita Shukla

बनकर संध्या का पुण्य कुटज गंगा पर ही लहराता हू कर बाधाओं को पार सदा भवसागर में तर जाता हूं #विचार

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Ankita Shukla

#doori बनकर संध्या का पुण्य कुटज गंगा पर ही लहराता हू कर बाधाओं को पार सदा भवसागर में तर जाता हूंbeingpoetry #विचार

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Insprational Qoute

साहस क्या हैं ???आज तुम्हें हम बताते हैं, इसके प्रत्यक्षदर्शियों से रूबरू तुम्हें हम कराते हैं, सूक्ष्म बीज के साहस को सलाम, चीर धरा का सीना #Motivation #yqdidi #मोटिवेशनल #insprationalquotes #hkkhindipoetry #यकहिन्दी

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साहस क्या हैं ???आज तुम्हें हम बताते हैं,
इसके प्रत्यक्षदर्शियों से रूबरू तुम्हें हम कराते हैं,
सूक्ष्म बीज के साहस को सलाम,
चीर धरा का सीना तपता हैं तूफ़ान झंझावत की मार भी सहता हैं,
बन एक हरा भरा द्रुम सब को दे छाँव नायाब साहस का पैगाम, भी देता हैं,

एक छोटी चींटी लेती हैं दाना उठा बार बार,
गिरती हैं सम्भालती हैं कई बार,
पर वह आत्मविश्वास से नही मानती हैं वो हार,
जोड़ जोड़ वह दाना लगाती हैं अंबार,
उसके इस नन्हें से साहस को सच मे नमस्कार,

ऊसर भूमि में भी कई कमलरूपी कुटज लहलाते हैं,
भीषण गर्मी में भी वो जाबाज लू भरी हवा से बाते करते हैं,
पर कभी अपना धैर्य और मनोबल नही खोते हैं,
साहस को अपना बरक़रार रखते है,

एक छोटी सी चिड़िया अपनी नन्हीं सी चोंच से 
चुग चुग दाना ओर तिनका लाती हैं उन्मुक्त गगन से
फिर भर भर चोंच से अपने चूजों को खिलाती हैं,
जब इतनी नन्ही सी जान इतना जज्बा ओर साहस दिखाती हैं,
तो आप अपने लक्ष्य को पाने से क्यो घबराते हैं,

Part-1 साहस क्या हैं ???आज तुम्हें हम बताते हैं,
इसके प्रत्यक्षदर्शियों से रूबरू तुम्हें हम कराते हैं,
सूक्ष्म बीज के साहस को सलाम,
चीर धरा का सीना

Insprational Qoute

साहस क्या हैं ???आज तुम्हें हम बताते हैं, इसके प्रत्यक्षदर्शियों से रूबरू तुम्हें हम कराते हैं, सूक्ष्म बीज के साहस को सलाम, चीर धरा का सीना #Motivation #yqdidi #मोटिवेशनल #insprationalquotes #hkkhindipoetry #यकहिन्दी

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साहस क्या हैं ???आज तुम्हें हम बताते हैं,
इसके प्रत्यक्षदर्शियों से रूबरू तुम्हें हम कराते हैं,
सूक्ष्म बीज के साहस को सलाम,
चीर धरा का सीना तपता हैं तूफ़ान झंझावत की मार भी सहता हैं,
बन एक हरा भरा द्रुम सब को दे छाँव नायाब साहस का पैगाम, भी देता हैं,

एक छोटी चींटी लेती हैं दाना उठा बार बार,
गिरती हैं सम्भालती हैं कई बार,
पर वह आत्मविश्वास से नही मानती हैं वो हार,
जोड़ जोड़ वह दाना लगाती हैं अंबार,
उसके इस नन्हें से साहस को सच मे नमस्कार,

ऊसर भूमि में भी कई कमलरूपी कुटज लहलाते हैं,
भीषण गर्मी में भी वो जाबाज लू भरी हवा से बाते करते हैं,
पर कभी अपना धैर्य और मनोबल नही खोते हैं,
साहस को अपना बरक़रार रखते है,

एक छोटी सी चिड़िया अपनी नन्हीं सी चोंच से 
चुग चुग दाना ओर तिनका लाती हैं उन्मुक्त गगन से
फिर भर भर चोंच से अपने चूजों को खिलाती हैं,
जब इतनी नन्ही सी जान इतना जज्बा ओर साहस दिखाती हैं,
तो आप अपने लक्ष्य को पाने से क्यो घबराते हैं,

Part-1 साहस क्या हैं ???आज तुम्हें हम बताते हैं,
इसके प्रत्यक्षदर्शियों से रूबरू तुम्हें हम कराते हैं,
सूक्ष्म बीज के साहस को सलाम,
चीर धरा का सीना

N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े #alone #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। 

 हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। 

 उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। 

 उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। 

 देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। 

 ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये।

©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े

N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े #Ride #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। 

 हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। 

 उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। 

 उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। 

 देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। 

 ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये।

©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 16 – भाग्य-भोग 'भगवन! इस जीव का भाग्य-विधान?' कभी-कभी जीवों के कर्मसंस्कार ऐसे जटिल

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