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krishna devi manas kinkri
"नास्ति कामसमो व्याधि" अर्थात- काम(इच्छाओं)के समान कोई रोग नहीं | © krishna devi manas kinkri नास्ति कामसमो व्याधि. #seashore
वेदों की दिशा
।। ॐ ।। यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूंषि पश्यति। तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥ वह' जो चक्षु के द्वारा नहीं देखता,२ 'वह' जिसके द्वारा व्यक्ति चक्षु को देखने की क्रिया को देखता है 'उसे' ही तुम 'ब्रह्म' जानो, ना कि इसे जिसकी मनुष्य यहां उपासना करते हैं। That which sees not with the eye, that by which one sees the eye's seeings, know That to be the Brahman and not this which men follow after here. केनोपनिषद मंत्र ६ #kenopanishad #प्रथम_खंड #उपनिषद #चक्षु #ब्रह्म #ईश्वर
Tarakeshwar Dubey
चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ? """""""""""""""""""""""""""""" कैसे लिखूं मै कुमकुम बिंदिया, रोली कंगन की झनकार, जब माता के आंगन में, मचा हुआ है हाहाकार। कोई भोंकता पीठ मे खंजर, कोई वक्ष पर ताने तलवार, कोई देश की बोली लगाता, संस्कृति पर करता प्रहार। कोई बांटता जाति धर्म में, करवाता जन मे दंगे, कोई देशभक्ति की आड़ में, बैरी से लड़वाता जंगे। कोई सेना के सौर्य बल पर, प्रश्न चिन्ह उठाता है, कोई अदालतों की चौखट पर, न्याय की बोली लगाता है। कोई बैठ कर संसद में, जन गण की दंभ भरता है, छलकपट से छद्म भेष में, जन मानस जख्मी करता है। ऐसे निर्मम हालतों मे मैं, चुप कैसे रह सकता हूँ? माता मेरी विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ? ऐसे कुकृत्यों पर कहीं, धरती डोल गया होगा, भूमंडल के बाहर कहीं, अंबर बोल गया होगा। निष्ठुरता से क्रुद्ध हो कर, किसी ने रेखा खींची होगी, आखों में अंगारे भर कर, लहू सी नीर बही होगी। कहीं दरिया के मीठे जल मे, खार उमड़ आया होगा, कहीं भगत सिहं के रगों मे, लावा दौड़ गया होगा। कहीं चंद्रशेखर के हाथो में, पिस्टल तन गई होगी, कहीं कुँवर के बाजुओं मे, तलवारे चमक गई होगी। बहने सजग हुई होंगी और भाई शहीद हुए होंगे, जब सरहद पर बैरी ने, छिप कर घात किए होंगे। पतितों के पथभ्रष्ट मार्ग की, पीड़ा कैसे सह सकता हूँ? भारत माता विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ? जब कोई द्रोही षडयंत्र से, जो दंगे करवाएगा, हो जाएंगे स्वर बुलंद, कोई प्रेमी डट जाएगा। माता की मर्यादा को जब, पापी दाग लगाएगा, जाग उठेगी नारी रणचंडी, कोई बागी हो जाएगा। भस्म मलेंगे जब योद्धा, छल-छल लहू तब छलकेंगे, बज उठेगी रणभेरी, जन-जन यौवन फिर गरजेंगे। कट जाएंगे शीश अरि के, मिट्टी मे मिल जाएंगे, जो भिड़ेंगे महावीरों से, खाक-खाक हो जाएंगे। कदमो में होगा सिंधु, शिखर खुद ही शीश झुकाएगा, ऊँचे गगन में शान तिरंगा, लहर-लहर लहराएगा। व्यभिचार सम्मुख हरगिज, नत्मस्तक नही हो सकता हूँ, भारत माता विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ? ©Tarakeshwar Dubey चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ #DearKanha
शा़यर बाबु
विद्या धन जिसको है भाता वो जीवन का हर सुख पाता इससे तुम अब जोड़ो नाता बनो स्वयं का भाग्य विधाता ये धन जो है अर्जित करता दुःख उसको है वर्जित रहता चाहे जितना कठिन समय हो वो उसको पल में हल करता चाहे दुनियां में कहीं जाओ विद्या कभी ना छोड़े साथ अपने भी धोखा देंगे पर विद्या कभी ना देगा मात विद्या से इस मानुष जीवन में बन जाता है ऊंची शान दुनियां उसको कभी न भूले करे जो विद्या अमृत पान बीत रहा ये समय देख के कहती है मेरी ये ज़बान बिन विद्या अर्जित के मानव बन ना सकोगे कभी महान।। ------rocky babu विद्या धन
राहुल अग्निहोत्री
एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति! यह सब मेरी माया है सब मेरी ही छाया है तुम जिधर भी देखोगे वह मेरी ही जाया है। क्या धरा क्या गगन सब पाताल में है मेरा अंश यह चहुँ दिशा भी मेरी है हर पहर चलता मेरे संग। मैं शिवशंकर वरदानी हूँ ब्रम्हा का अभिमानी हूँ दस दस शीश हुए है मेरे मैं परिवार का उद्दारी हूँ। मैं सूपनखा का जेष्ठ हूँ मैं इंद्रजीत का पिता हूँ दैत्यों का भरण करने वाला मैंने ही शिव तांडव रचयिता हूँ। मैं वेद पुराणों का हूँ ज्ञाता मैं राम को रण में ललकारता सारी दुनियाँ ने मुझे जाना है मैं लंकापति रावण कहलाता। एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति! #दशानन #रावण