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Bhupendra Maury Bhupendra Maury
चांद और मगलं पर जीवन खोजने वाले आज पृथ्वी पर अपना जीवन बचाने में लगा है ©Bhupendra Maury Bhupendra Maury मगलं
amit Kaushal https://youtu.be/9r2nccQ5RAI
Akshay iriM
Dev Dwivedi
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ मशहूर नहीं, मैं मगलूब होना चाहता हूँ, तू क्या दूर करेगी मुझे खुद से, मैं तो इस दुनिया से ही दूर होना चाहता हूँ.... ✍️Vibhor vashishtha vs Meri Diary #Vs❤❤ मशहूर नहीं मैं मगलूब होना चाहता हूँ, तू क्या दूर करेगी मुझे खुद से, मैं तो इस दुनिया से ही दूर होना चाहता हूँ.... ✍️Vibhor
Unconditiona L💓ve😉
ॐ नमः शिवायः AAP SAB KAISE HAI JI...??😇 भोले का प्रसाद!!फ्रूट्स वाले सभी एक एक उठा लीजिये Take it 🍎🍎🍓🍏🍒🍒🍏🍑🍊🍊🍋🍈🍋🍇🍌🍇🍍🍌🍌🍌🍌🍌🍌🍌🍌🍌🍌🌰🌰🌰🌰🍋🍋🍇🍊🍇🍊 😋😋🥳🥳🥳😁😁
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मगलूँ किसान मगलूँ की ज़िन्दगी भी उस समय इम्तिहान के दौर से गुज़र रही थी , जब उसने अपनी जिम्मेदारियों को समझा, और पिता के साथ मिलकर वह काम में हाथ बाटना चाहा, उसके लिए बाहर से पैसो की आमदनी चाहिए , जिसके लिए एक नौकरी की जरूरत होती है लेकिन एक किसान का बेटा होने के कारण वह ज्यादा पढ़ लिख न सका , किसी तरह बारहवीं की परीक्षा देकर परदेश निकल गया अपने चाचा के साथ , कुछ दिन बाद उसे वहां १५०० रुपये की नौकरी मिल गई लेकिन कुछ बचता नही था , लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता गया और वह अपने हुनर कुछ लोगो के सहयोग से वह कुछ काम सीख गया आज वह २४००० की नौकरी कर रहा ,इन्हीं दस बारह साल के बीच में उसकी शादी हो गई , ईश्वर की कृपा से एक लड़की जो आज आठवीं कक्षा में पढ़ती है और एक लड़का है जिसका जन्म के दो साल बाद से आज भी इलाज चल रहा है फिर भी घर खर्च किसी तरह चल रहा था ,लेकिन कुछ बच नही पा रहा था , क्योंकि उसके भोलेपन का उसके अपनो ने बहुत फायदा लिए और वो कर्ज में डूब गया , आज उसे अपने बच्चे के इलाज पढाई के लिए दूसरो के सामने हाथ तक फैलाने पड़े ,क्योंकि उसने कर्ज लेकर अपनों की मदद की ,लेकिन उसे अब बिल्कुल साफ दिख रहा था कि नौकरी से कुछ नही होगा , मेरी तरह मेरे बच्चे भी अनपढ़ रह जायेंगे , उसने खूब सोच समझ कर फैसला लिया , और अपने माता-पिता से बात की , कि एक बीघा अगर हम जमीन बेंच दे , तो सारा कर्ज भी खत्म हो जाए , और कुछ अपना काम कर लें , जिससे बुढापे में अपने लिए और अपने बिकलांग बच्चे के लिए भी कुछ बना सके , और चार छ: साल बाद लड़की की शादी के लिए भी पैसे कुछ हो जायेंगे , लेकिन किसी को विश्वास नही हो रहा था , कुल दो बीघे जमीन भी थी , कोई राजी इतनी आसानी से हो , मतलब ही नही, उधर उसकी माँ और पत्नी जमीन न बेचनी पडे इस सोंच में थे, सभी अपनो का मुँह तक रही थी , कि कोई मदद कर दे , लेकिन इस दुनिया में किताबों और कहानियों में देवता और दयालु मिलतें हैं , हकीकत में नही , उधर मगलूँ माँ और पत्नी को यही समझा रहा था कि अगर तुम्हें ही हम पर विश्वास नही तो कोई और क्यों करेगा हम पर विश्वास , वह भी पैसो पर , लेकिन समझने को तैयार नहीं , वैसे इस समाज की एक बुरी आदत है , सहयोग तो करता नही किसी की लेकिन उँगलियाँ बहुत उठाता है , उसमे इस समाज अगर तुमने जमीन बेंच दी , तो सब हीन भावना से देखते , बेशक तुम्हारे घर खाने को कुछ न हो , एक समस्या जमीन बेचने की यह भी थी , और परिवार की , वह अलग तो था लेकिन जमीने अभी पूरी तरह किसी के नाम नही थी , तो सबसे पूछना पडता ,फिर पूछे कौन , और अगर कोई पूछता है तो, सब राजी होंगे , इसकी कोई गारंटी नही थी, खैर कहानी अभी वही पडी थी , मगलूँ कल भी लाचार था , आज भी है , क्योंकि अभी तक कोई फैसला नही हुआ था कि करना क्या है , इधर मँगलू को चिंता खाये जा रही थी , की लडकी नाम स्कूल में कैसे लिखाए , लडके की दवाई कैसे लाए , लेकिन बात बिल्कुल साफ थी , कि मगलूँ उन सबके खर्चों का जरिया था , जो उनकी जरूरत पूरा करे , पर उसकी मजबूरी उसका दर्द समझने वाला कोई नही था , हाँ थोडी आस उसको अपनी माँ से आज भी है की वह कुछ करेंगी जो दूसरो को सही रास्ता और परिवार रिश्ते का महत्व बता रहा था आज उसी मगलूँ को पहली बार अपनी मजबूरी और भोलेपन पर गुस्सा आ रहा था , यह सोचकर कि जिस पत्नी को उसने अपनी जान से ज्यादा चाहा , आज वह अपने बच्चों की पढ़ाई दवाई की दुहाई दे रही है , न कि सहारा बने हौसला दे , मगलूँ यही कहता बच्चे मेरे भी तो है यह उन्ही सबके लिए सब कुछ आज मिटाने को बैठा हूँ, ताकि शायद कलकुछ उनके लिए बना सकूँ , लेकिन कोई समझ नही रहा था मगलूँ आज भी यही सोचकर पागल बना रहता है की मैं तो पिता से काम में हाथ बटाना चाहता था उनकी इस उम्र में तो उन्हें आराम देना चाहता था लेकिन अपनों की भलाई में जो विश्वासघात हुआ मैं अपने भी बच्चों के भविष्य का दुश्मन बन गया , यही कहता और कोसता की हे ईश्वर या तो मुझ जैसे आदमी को पिता न बनाए और बनाए तो इतना मजबूर इतना दयालु न बनाए की अपना तो क्या बच्चों का भी हक दान कर दें , यही कहते कहते मगलूँ घर की तरफ बढा और घर पहुंचा तो फिर वही बाते समझना समझाना की हम एक बीघा जमीन कैसे बेच दे दो ही बीघा तो है , बच्चा अपना एसा हे , कल उसके लिए कम से कम ये जमीन तो रहेगी उसकी पत्नी कह रही, लेकिन मगलूँ कह रहा की पैसे कमा के हम और जमीन ले लेंगे फिर बेचने मे दिक्कत क्या है ,और अगर मैं न रहा तो , क्या दो बीघे तुम सबका जीवन लडकी की शादी सब हो जायेगा ,फिर और रास्ता भी तो नही है और वही रिश्ते नाते है जो आज मेरे रहते कोई सहयोग नही कर रहे , तो मेरे न रहने पर क्या तुम्हारा सहयोग करेंगे , लेकिन किसी भी बात का किसी पर कोई असर नही हो रहा था,और मगलूँ के दिलो दिमाग पर एक बीघा जमीन जैसे छा गया था की बेचना है , और वही एक रास्ता भी था , लेकिन कहते है सबको समझा सकते हो लड सकते हो , पर अपनो से नही वही मगलूँ के साथ हो रहा था यहां मगलूँ का कहना सही था आज शरीर में ताकत है हम एक बीघा बेच कर कुछ कर सकतें है , लेकिन आज कुछ न किया तो उस उम्र में बेचकर खाने के सिवा दूसरा रास्ता नही होगा ,आज मगलूँ उसकी पत्नी बच्चे आपस में लडकर रोते है , और सारी गलती मगलूँ को देते हैं । और मगलूँ की आज कोई न सुनता , वह सबसे कहकर हार गया कि क्या करुँ गलतियां सबसे होती है , मुझसे भी हुई , तो क्या करुँ जीना छोड दूँ , इतना कहकर आज फिर मगलूँ घर से निकल गया ०५/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मगलूँ किसान मगलूँ की ज़िन्दगी भी उस समय इम्तिहान के दौर से गुज़र रही थी , जब उसने अपनी जिम्मेदारियों को समझा, और पिता के साथ मिलकर वह काम में