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मानससूत्र

#OpenPoetry मखमली कपड्यांनाच जपायचं असतं..
जाडभरड्या कापडांना कधी कोणी अस्तर लावतं का?? #कपडा#care

prakash punekar

रोटी कपडा और मकान #फ़िल्म

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amit. up61

कपडा किसने होखे.... #RepublicDay #happybadantpanchami #शायरी

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Vishal Yaduvanshi

कपडा करिया लागेला #फनीवीडियो funny video 😂😂😂😂 #कॉमेडी

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Prakash Acharya

साथी सुन्नुस न मान्छे को मन होस वा कपडा पुरानो भयेर केही फरक पर्दैन बस सफा हुनु पर्यो❤️❤️❤️❤️ #विचार

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sree

#मेरा भारत महान.. ना खाना था, ना कपडा, ना था मकान..! फिर भी उसने लिख दिया भारत मेरा महान..! - श्री कांबळे Umesh patidar Lakshmi singh Ma #poem #nojotophoto

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 #मेरा भारत महान..

ना खाना था, ना कपडा, 
ना था  मकान..!
फिर भी उसने लिख दिया
भारत मेरा महान..!
 - श्री कांबळे Umesh patidar Lakshmi singh Ma

Bãbå @kãsh.Pãthåk.

पिता, पिता रोटी है, कपडा है, मकान है, पिता, पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है, पिता, पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है, पिता है तो बच्चों को

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Anita Saini

#बसंत_पंचमी #देवी_शारदा राम राम सा आज बसंत पंचमी रे पावन तिंवार री आप सबनै मोकळी मोकळी बधाईयां। आज रे दिण विद्या री देवी माँ शारदा रो पूजण #YourQuoteAndMine #म्हारोराजस्थान #YQRajasthani #CollabKakaSa #म्हारी_भासा_म्हारो_स्वाभिमान #kirtikasat

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 माँ ,मै मुरख,अग्यानी,म्हारो  जीवणरो अग्यान हरो..!
माँ शारदे, म्हारे जीवण मै विद्यारो प्रकाश भरो..!

कर सकूँ कोई चौखो काम,इत्ती सी कृपा करो...
समाज मा फैळी कुरूतियों का, 
कुछ मै बी बिरोद करूँ इत्ती हिम्मत भरो...

शारदे माँ रा भंडार, सबसै अदभुत सबसै निराळो..!
जिंया -जिंया खरच करस्यो,बंया बंया बडतो जावळो...!
 #बसंत_पंचमी
#देवी_शारदा

राम राम सा
आज बसंत पंचमी रे पावन तिंवार री आप सबनै मोकळी मोकळी बधाईयां। आज रे दिण विद्या री देवी माँ शारदा रो पूजण

Varsha Patil

डोंबारी दोरीवरती तोल सावरत ती नाचते भर ऊन्हात रस्त्यावर तीखेळ दावीते कधी मुखी घास मिळे तर कधी ऊपाशी असते लहानपणातच दारीद्र्याचा भार ती पेलत

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डोंबारी

दोरीवरती तोल सावरत ती नाचते
भर ऊन्हात रस्त्यावर तीखेळ दावीते
कधी मुखी घास मिळे तर कधी ऊपाशी असते
लहानपणातच दारीद्र्याचा भार ती पेलत

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

बढ़ती जनसंख्या यहां , करती रही प्रहार । इच्छाओं ने और भी , बढ़ा दिए व्यापार ।। १ चीर हरण खुद का करे , फैशन देते नाम । नज़र पराई जो पड़े , कर #कविता #fog

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बढ़ती जनसंख्या यहां , करती रही प्रहार ।
इच्छाओं ने और भी , बढ़ा दिए व्यापार ।। १

चीर हरण खुद का करे , फैशन देते नाम ।
नज़र पराई  जो  पड़े ,  कर  देते  संग्राम ।। २

तन का कपडा काट कर , काटे अब वो जेब ।
हम कुछ पहचाने नहीं , हुनर कहे या ऐब ।। ३

देकर पैसे चार के , लेते एक समान ।
बनकर बुद्धू भी यहां , दिखलाए वो शान ।। ४

ऐसे कपड़े ले रहे , तन भी सके न ढाक ।
मन सुंदर समझे नहीं , तन सुंदर की धाक । ५

मारकीन पूछे नहीं , सबको भाए सिल्क ।
आज दूधिया दे रहे , गऊ छाप का मिल्क ।। ६

दाना दाना चुग रहे , पंक्षी जैसे आज ।
ऐसे हम कंगाल है , जिसका नही इलाज ।। ७

महँगाई का है नही , यहाँ कोई उपाय ।
जनता मर मर कह रही , हमको लियो बचाय ।। ८

भूखे प्यासे रोज हम, मजदूरो को जात ।
फिर भी बच्चों को कभी , न मिलता दूध भात ।। ९

चाहे जो कुछ त्याग दे , रहे बुरा ही हाल ।
विपदा हम गरीब की , मुश्किल में है दाल ।। १०

                  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बढ़ती जनसंख्या यहां , करती रही प्रहार ।
इच्छाओं ने और भी , बढ़ा दिए व्यापार ।। १

चीर हरण खुद का करे , फैशन देते नाम ।
नज़र पराई  जो  पड़े ,  कर
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