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Er.Shivampandit
एक छोटी सी कोशिश है काशी के महाश्मशान पे कुछ लिखने की जहाँ शव और शिव एक हो जाते है, जहाँ समय भी रुक जाता है, जहाँ वैराग्य का वास है 🙏 एक छोटी सी कोशिश है काशी के महाश्मशान पे कुछ लिखने की जहाँ शव और शिव एक हो जाते है, जहाँ समय भी रुक जाता है, जहाँ वैराग्य का वास है । 🙏
Abhishek Singh
बनारस; मेरे अज़ीज़ शहर... जल रहे हो तुम, है न! तुम्हारे सीने पर शवों का ढ़ेर है। तुम्हारी सांस में लाशों की चिरांध है। तुम देख रहे हो, खुद को मरते हुए, धीरे-धीरे। एहसासों को घुटता देखकर चित्कारते हो न तुम। मेरे अज़ीज़ शहर; तुम्हारी गलियाँ जिनसे औघड़, प्रेमी, वैरागी गुजरा करते थे, उन गलियों में लाशें चली जा रही हैं। जानता हूँ, दर्द में हो तुम। तुम्हारी वीरान सीढ़ियाँ तुम्हे रूलाती होंगी। गंगा मईया अपना स्नेह लिए तुम्हे छूकर लौटती हैं पर तुम्हारे जख़्म गहरे हो चुके हैं। बनारस; मैं तुम्हे जलता देख रहा हूँ। हमारा ईश्वर अपनी मौन करूणा लिए समाधि में लीन है। पदचापों से भरे तुम्हारे घाट... तुम्हारी हवा में उड़ते राख से भरते जा रहे हैं। तुम्हारा हृदय अश्रुओं में डूबा है। मैं भी दुखी हूँ, काशी। इतना लाचार हूँ कि लंका की किसी दुकान पर तुम्हारे साथ एक कुल्हड़ चाय बाँटते हुए तुम्हारे कांधे पर हाथ नहीं रख सकता हूँ। तुम्हे नहीं कह सकता हूँ कि उदास न हो, मैं हूँ यहीं। बनारस; मेरे अज़ीज़ शहर, तुमसे हो कर महाश्मशान तक पहुंचते शव मोक्ष नहीं चाहते। वह जीना चाहते थे। तुम खुद को कोस रहे हो, शायद। बनारस; मिजाजों की बस्ती हो तुम। टूटना नहीं। मेरे शहर, घोसला हो तुम। तुमसे दूर शहर को निकले परिंदे तुम्हारे लिए दुआ कर रहे हैं। वक्त की ये आंधी तुम्हारा एक तिनका नहीं बिखेर सकेगी। कोई प्रेमी अभी भी शवों के बीच से गुज़रकर तुम्हारी सीढ़ियों पर कुछ पल के लिए ही, बैठता है। एक वैरागी, तुम्हारे एकांत की चाह में तुम्हे यह पत्र लिख रहा है। तुम्हारी शून्यता असीम है, साथी। सब कुछ शून्य हो जाने दो। बनारस; मेरे अज़ीज़ शहर... जब ईश्वर नाराज़ होते हैं, मनुष्य एक हो जाते हैं। हमारा ईश्वर ख़फ़ा है। हम सब तुम्हारे साथ हैं। तुम्हारी गलियाँ फिर से गुलज़ार होंगी। तुम्हारी सांस में मांझी गीत गूंजेंगे। तुम्हारे तमाम प्रेमी तुम्हारे घाटों पर आ तुम्हे चूम लेंगे। शवों का ये सिलसिला ख़त्म हो जायेगा। मेरे शहर... वादा है, मैं पुनः आऊंगा तुम तक। मैं प्रतीक्षित हूँ, है न! मेरा इंतजार करना... मेरे अज़ीज़ शहर। हम दोनों एक कुल्हड़ चाय बाँटते हुए खिलखिला पड़ेंगे। अट्टहास करना तुम... देर तक। मैं अपनी यादों में तुम्हे कैद करता जाऊंगा। काशी... प्रेम हो तुम। ❤ आभार:Copyright@'सोच' ©Abhishek Singh बनारस; मेरे अज़ीज़ शहर... जल रहे हो तुम, है न! तुम्हारे सीने पर शवों का ढ़ेर है। तुम्हारी सांस में लाशों की चिरांध है। तुम देख रहे हो, खुद क
Amar Anand
काशी अविनाशी है !!! विशेष नीचे कैप्शन में... काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!! पंचकोशी काशी का अविमुक्त क्षेत्र ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं । ब्रह्माजी ने भगवान क