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कवि मुकेश मोदी
White *बेईमानी की शर्त ने ईमानदारी का दामन थमा दिया* ईमानदारी के साथ रहना मुश्किल समझकर मैंने उसे छोड़ने का फैसला करके यही तय किया कि अब तो बेईमानी को अपनाकर जिन्दगी को आसान बनाऊंगा। मैंने बेईमानी की ओर कदम बढ़ाए ही थे कि वो सामने आ गई। उसे देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मैंने उसे कहा कि आज ईमानदारी को छोड़ने का फैसला करके आया हूं। अब जीवन भर तुझे ही साथ रखूंगा। बेईमानी ने कहा कि अगर मुझे साथ रखोगे तो मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी। मगर मुझे अपनाने से पहले मेरी एक शर्त है कि तुम मेरा साथ जीवन भर ईमानदारी से निभाओगे, मुझे छोड़कर मेरे साथ धोखा नहीं करोगे। मैंने सोचा ये बेईमानी भी मुझसे उम्मीद करती है कि मैं ईमानदारी से उसका साथ निभाऊं । इसका मतलब बेईमानी को भी ईमानदारी पसंद है । यानि कि मुझे बेईमानी अपनाने में भी ईमानदार रहना होगा । फिर तो ईमानदारी को छोड़ने के बावजूद ये मेरे साथ ही रहेगी। और ये बेईमानी कौनसी ईमानदार है जो मुझे हमेशा खुश रखेगी, चैन और सुकून से रहने देगी, मुझे किसी मुसीबत में फंसने नहीं देगी। बेईमानी को चाहने वाले तो बहुत हैं। किसी और का साथ देकर मेरे साथ ये बेईमानी भी धोखा कर सकती है। जब बेईमानी के साथ भी ईमानदारी से रहना है तो फिर क्यों ना पूरी ईमानदारी से ईमानदारी का साथ निभाया जाए। ईमानदारी का जेवर महंगा जरूर है मगर इसे पहनकर रखना अच्छा है। इस बेईमानी का शुक्रिया जिसने ईमानदारी की शर्त रखकर मुझे ईमानदारी का दामन थमा दिया। *ॐ शांति* *मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान* *मोबाइल नम्बर 9460641092* ©कवि मुकेश मोदी बेईमानी की शर्त ने ईमानदारी का दामन थमा दिया
Mahesh Patel
White सहेली.... ईमानदारी हमेशा लाभ दे या न दे.. लेकिन..... बेईमानी आज नहीं तो कल भुगतान करवाती ही है... लाला.... ©Mahesh Patel सहेली... ईमानदारी... लाला..
Mahesh Patel
White सहेली...... ईमानदारी हमेशा लाभ दे या न दे.. लेकिन..... बेईमानी आज नहीं तो कल भुगतान करवाती ही है.... लाला.... ©Mahesh Patel सहेली... ईमानदारी.. लाला..
Alok Verma "" Rajvansh "Rasik" ""
White ईमानदारी का सच्चा पुरस्कार मिला, इस जहां में हर इंसान ईमानदार मिला, जो तरसता था कभी कौड़ियों के लिए, आज वही धन का असली पहरेदार मिला, राजनीति तो कूट-कूट कर भर ली है जिस्म में, यहां अपनों से ही राजनीति का हथियार मिला, जिसके एक इशारे पर घंटो बैठा रहता था मैं, आज वही लात मारने में होशियार मिला, देख "रसिक" तेरी वफ़ा का शिला मिला, मत हैरान हो इस जहां से तू कि क्या मिला, ईमानदारी का सच्चा ..…..............! ईमानदारी का पुरस्कार.....!🙏
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता