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Surendra Bohra
किसी इंसान को लक्ष्य बनाके आप जीवन को नहीं पा सकते पर अगर लक्ष्य जीवन है तो इंसान कई मिलेंगे। जीवन का लक्ष्य
upendra Kumar maurya
खुद की पहचान बनाने में जो मजा है, वो दुसरों की परछाई बनने में नहीं। ©upendra Kumar maurya जीवन का लक्ष्य
Birmohan Ganjhu
आप की बहुत याद आ रही है,, जिंदगी में आप हीं की कमी हो जा रही है। i miss you ©Birmohan Ganjhu जीवन का लक्ष्य
Rupesh
सूरज की रोशनी का कोई जोड़ नही लेकिन जीवन मे आगे बढ़ने के लिए छोटी सी रोशनी का होना काफी है बनावटी चेहरे से अच्छा एक छोटी मुस्कान ही जीवन मे उजाला ला सकती है ©Rupesh #जीवन का लक्ष्य
Rajveer Salvi
Alone दासता–ए–बेरोजगार चार बायीं छ: फ़ीट के बन्द कमरे में, बैठ स्कूल लेक्चरार की तैयारी में, जुटा है एक किशोर| कुछ बनने की ख्वाहिश लेकर चन्द सालों पहले अपना घर छोड़, कई मिलों दूर चला आया है, एक किशोर| बीते साल रीट में कुछ पॉइंट से रह गया था वो, इस अवसाद के साथ एक अनसुलझी, ख़ामोश ज़िन्दगी से बहुत कुछ ना कहते हुए भी, बहुत कुछ कह रहा है, एक किशोर| रोज़ इस फ़िराक से की कही पीछे ना छूट जाऊ मंझिल की राहों से, इस कम्पा देने वाली सर्दी में भी जल्दी उठ जाता है, एक किशोर| रुपयों की अहमियत और मेहनत की कमाई से जोड़ें पैसों की क़द्र समझ, कई किलोमीटर दूर कोचिंग तक पैदल अपने हौसले भरे पैरों से बढ़ा जा रहा है , एक किशोर| सर्दी आ रही है, मम्मी ने अपने हाथों की गर्म नरमाहट, प्यार और आशीर्वाद से भेजें स्वेटर को पहनकर, इस ढलती शाम में भागते वाहनों को चीरते हुए, अपने कमरे की ओर बढ़ रहा है, एक किशोर| पापा कह रहे थे, बेटा इस बार फसल अच्छी हो जाए तो, कुछ पैसे ज्यादा भेजूँगा, तू एक अच्छा नया स्वेटर ले लेना और पाव भर दूध भी लाकर पी लेना, बीते महीने तू आया था तो बड़ा कमज़ोर दिख रहा था, पापा के दुलार को बढ़ाने में दिन रात जुटा हुआ है, एक किशोर | पर यह क्या था , इस बार तो बारिश बहुत हुई पक्क चुकी फसलें पानी से भर गई चारों ओर खेत में पानी ही पानी था , पापा के इस दुःख पर अपनी ज़िंदगी से कई शिकायतों के सवालों, के सैलाब से जूझ रहा है, एक किशोर | छुटकी बोल रही थी, फ़ोन पे भैया महीनों हो गये आपको देखे, दीवाली भी आ रही है, आओगे ना आप इस बार , ना जाने बदलतीं सरकारें और सत्ता पाकर बेसुध हुए दो-दो शहनशाहो का, कब परीक्षा फ़रमान जारी हो जाये इस डर से इस बार दीवाली पर जाने से कुछ नरवश सा हो गया है, एक किशोर | बदलती सरकारों और बदलतें फैसलों महँगाई के चंगुल तथा शिक्षामंत्री जी की, चिड़िया उड़ कोवा उड़ खेल में बुरी तरह फंस चुका है, आज का हर एक किशोर | इस उम्मीद से की एक दिन नई सुबह आएगी उसकी जिंदगी में यही सोच रूखी सुखी रोटी खा कर चंद बिस्तर लिपटकर सो रहा है, एक किशोर | लेखक – कैलाश चंद्र सालवी #alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...