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Bhagwan Ji Jha
ये शायरी सारे ड्राइवर भाइयों के लिए. वो अपना काम करते है, किसका गुलामी नही करते, मेहनत करके (ऑटो, रिक्शा,बस, कैब चलाके) खाते है, किसकी सलामी नहीं करते! ये शायरी सारे ड्राइवर भाइयों के लिए. वो अपना काम करते है, किसका गुलामी नही करते, मेहनत करके (ऑटो, रिक्शा,बस, कैब चलाके) खाते है, किसकी सलाम
Ashraf Ansari News Reporter
Sunil itawadiya
दोस्तो प्यार कोई एक्टर डॉक्टर या कलेक्टर की पाली हुई जागीर नहीं है it is universal प्यार कोई भी कर सकता है ऑटो रिक्शा वाले से लेकर अंबानी तक सब में एक ही चीज कोमन है और वो है प्यार👉😊💐 दोस्तो प्यार कोई एक्टर डॉक्टर या कलेक्टर की पाली हुई जागीर नहीं है it is universal प्यार कोई भी कर सकता है ऑटो रिक्शा वाले से लेकर अंबानी तक
Vandana
किसी ट्रक के अचानक सामने से गुजर जाने के बाद,, किसी ऊंची लहर के निकल जाने के बाद,, किसी पहाड़ की ऊंचाइयों से नीचे गहराइयों को देखने के बाद,,, किसी मुश्किल बीमारी से जूझने के बाद,, जो एहसास बचता है,,, वो है जिंदगी का,,सबसे अनमोल जिंदगी,, कितना शुक्रगुजार होता है इंसान कितनी चरम आनंदमय स्थिति होती है वो,,, कभी हम किसी चीज को बस यूं ही समझ लेते हैं बस मुफ्त का,,, कभी हॉस्पिटलों में जाओ कभी झुग्गी झोपड़ियों में सड़क के किनारे तंग हाल जीवन बिताते
Vandana
प्रकृति ने मुझे स्त्री बनाया⚘ इसके लिए मैं प्रकृति का धन्यवाद करती हूं🙏 मैं स्त्री हूँ मैं गर्व से कहती हूँ मुझे अपने होने में गर्व है,,,, मैं चंचल शोख हंसी माधुर्य प्रेम दया से परिपूर्ण हूँ,,,, मैं सौंदर्य,मैं
dilip khan anpadh
रिक्शावाला (दर्द भरा रैप) ******************* देख मुझे गुलफाम कैसे बन जाता हूं? रिक्शा मेरी रोटी है बस इसको चलता हूँ। आन-बान-शान से जब घंटियां बजाता हूँ बूढ़े हो या हो बच्चे घर पहुंचाता हूँ। लोग मोल-तोल से मुझे नाप जाते हैं खून मैं जलाता हूँ ना शोर मचाता हूँ। खाली अंतड़ी ऐंठ पैडल घुमाता हूँ अंग्रेजी में थैंक्स सुन थोड़ा मुस्काता हूँ। धोखा नही,गफलत नही घर-घर जाता हूँ पैसे कम मिले तो क्या कभी चिल्लाता हूँ? भूखा हूँ, ना सोता हूँ भाग्य आजमाता हूँ चंद पैसों में ही मैं दुनियां घूमता हूँ। सास-बहू,मुन्ना-बेटी मुझे बाबा कहते है सीने को फूला के मैं खुश हो जाता हूं। कीमत मेरी कौड़ी की है ऐसा सभी कहते है महफूज तेरी मंजिल हूँ मैं भरोसा दिलाता हूँ। धूप-धूल-बारिसों में हठी बन जाता हूँ छाले परे पांव मैं क्या कभी दिखलाता हूँ। कील मेरे जूते का जब मुझे सहलाता है दांत भींच लेता हूं ना हाथ फैलता हूँ। घर नही,छत नही क्या कभी बताता हूँ आधे पेट खा के भी मैं भूखा सो जाता हूँ। जब तक सांस मेरी हड्डी से कमाता हूँ होके जर्जर फिर कंही दफन हो जाता हूँ। दिलीप कुमार खाँ""अनपढ़" #रिक्शा वाला