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Shashi Bhushan Mishra
ज़िन्दगी बदहाल, रह गया मलाल, अधूरे सब स्वप्न, ख़्वाब और ख़्याल, मिल नहीं पाये, गाल और गुलाल, बीज का रहबर, खेत और कुदाल, शुष्क धरती पर, फसल थी बेहाल, घर में किलकारी, मच गया धमाल, प्रेम की बारिश, गुंजन हुआ निहाल, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज ©Shashi Bhushan Mishra #रह गया मलाल#
Arora PR
White दूर चला गया हैं वो मेरा दामन छिटक कर जिसे हमने जिंदगी के सफर के लिए हमसफर समझा था उसकी तलाश मे मैंने गली मोहल्लो की खाक छान ली हैं....बस्ती का हर दरवाज़ा भी बजा कर देख लिया हैं पर पतानहीं वो किस तरफ क़ो निकल गया हैं ©Arora PR दूर चला गया गया हैं वो
malay_28
White किया जिसने क़तल मेरा वही तो जान है समझो करूँ सज़दा नहीं कैसे वही भगवान है समझो. ©malay_28 #क़तल किया
Ganesh Joshi
White वादा था मुकर गया... नशा था उतर गया... दिल था भर गया... इंसान था बदल गया.. ©Ganesh Joshi वादा था मुकर गया... नशा था उतर गया... दिल था भर गया... इंसान था बदल गया.#.SAD #
KUNWA SAY
White हसीनो ने हसीन बनकर कर गुनाह किया , ओरो को तो किया हमको भी तबाह किया यारो पेस किया जब ग़जलों में , हमने उनकी बेवफाई को ,, ओरों ने तो किया उन्होंने भी बाह-बाह किया . फोलो करें bro ©KUNWA SAY #SAD हसीनो ने हसीन बनकर कर गुनाह किया , ओरो को तो किया हमको भी तबाह किया यारो पेस किया जब ग़जलों में , हमने उनकी बेवफाई को ,, ओरों ने
Kiran Chaudhary
ये भी शायद ज़िंदगी की इक अदा है दोस्तों, जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया। ©Kiran Chaudhary जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया।
Shashi Bhushan Mishra
अरसा बीत गया घर छोड़े, गाँव गली सबसे मुँह मोड़े, निकल पड़ा रोजी तलाशने, पग-पग खाते संघर्ष थपेड़े, कठिन समस्या ने आ घेरा, बादल बन घिर आए घनेरे, वक़्त पे साथ न देता कोई, मिल जाते साथी बहुतेरे, याद बहुत आते हैं अपने, परदेशी मन शाम सवेरे, सफर में कट जाती हैं रातें, भूल गये सब रैन बसेरे, पीड़ा कोई न समझे 'गुंजन', विरह में मन को साँप डँसे रे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #अरसा बीत गया#
HintsOfHeart.
"कहते हैं, धरती पर सब रोगों से कठिन प्रणय है लगता है यह जिसे, उसे फिर नींद नहीं आती है दिवस रुदन में, रात आह भरने में कट जाती है मन खोया-खोया, आँखें कुछ भरी-भरी रहती है भीगी पुतली में कोई तस्वीर खड़ी रहती है"¹ ©HintsOfHeart. #रामधारी_सिंह_'दिनकर' के काव्य नाटक #उर्वशी' से। 1.इसके लिए 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
सत्यमेव जयते
जिसने भी खुद को खर्च किया है, दुनिया ने उसी को Google पर Search किया है।” ©Kumar Vinod #Search किया है।”
Shashi Bhushan Mishra
रूठ गया जब मन का सपना, नींद ख़राब करूँ क्यों अपना, प्यास हृदय की मिट जायेगी, राम नाम की माला जपना, मुफ़्त मिले तो मूल्य न समझे, सुख पाने को पड़ता तपना, बुरा वक़्त पहचान कराये, कौन पराया कौन है अपना, कोई नहीं बचा है जग में, समय चक्र है सबका नपना, जगह दिलों में बने तो बेहतर, अख़बारों में क्योंकर छपना, सदुपयोग सीख ले 'गुंजन', पड़ता है सबको ही खपना, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रूठ गया जब#