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kumaarkikalamse
हुई एक खता और इल्ज़ाम लगे बेहिसाब टूटा भी, बिखरा भी चकनाचूर हर ख्वाब! मैंने उनकी हर गलती कर दी थी नजरअंदाज उन्होंने मेरी एक भूल पर कर दिया रिश्ता ख़राब! वृत्त रूपी जिंदगी की एक त्रिज्या वे, एक हम केंद्र बिंदु पर आ गई दूरी व्यास का ना रक्खा हिसाब! वृत्त का केंद्र बिंदु विश्वास है त्रिज्या और व्यास दोनों खास है..! जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है..! #kumaarsthought #kumaaronlove #kumaaronz
kumaarkikalamse
प्रेम के 'वृत्त' का 'केंद्र बिंदु' होता है विश्वास 'त्रिज्या', 'त्रिज्या' मिलकर बनाती हैं 'व्यास' जिसको समझ नहीं इस 'ज्यामिति' की उनके लिए 'परिधि' भी नहीं होती खास। P. S. - PINTEREST Inspird by Alien Friend (रोली जी) आज उनसे बात करते करते यह एक thought दिमाग में आया, किसी कारण से उस time पूरा नहीं लिख
Bazirao Ashish
मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या। जिसका केन्द्र हो सिर्फ़ अयोध्या। और अनन्त हो मेरे यात्रा की त्रिज्या। मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या।। ~●आशिष●द्विवेदी●~ ©Bazirao Ashish मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या। जिसका केन्द्र हो सिर्फ़ अयोध्या। और अनन्त हो मेरे यात्रा की त्रिज्या। मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या।।
Vibha Katare
मेरे जीवनवृत्त के तुम केंद्र बिंदु.. और मैं इसकी परिधि.. मेरे मन की हर नेह त्रिज्या जोड़े मुझको तुमसे.. #Collab and write a fun #mathpoem. A math poem is one that uses a maths formula or theory to make a point about life. Here’s my try: You me
AB
// caption // बोलो.,. प्रेम का कौन सा आकाशविषयक नवीन सूत्र प्रतिपादित
Shikha Mishra
ज़िन्दगी के इन ताने-बानों में उलझती जा रही हूं, सब समेटने की चाह में मैं ख़ुद बिखरती जा रही हूं। दम तक तोड़ने वाली चुनौतियां मिली हैं कई दफ़ा, हालातों से लड़कर, मैं जीना सीखती जा रही हूं। मेरी हंसी देख लगता है उन्हें, मैं टूटी हीं नहीं कभी, कैसे यकीं दिलाऊं, मैं टुकड़ों में बंटती जा रही हूं। कोशिश तो तुमने भी अच्छी की तोड़ने की मुझे, पर देखो, यारा! मैं फिर भी मुस्कुराती जा रही हूं। क्या बताऊं मैं किस क़दर उसकी यादों में जलती हूं, पर अपनी हंसी से मैं, लोगों को जलाती जा रही हूं। पढ़े और सुने तो थे,'जूही', दोस्ती के तराने कई, सिला देख, अपने याराने की त्रिज्या घटाती जा रही हूं। ज़िन्दगी के इन ताने-बानों में उलझती जा रही हूं, सब समेटने की चाह में मैं ख़ुद बिखरती जा रही हूं। दम तक तोड़ने वाली चुनौतियां मिली हैं कई दफ
Bhaskar Anand
कवि राहुल पाल 🔵
मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी संगामी रचना में हम ढ़लते रहे !१! वो प्रमेय जैसे हमको सताते रहे हर एक बिंदु पर चाप हम लगाते रहे व्यास की आस थी वो त्रिज्या बने , हम परिधि पर बस चक्कर लगाते रहे !२! जब भी सोचा उन्हें संग जोड़ने को वो लगातार हमे खुद से घटाते रहे , जाने कैसे वो दिन प्रतिदिन दूने हुए हम गुणनखण्ड में ही टूट जाते रहे !३! वो न देखे हमारी तरफ अब कभी , साथ हर बिदु का उनसे निभाते रहे, वो थे हमारे हर केंद्र का केंद्र बिंदु , बस हर डगर डग को उनसे मिलाते रहे ..!४! जब मैं न्यून बना,वो अधिकतम बने कोंण सम्भव दशा से दूर जाते रहे विकर्ण थे मेरी इस जिंदगी का जो उनसे खुद को कई बार हम मिलाते रहे !५! वो अंक बने और मैं बना शून्य सा , वो दशमलव को लगा भूल जाते रहे प्यार के ब्याज का जब बंटवारा हुआ लाभ में वो रहे,हानि को खुद पाते रहे !६! तब सरल कोंण सी थी उनसे नजरें मिली आज समकोण से वो नजरें झुकाते रहे .. मैं बिना लक्ष्य की "राहुल "शब्द रेखा बना बस अनन्त यादें अनन्त तक ले जाते रहे !७! ~~((( गणित की विधा में प्रेम )))~~ मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी
AK__Alfaaz..
उसके अठ्ठारहवें बसंत की, अंतिम पूनम की साँझ को, अमावस की, पहली चिठ्ठी आती है, उसके नाम, जो लाती है, कभी, उत्तरित नही हुए, कुछ, अनुत्तरित प्रश्न, व..कुछ प्रश्न वाचक चिन्ह, जो चिपके रहे सदा, माथे की बिंदिया बनकर, उसके आखिरी सावन की, साँवली साँझ तक, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #साँवली_साँझ उसके अठ्ठारहवें बसंत की, अंतिम पूनम की साँझ को, अमावस की, पहली चिठ्ठी आती है,