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Azaad Pooran Singh Rajawat
White पानी ना पौधे कहां बनाए हम घरोंदें वृक्ष लगाएं, पक्षी बचाएं दाना - पानी डालें परिंडे लगाएं पक्षी प्रजातियों को लुप्त होने से बचाएं। ©Azaad Pooran Singh Rajawat #Hope #पक्षी #
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
Ravendra
Deepak Gupta
धरती पर प्रकृति ने सुंदर पक्षी बनाएं उनकी चह चाहठ कोलाहल से वातावरण गूंज मान होता है ©Deepak Gupta # हमारे पक्षी
Negi Girl Kammu
Village Life यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम। मैंने बचपन से देखा है, अपनी दादी को । जो सुबह उठते ही मुंह धोने से पहले चारा देती हैं हमारी गाय को। घर के आंगन में बधे पशु जाने कैसे मेरी दादी की आहट को सुन लेते है। दरवाजे खुलने की आवाज न जाने वह कैसे पहचान लेते हैं। वो भी समझ जाते हैं कि काली घनी अंधेरी रात अब जा चुकी है। सुबह का सूरज बस उगने वाला ही है । जैसे ही दादी घास की गठरी को उनके आगे फैकती है। वह भी झट से उठकर दादी के हाथों को चाटते हैं । अपनी लंबी सी जीव निकाल के कभी दादी की धोती पर तो कभी दादी के बालों को चाटने लगते हैं । शायद वह भी दादी को प्यार करते हैं। घास के बदले में पशु दादी को ढेर सारा प्यार देते हैं। अपने सुबह के चारे को देख पशु खुशी से झूम उठते हैं। चारा खाने के बाद पशु अब कुछ पानी पीना चाहते हैं। और वह लंबी सी जीभ को निकाल के अपने मुंह के दाएं बाएं फेरते है । मेरी दादी साक्षर नहीं है, उसने कभी भी पशुओं के लिए कोई अलग सी पुस्तक नहीं पढ़ी, लेकिन वह उनकी भाषा को जानती है। दादी समझ जाती है ,कि उसे अब प्यास लगी है । और फिर क्या दादी झट से एक बाल्टी भर के पानी ले आती है। और रख देती है गौशाला में पशुओं के आगे। सभी झट से पानी को पीने लगते हैं । वह बहुत देर तक बाल्टी में सर डुबो के चुस्कियां लेते है। यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम। यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम।। ©Negi Girl Kammu पशु प्रेम।
Jagdish Pant
फूल देई का त्यौहार था, मैं फिर भी बैठा अकेला था । चारों तरफ़ हर्षोल्लास था, मैं अकेला बैठा निराश था । जब मैने चारों तरफ देखा , तब पता चला कि मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में बैठा अकेला उदाश था ।। ✍️ Jagdish Pant आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।