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suryachoudhery
मारवाड़ रे परगना री विगत जहां रची है मरु देश रे रग रग में संस्कृति बसी है मैं ऐसा प्रदेश महान हूं देखो वह मैं राजस्थान हूं। खेजड़ी की गोद में लहराता हूं गोगा तेजा पाबू के गुण गाता हूं मैं इस धरती के सुरो का अरमान हूं वो रंगीला रूडा मैं राजस्थान हूं। मैं वही गुरुओं का उपदेश हूं मैं संत पीपा का संदेश हूं मैं पंच पीरों का स्थान हूं मैं आपका राजस्थान हूं । मैं उत्तर में खड़ा वह भटनेर हूं दक्कन में अडीग मेवाड़ हूं पूर्व में जाटों का सम्मान हूं मैं मरुस्थल का स्थान हूं प्यारे मैं राजस्थान हूं । मैं सांगा का अभिमान हूं मैं प्रताप का स्वाभिमान हूं मैं पद्मनी जोहर का स्थान हूं मैं क्षत्राणियों का राजस्थान हूं। मैं आमजन का सपना हूं मैं परदेसियों का अपना हूं मैं चंद्रवरदाई की राग हूं मैं भाटो का राजस्थान हूं । मैं अभिमानी जन का नाशक हूं मैं राणा कुंभा जैसा शासक हूं मैं मुगलों का श्मशान हूं मैं हल्दीघाटी वाला राजस्थान हूं । मैं कपिल मुनि की तपोभूमि मैं दादू दयाल की वाणी हूं मैं भारतवर्ष का खंड महान हूं मैं वीरभूमि राजस्थान हूं । मैं दुश्मन पर जयकार हूं मैं ओजस्वी सिंहो सी दहाड़ हूं मैं वीर भूमि का "परमार" हूं जी हां मैं "राजस्थान" हूं । ©suryachoudhery मैं वीर भूमि राजस्थान हूं #WritersSpecial
Anjaan Saraswat
युद्ध नाद ०००००००००००००० नाना अनुनय के शंद पढे़, हम याचनाएँ नित करते रहे, पर उसने एक ना मानी है! बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।। कमज़ोर पे उसने बल डाला, चहूं और है ऐसा छल डाला, कायर ने छाती तानी है, बस युद्ध हो ऐसी ठानी है। कुदृष्टी ऐसी प्रबल डाली, सब बसुधा उसने खल डाली, नित करता वह नादानी है, बस युद्ध हो ऐसी ठानी है। धम्भी ने जाल विछाया है, बच्चा-बच्चा थर्राया है, खुद को समझे नाफानी है, बस युद्ध हो ऐसी ठानी है। वह कहता है 'भगवान हूँ मैं, ना माने तो, शैतान हूँ मैं, कोई ना मेरा सानी है', बस युद्ध हो ऐसी ठानी है। कई बार है उसको चेत्ताया, हमने पुरज़ोर है समझाया, हाय कैसा वह अज्ञानी है! बस युद्ध हो ऐसी ठानी है। हर जीव का उसने त्रास किया, मनु जीवन का उपहास किया, कैसा दम्भी अभिमानी है, बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।। ऐसे पौरुष का लाभ है क्या? डर कर जीने का भाव है क्या? समझो, तब व्यर्थ जवानी है, बस युद्ध हो ऐसी ठानी है। अब फैंसला इसी क्षण होगा, मिट्टी में मिट्टी तन होगा, जब वीर धरा पर उतरेंगे, अति घोर भयंकर रण होगा! ०००००००००००००००० कापि र० अंजान सारस्वत #अंजान#सारस्वत#कविता#वीर-रस
RKB
🔶प्रथम देशभक्ति कविता(वीर रस) 📝क्या भूल सकेंगे वो काला पानी जो वीर सावरकर को पीना था मौत भी सिहर जाए वहा कैसा मुश्किल वो जीना था 🔶बहुत खाये कोड़े किसी ने तन पर गहरे घावों को झेला है तब जाकर आज मनाते हम हर दिन खुशियो का मेला ©RKB 🔶प्रथम देशभक्ति कविता(वीर रस)