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रजनीश "स्वच्छंद"

नयन नहीं जो भींगते, जब देखा संताप।
निज मानव क्या मानना, क्या अंतर पशु आप।।

©रजनीश "स्वच्छंद" #आदमी #इंसान

अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

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‌Abdhesh prajapati

आदमी को आदमी होने में

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White एक पल नहीं लगता
 इस दुनिया से बिदा होने में फिर भी कितना गुरूर है
आदमी को आदमी होने में..?

©‌Abdhesh prajapati आदमी को आदमी होने में

अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

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पूर्वार्थ

#आदमी

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White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष

शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं,
कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं।

पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है?
जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है?

वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है।
सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता।

हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता।
दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार।

घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है।
बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है।

पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द?
उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम।

वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता।
उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता।

जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती।
कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए?

कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं।
"तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?"

आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान।
कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता।

पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता।
जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा?

वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं।
उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है।

तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं।
शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए।

वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए।
क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है।

©पूर्वार्थ #आदमी

Sr Amar Babu

#SunSet वो तस्वीर दिखा कर सीमांतीकृत है अपने बेटे को, बेरोजगार आदमी किसी काम का नही. शायरी 'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द

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हिमांशु Kulshreshtha

वो...

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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset 

वो 
आया था 
मेरी जिन्दगी में 
एक बहार की तरह 
गुज़रा मेरा वक़्त 
खूबसूरत ख्वाब की तरह 
एक दिन.. 
दिल में मेरे 
इंतिज़ार की लौ जलायी 
और फ़िर चला गया 
लौट के  भी 
न आएगा ये भी बता गया।
दिल मेरा दर्द-ओ-ग़म से 
हो गया बेहाल तो लगा
जैसे दरिया में 
समंदर ही समा गया
बेशक वक़्त-ए-रुख्सत
वो ख़ामोश था मगर
होंठों का काँपना 
पूरा क़िस्सा जता गया
ख़बर है मुझे 
उसकी बेबसी की 
उसने ख़ुद को
तो दी ही थी सज़ा 
मेरी जिन्दगी को भी 
दुश्वार कर गया 
जिसके साथ सजाई थी 
मैंने मुख्तसर सी दुनियाँ
डर के फ़िर 
दुनियाँ की ख़ुद गर्जी से 
जिन्दगी मेरी बियाबान 
बनाई और चला गया
एक ख़ामोश शिकायत लिए
आज भी इंतजार
करता हूँ उसी शिद्दत से
जो बचे हैं चंद पल
इस जिंदगी के
तेरी यादों के साए में बसर करता हूँ

©हिमांशु Kulshreshtha वो...

vksrivastav

जश्न अच्छा है आदमी के लिए Quotes SAD Trending Love vksrivastav

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kevat pk

वो

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sanju पहाड़ी

# वो सामने

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