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Laxmi Yadav
कितनी उम्मीद से नौ माह माता निहारती, देखने अपनी ही प्रतिकृति कितने पलक- पुष्प बिछाती, कितनी उम्मीद से एक तात बाट जोहता, देखने अपना बचपन कितने सपनो की तस्वीर बनाता, अपने अरमानो को स्वाहा कर वो लाल के सपने संजोता, कितनी बार उम्मीद दम तोड़ती कई बार तूफ़ाँ से टकराती कश्ती, एक ना आने वाले कल के इसी उम्मीद मे जिंदगी गुजर गई, अपने लाडले के सपने पूरे करने कब जीवन की शाम ढल गई, तब आया, अपनों से उम्मीद का बुढापा छत भी वही, आंगन भी वही, मात- तात की ममता भी वही, बस, लाडला बड़ा हो गया, जीवन की मृगतृष्णा में वृद्ध मात- पिता की उम्मीदों ने, आखिर दम तोड़ दिया....... । लक्ष्मी यादव 🙏 ©Laxmi Yadav # मृग तृषा
प्रितफुल (प्रित)
तृषा... फिरुनी इथे पाऊल का माझे थबकते आजही डोळ्यांत भेटीची कशी आशा चमकते आजही नजरानजर झाली अशी धुंदावला बघ जीव हा फुलपाखरू स्वच्छंद ते स्वप्नी विहरते आजही ती भेटता होई दिवस अन् सांज हो जाताच ती कवटाळुनी एकांत ही रात्र तळमळते आजही हसणे तिचे दिसणे तिचे मधुमास होता बहरला गंध उडला रंग नुरला का फुल उमलते आजही गझलेमध्ये कवितेमध्ये गुंफीत गेलो मी तिला निवृत्त केली लेखणी का काव्य स्फुरते आजही अव्यक्त माझी प्रीत का हृदयामध्येच गुदमरली कळली तिलाही ना कधी मज बोच सलते आजही ना शोक विरहाचा तिच्या ना बोल नशिबा लावतो पण ओढ त्या नात्यातली व्याकूळ करते आजही ©प्रितफुल (प्रित) #तृषा अत्रंगी रे...!!!
Sk
नींद कहां उनकी आंखों में जो धुन के मतवाले हैं गति की तृषा और बढ़ती जब पढ़ते पग में छाले हैं ©Sk नींद कहां उनकी आंखों में जो धुन के मतवाले हैं गति की तृषा और बढ़ती जब पढ़ते पग में छाले हैं
Rashiv
नींद कहां उनकी आंखों में जो धुन के मतवाले हैं गति की तृषा और बढ़ती जब पढ़ते पग में छाले हैं ©Rajkumari नींद कहां उनकी आंखों में जो धुन के मतवाले हैं गति की तृषा और बढ़ती जब पढ़ते पग में छाले हैं
SURAJ आफताबी
अयोनि सखा ये प्रेम मेरा, गर्भ सा इसका अयान नहीं; नीर - समंदर धरा के सब मृषा , इस तृषा का यहाँ कोई बखान नहीं! जज्बात गहरे उकेरने का प्रयत्न किया है! अयोनि- जो गर्भ से न जन्मा हो अयान- स्वभाव मृषा- झूठ तृषा- प्यास #yqbaba #yqdidi #yqhindi #bestyqhind
Mohan Solanki
आप अनायास ही मिले अद्भुत हीर से। द्रवित हृदय की सांत्वना के स्पर्श धीर से। अभिशप्त एकाकी थी यह जीवन चर्या । तृषित मन की तृषा तृप्ति मिले
Trisha Madhu
Bhaskar Anand
Nadbrahm
हे धवल चंद्र सी प्राणप्रिय बस प्रेम सुधा अवदान करो जग बिसरा कर यह क्षण जी लो बस लावण्य प्रेम का पान करो बन मेघ सोमरस बरसाओ युग युग की मेरी तृषा मिटे सरिता सी मुझे समेट चलो जड़ता जीवन से रोज घटे ©BK Mishra हे धवल चंद्र सी प्राणप्रिय बस प्रेम सुधा अवदान करो जग बिसरा कर यह क्षण जी लो बस लावण्य प्रेम का पान करो बन मेघ सोमरस बरसाओ युग युग की म
यशवंत कुमार
वो चेहरा 'तुम्हारा' है मेरी बातों का मेरे जज्बातों का मेरे ख्यालों का मेरे सवालों का Read in caption... वो चेहरा "तुम्हारा " है। मेरी बातों का मेरे जज्बातों का मेरे ख्यालों का मेरे सवालों का मेरी तन्हाईयों का मेरी परछाईयों का