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Divyanshu Pathak
"बप्पा के बाद" भोज ने मेवाड़ में शान्ति बनाए रखी,महेंद्र की हत्या कर भीलों ने उनकी ज़मीन छीन ली।नाग केवल नागदा के आसपास अपना अधिकार बनाये रखा।शिलादित्य अधिक योग्य निकला उसने भीलों को हराकर अपनी भूमि बापस ली।अपराजित ने शिलादित्य का साथ दिया और गुहिलों का वर्चस्व बढाया।कालभोज के बारे में जानकारी नहीं ऐसा माना जाता है कि यशोवर्मन के सैन्य अभियानों में मदद की थी।खुम्मान को मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ा किन्तु वे कौन थे ये विवादास्पद है।मत्तट से महायक तक का समय राष्ट्रकूटों,प्रतिहारों के साथ उलझने में गया और वे सामन्त बन कर रहे। 877 ई. से 926 ई. के बीच खुम्मान तृतीय ने गुहिल राजवंश को पुनः प्रतिष्ठित किया।भरतभट्ट ने इसे बनाये रखा।अल्लट ने देवपाल परमार को हराकर गुहिलो
Vishw Shanti Sanatan Seva Trust
जय श्री राधे ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust जगद्गुरु स्वामी रामानंदाचार्य की जयंती स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य ने हिन्दू धर्म को
Vikas Sharma Shivaaya'
ॐ:हिंदू धर्म में ॐ शब्द को सबसे महत्वपूर्ण शब्द की संज्ञा दी गयी है जो सभी मंत्रो व शब्दों से सबसे ऊपर व सर्वोच्च हैं। ॐ अपने आप में एक पूर्ण मंत्र है जिसका उच्चारण हर धार्मिक कार्य व यज्ञ से पहले किया जाता हैं। यहाँ तक कि जब बच्चे का उपनयन संस्कार किया जाता हैं अर्थात जब उसकी शिक्षा प्रारंभ की जाती हैं तब सर्वप्रथम उससे ॐ मंत्र का ही जाप करवाया जाता हैं। ॐ एक ऐसा शब्द हैं जो संपूर्ण ब्रह्मांड में गुंजायेमान हैं और एक गूंगा व्यक्ति भी इसका उच्चारण कर सकता हैं। ॐ या ओम शब्द तीन अक्षरों के मेल से बना हैं जो स्वयं ब्रह्मा, विष्णु व महादेव का प्रतिनिधित्व करते है। इसका सर्वप्रथम अक्षर “अ” हैं जो मुख से निकलने वाला प्रथम अक्षर हैं व इसके उच्चारण से नाभि पर बल पड़ता हैं जो हमारी रचना को दर्शाता हैं। जब हम गर्भ में होते हैं व जन्म लेते हैं तब हम अपनी माँ के द्वारा गर्भनाल से जुड़े होते हैं जो हमारी नाभि से निकलती हैं। हम अपना खाना-पीना सब इसी से प्राप्त करते हैं। जन्म लेने के बाद चिकित्सक इसे काट देते हैं अर्थात यह स्वयं ब्रह्म का प्रतीक हैं जो हमारे रचियता है। ॐ शब्द का दूसरा अक्षर “उ” होता हैं जो हमारे हृदय से निकलता हैं जो हमारे जीवन यापन का प्रतिनिधित्व करता है अर्थात यह विश्व के पालनहार भगवान विष्णु से संबंध रखता हैं। ॐ शब्द का अंतिम शब्द “म” होता हैं जो हमारे कंठ से निकलता हैं व वहां कम्पन्न उत्पन्न करता हैं। कंठ भगवान शिव से संबंध रखता है जो हमारे जीवन चक्र के समाप्ति का प्रतीक हैं। इस तरह से ॐ का उच्चारण करने से हम ब्रह्मा, विष्णु व महेश का आह्वान करते है। इस मंत्र के लगातार जाप से व एकाग्र मन से हम सीधे ब्रह्मांड से जुड़ सकते हैं क्योंकि यही ब्रह्मांड की ध्वनि हैं। ॐ एक ऐसा शब्द हैं जिसकी कोई उत्पत्ति या अंत नही हैं व बाकि हर शब्द या अक्षर, इसी ॐ शब्द के अक्षरों के सम्मलेन से बनते हैं। 1. ॐ बोलने के फायदे: मानसिक शांति-यदि आप तनाव से ग्रस्त है या अवसाद में हैं तो ॐ इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके लिए आप एकाग्र मन से कुछ देर आँखे बंद करके ॐ मंत्र का जाप करे जिससे आपके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा व आपका मन शांत होगा। इससे मनुष्य को मानसिक शांति की अनुभूति होती है व उसका मानसिक विकास होता हैं। 2.ॐ जाप के फायदे: सुचारू रक्तसंचार-यह आपके शरीर में रक्त के सुचारू प्रवाह में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका निरंतर व प्रतिदिन जाप करने से आपके शरीर में रक्त संचार सुचारू रूप से बना रहता है जिससे आपको कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। 3.ॐ उच्चारण के फायदे: अनिद्रा की समस्या में -यदि आप नींद ना आने या कम नींद आने की समस्या से परेशान हैं तो इसमें भी यह मंत्र आपकी मदद कर सकता हैं। रात को सोते समय आप इस मंत्र का शांत मन से उच्चारण करे व इसे 10 मिनट तक करे। इससे आपको नींद तो आएगी ही बल्कि आप नकारात्मक स्वप्नों से भी दूर रहेंगे। 4.ॐ बोलने के फायदे: मजबूत चेतना -जब हम ॐ मंत्र का जाप करते हैं तो इससे हमारा मन मस्तिष्क एकाग्र होता हैं व हमारी बुद्धि तेज बनती है। इसका निरंतर जाप करते रहने से आपकी याददाश्त में बढ़ोत्तरी होती हैं व आपकी चेतना मजबूत होती हैं। 5.ॐ जाप के लाभ: ह्रदय व फेफड़ों की मजबूती-इस मंत्र में आप जिन अक्षरों का उच्चारण करते हैं वे हमारे कंठ, ह्रदय व नाभि में कम्पन्न करते हैं जो हमारे शरीर के अंगों को स्वस्थ रखते हैं। इससे आपके फेफड़े पहले की अपेक्षा में मजबूत बनते हैं व आपका ह्रदय स्वस्थ रहता हैं। 6. ॐजप के स्वास्थ्य लाभ: स्वस्थ पाचन तंत्र-इसका नियमित जाप करने से आपका पाचन तंत्र भी सुचारू रूप से काम करता हैं व आपकी पाचन शक्ति बढ़ती है। आप अपच, कब्ज, दस्त इत्यादि की समस्या से बचे रहते हैं। 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' ॐ:हिंदू धर्म में ॐ शब्द को सबसे महत्वपूर्ण शब्द की संज्ञा दी गयी है जो सभी मंत्रो व शब्दों से सबसे ऊपर व सर्वोच्च हैं। ॐ अपने आप में एक पूर्
PARBHASH KMUAR
जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। मगर जीवित होने के पश्चात तो जैसे, असुरों के अत्याचार की सारी सीमाएं अतिक्रमित होने लगी। राजा बलि ने भी शुक्राचार्य की कृपा से अपना जीवन लाभ किया था, इसलिए वह भी उनकी सेवा में लग गए। इस दौरान, राजा बलि की सेवा से प्रसन्न होकर शुक्राचार्य ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इधर, पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुरों के हर दूसरे दिन देवताओं पर किए गए अत्याचारों से माता अदिति अत्यंत दुखी हो गईं थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने स्वामी कश्यप ऋषि को सुनाते हुए कहा, “हे स्वामी! मेरे तो सभी पुत्र मारे-मारे फिरते हैं और उन्हें इस अवस्था में देखकर, मेरा हृदय क्रंदन करने लगता है।” अपनी पत्नी की यह बात सुनकर, कश्यप ऋषि ने सोचा, इस व्यथा के समाधान के लिए तो अपना सर्वस्व प्रभु नारायण के चरणों में समर्पित कर, उनकी आराधना करना आवश्यक है। उन्होंने अदिति को भी ऐसा ही करने के लिए कहा। माता अदिति ने तब नारायण का कठोर तप किया और प्रभु भी माता के तप से प्रसन्न होकर उनके पुत्र के रूप में आविर्भूत हुए। अपने गर्भ से ऐसे चतुर्भुज प्रभु के अवतार से माता अदिति तो जैसे धन्य ही हो गईं। वहीं प्रभु ने अवतरित होते ही वामन अवतार धारण कर लिया था। इसके बाद, महर्षि कश्यप ने अन्य ऋषियों के साथ मिलकर उस वामन ब्रह्मचारी का उपनयन संस्कार सम्पन्न किया। इसके बाद, वामन ने अपने पिता से शुक्राचार्य द्वारा आयोजित राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में जाने की आज्ञा ली। यह राजा बलि का अंतिम अश्वमेध यज्ञ था। वामन जैसे ही उस यज्ञ में पहुंचे राजा बलि ने उन्हें देखते ही उनका आदर सत्कार किया और उनसे दान मांगने का आग्रह किया। इस पर वामन ने राजा बलि से कहा, “हे राजन! आपके कुल की शूरता व उदारता जगजाहिर है। मुझे तो बस अपने पदों के समान तीन पद जमीन चाहिए।” राजा बलि उन्हें यह दान देने ही वाले थे, तभी शुक्राचार्य ने उन्हें चेताया, “यह अवश्य ही विष्णु हैं। इनके छलावे में आ गए, तो तुम्हारा सर्वस्व चला जाएगा।” परंतु राजा बलि अपनी बात पर स्थिर रहे। उन्होंने वामन को तीन पद जमीन देने का निर्णय कर लिया। राजा बलि की यह बात सुनते ही वमानवतार श्री विष्णु ने अपना शरीर बड़ा कर लिया और प्रथम दो पदों में ही उन्होंने स्वर्गलोक और धरती को अपने नाम कर लिया। वामन के चरण पड़ने से ब्रह्मांड का आवरण थोड़ा उखर सा गया था एवं इसी स्थान से, ब्रह्मद्रव बह आया था जो बाद में जाकर मां गंगा बनीं। अब वामन ने बलि से पूछा, “राजन! तीसरा पद रखने का स्थान कहां है?” कोई दूसरा ©parbhashrajbcnegmailcomm जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था।
Aprasil mishra
"संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय बनाम शिक्षक फिरोज खान विवाद" बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय.... (अनुशीर्षक देखिये) ********************** तुम भाषा पढ़ो प्रचार करो संस्कृत का शिक्षण कार्य करो। पर बात धार्मिक दीक्षा की सो धर्म मूल्य की बात करो।। क्या भाल त्
Hrishabh Trivedi
अ-शुभ विवाह(भाग1) 😊अनुशीर्षक में पढ़े😊 Disclaimer:- इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं, इनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है, तो कृपया अन्यथा न लें।