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Sanjay Patel
कागज़ का नोट नही वो तो खरा सिक्का था जिसे समझा था दोस्त हमने वो तो तुरुप का एक्का था तुरुप का एक्का
vinay vishwasi
हार जाता हूँ हर बार खुद ही, क्योंकि खुशी न मिलती अपनों की हार में। रो भी न पाऊँ जी भर, डर है बह न जाये यादें अश्कों के धार में। #विश्वासी
vinay vishwasi
राजनीति को क्या से क्या बना दिया गया। नीति गायब है, केवल राज़ रहने दिया गया। #विश्वासी
vinay vishwasi
ग़ज़ल(221 1221 1221 122) तरकश के अभी तीर न बेकार करो जी। मासूम दिलों पर न ऐसे वार करो जी। मैं आशिक़ हूँ सिर्फ तिरा ही इक जानम, ख़त इश्क़ का है मेरा स्वीकार करो जी। देखो समझो और मनन भी कर लो तुम, इस तरह सिरे से ही न इनकार करो जी। उम्मीद नई भी तुमसे ही बस यारा, मेरे सपने को अब साकार करो जी। महफूज़ तुझे मैं हरदम जान रखूँगा, तुम इस 'विश्वासी' पर इतबार करो जी। #विश्वासी
vinay vishwasi
ग़ज़ल (122 122 122 122) मुझे इस तरह तुम सताने लगे हो। क्यों मुझसे अब दूर जाने लगे हो। क्या मुझसे ऐसी हुई कुछ ख़ता जो, कहीं और दिल तुम लगाने लगे हो। लबों पर तेरे सिर्फ़ थे गीत मेरे, किसी और का गीत गाने लगे हो। मेरा तोड़कर दिल चले तुम गए तो, दिखाकर के खुशियाँ मनाने लगे हो। मुझे छोड़कर यूँ अकेले सनम तुम, मुहब्बत की दुनिया बसाने लगे हो। #विश्वासी
vinay vishwasi
ग़ज़ल(122 122 122 122) क्या बात है जो बताते नहीं हो। क्यों तुम मिरे पास आते नहीं हो। लबों पर हँसी रोज रहती है तेरे, मुझे देखकर मुस्कुराते नहीं हो। नयन से मुहब्बत झलकता है तेरे, मुहब्बत सही से जताते नहीं हो। अगर चाहते हो अजी दिल लगाना, खुशी से कभी दिल लगाते नहीं हो। गली रोज मेरे चले आ रहे हो, दरस हुस्न का तुम कराते नहीं हो। #विश्वासी
vinay vishwasi
ग़ज़ल(2122 1122 1122 22) दर्द सुनाऊँ कैसे गीत में है इतना दर्द सुनाऊँ कैसे? हाल दिल का अपने मैं ये बताऊँ कैसे? दूर हो ही अब मुझसे इतना ज्यादा तुम, जान तुमको अपने पास बुलाऊँ कैसे? ढ़ेर सारे कर जाते मुझसे तुम वादे, यार वादा तुमको याद दिलाऊँ कैसे? साथ दोगे तुम मेरा कहते थे हरदम, ऐसे बातों पर विश्वास जमाऊँ कैसे? सोंचता है अब ये हर पल 'विश्वासी', बात दिल की तुम तक मैं पहुँचाऊँ कैसे? #विश्वासी
vinay vishwasi
ग़ज़ल (2212 2212 2212) डूबा रहा मैं भी किसी के प्यार में। मरता रहा इक झलक के इंतज़ार में। मालूम कब था टूट जायेगा ये दिल, बस एक झटके और इक ही बार में। रो भी न पाऊँ खूब जी भर के कभी, यादें न बह जायें अश्क़ों के धार में। मैं हार जाता हूँ हमेशा खुद - ब -खुद, होऊँ न खुश मैं स्वजनों के हार में। मुझको मुहब्बत करने को लाखों मिले, तुम पर भरोसा सिर्फ़ था संसार में। धोखा मिलेगा इस तरह सोंचा न था, मारा मुझे तो खूँ न था तलवार में। खुशियाँ चला था मोलने मैं तो वहीं, उन नफ़रतों के चमकते बाज़ार में। ---विश्वासी #विश्वासी
vinay vishwasi
ग़ज़ल (1222 1222 1222) किसी से जब ये नैना चार होता है। वफ़ा का तीर दिल के पार होता है। क्या होता है दिल का हाल ऐ लोगों, न दिल को एक पल इंतज़ार होता है। कभी निज अक्स दर्पण में अगर देखूँ, उसी का चेहरा हर बार होता है। मिला है दर्द भी कैसा मुझे अब ये, कहीं उसका न तो उपचार होता है। कदम जितना ये आगे तेज है बढ़ता, खुशी का सिर्फ ये संसार होता है। #विश्वासी