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reshma kaur
वैसे तो होती है सुबह रोज पर आज सूरज का रुतबा अलग सा है।। वैसे तो देश प्रेम सदैव है मन मे पर आज देश के लिए प्यार दुगना हो जाता है वैसे तो आज़ादी की ख़ुशी हर वर्ष बनाई जाती है पर आज आंखो में सैलाब आता है वैसे तो है जवानों के लिए इज्जत अलग।।।। पर आज उनके आगे ये सिर सजदा मे झुक जाता है वैसे तो है आज़ादी की किताब के पाठ कई पर आज "मन" भगसिंह, राजगुरु और सुखदेव के शब्दों तक रह जाना चाहता है वैसे तो रहेंगे केसरी, श्वेत , हरा रंग पर आज" तन "इन रंगों मे मिल जाना चाहता है। वैसे तो होती है सुबह रोज पर आज सूरज का रुतबा अलग सा है।। देश के लिए दो शब्द
kuldeep vaishnav
किसान यूं लटक रहा है मेरे देश को अन्न देने वाला है सबको नही दिख रहा मेरे देश के अंदर मरने वाला सैनिक। मेरे देश का किसान मरे देश का सैनिक
PRAVEEN YADAV
अब सैनिकों को भी संविदा पर रख रहे है ये लोग पता नही इस देश का क्या होगा ©PRAVEEN YADAV देश का दुर्भाग्य
Maniiiik
चाहे झुठे ही हैं सपने पर मुझे भी तो बुनने दो, आज कुछ मुझे भी मेरी मर्जी सेे चुननेे दो | ज़ख्म जो हरे हैं उनको आज सीने दो, माना हूं गरीब पर मुझको भी तो जीने दो | देश का गरीब .........