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Rajnish Shrivastava
याद है मुझे वो शायद अमावस की स्याह रात थी । सितारे थे गगन में दिल में अरमानों की बारात थी । धड़क रहा था दिल काबू में न हमारे जज्बात थे । जिसे चाहते थे उसकी मां हमारे घर मेहमान थी । ©Rajnish Shrivastava #हास्य
अदनासा-
अदनासा-
अदनासा-
Jagdish Pant
फूल देई का त्यौहार था, मैं फिर भी बैठा अकेला था । चारों तरफ़ हर्षोल्लास था, मैं अकेला बैठा निराश था । जब मैने चारों तरफ देखा , तब पता चला कि मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में बैठा अकेला उदाश था ।। ✍️ Jagdish Pant आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।