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Divyanshu Pathak
दिल की दीवार पर चित्र बनके छप गए। बे-वक़्त में जो घाव लगे सारे ढक गए। ये कौन है जो दीवारे-दिल पे दिखता है! तुम बणी-ठणी बनकर इसपे तक गए। क़रीने से की है तुमने इसपर मीनाकारी! मुनव्वत देख कर इसकी नैना ठग गए। कठिन शब्दार्थ बणी-ठणी - राजस्थान की मोनालिसा मीनाकारी- धातुओं से की गई बारीक़ छपाई मुनव्वत - कढ़ाई/जड़ाई दिल की दीवार पर चित्र बनके छप गए। बे-वक़्त में जो घाव लगे सारे ढक गए। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 ये कौन है जो दीवारे-दिल पे दिखता है! तुम बणी-ठणी बनकर इ
Vishw Shanti Sanatan Seva Trust
जय श्री राम ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाई गई है। उन्होंने पंथ, जाति सहित जीवन के सभी पहलुओं में समानता के विच
रजनीश "स्वच्छंद"
नयी सभ्यता।। चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों, सबको आज़ाद करते हैं। लुढ़कने दो पत्थरों को, टकराने दो पत्थरों को, निकलने दो चिंगारी, एक आग लगने दो, एक नयी सभ्यता संस्कृति, फिर से आबाद करते हैं। चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों, सबको आज़ाद करते हैं। बहने दो नदियों को, अविरल, निर्बाध। मत रोको, बहने दो बिन बांध। काट डालने दो किनारों को, बहा ले जाने दो चट्टानों को। बंनाने दो एक मैदान, नए युग की जन्मस्थली का निर्माण। फिर से हड़प्पा, फिर से मोहनजोदड़ो, फिर से बहने दो सिंधु को। होने दो विस्तार, नवपल्लवों का विकास, फिर विस्तरित होने दो बिंदु को। चलो एक ये पुण्य-कार्य, सब मिल निर्विवाद करते हैं। चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों, सबको आज़ाद करते हैं। बह जाने दो मेरा तेरा के भाव को, बह जाने दो पूर्ण-आभाव को। शीतलता पुनरावृति में है, खण्डित हो जाने दो ठहराव को। एक नई संस्कृति की आहट, पड़ने दो कानों में। जो भी काटी फसल अब तक, पड़े रहने दो खलिहानों में। मनुजता से पशुता की यात्रा, कर ली है पूरी हमने। है समय पुनरुत्थान का, चलो फिर से गढ़ने सपने। चलो परमात्म शून्य में, लघुतम अति सूक्ष्म, फिर से मिलने दो परमाणुओं को, आरम्भ एक अनन्त का। एक तात्विक निर्माण, एक सात्विक निर्माण, निर्मित होने दो धातुओं अधातुओं को, विस्तार एक समरस पंथ का। समा शून्य में पुनः, एक गर्जना, एक नाद करते हैं। चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों, सबको आज़ाद करते हैं। ©रजनीश "स्वछंद" नयी सभ्यता।। चलो फिर से जंगलों, पहाड़ों, सबको आज़ाद करते हैं। लुढ़कने दो पत्थरों को, टकराने दो पत्थरों को, निकलने दो चिंगारी, एक आग लगने दो,
Divyanshu Pathak
हम भारतीय विकास की बड़ी क़ीमत चुका रहे है ! आबादी की बेलगाम बढ़ोतरी अनियंत्रित अनियोजित औद्योगिकी करण ने कई शहरों को पर्यावरणीय नर्क का रूप दे दिया है ! तमाम नगर भी इसी राह पे चल रहे हैं! देश के '88' में से '75' जॉन बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं ! पवित्र नदियों का पानी पीने तो क्या नहाने लायक भी नहीं रह गया ! Panchhi🐣: सुनो....💕👴 यारा👰💕 क्या हम प्यार इश्क़ मोहब्बत बिरह में उलझ कर भावी जीवन की सम्भावनाओ को भी दम घोंट कर तबाह कर लेंगे ! Panchhi🐣: :आप
Anil Siwach
Anil Siwach
Divyanshu Pathak
21वीं सदी के इन 20 वर्षों में दुनिया के बाकी 142 देश शानदार प्रगति कर रहे हैं जिनमें - चीन ब्राजील रूस इंडोनेशिया तुर्की केन्या दक्षिण अफ्रीका के साथ हमारा भारत भी शामिल है । इस विकास की हमारे देश ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। आबादी की बेलगाम बढ़ोतरी और अनियंत्रित अनियोजित औद्योगिकीकरण ने कई शहरों को पर्यावरणीय नर्क बना डाला और तमाम नगर इसी राह पर चल रहे हैं। देश के 88 में से 75 जॉन बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं और पवित्र नदियों का पानी नहाने लायक भी नहीं बचा है। 💕🙏#नमस्कार 💕🙏 : बढ़ती जनसंख्या के दबाव और अंधाधुंध तरीके से औद्योगिकीकरण व शहरीकरण की मार झेल रहे हमारे देश में इन समस्याओं से निपटने के नाम