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Aurangzeb Khan
बुझते हुए चराग को हवा दे गया कोई मौसम ए खिजा में भी गुल खिला गया कोई थम चुकी थी जिनकी उम्मीदें इंसाफ के लिए इस जुल्म के अंधेरों में वक्त रहते ही इंसाफ का दीया फिर जला गया कोई #सर्वोच्च न्यायालय ©Aurangzeb Khan #सर्वोच्च न्यायालय
DR. LAVKESH GANDHI
माना कि अंग्रेजी लिखना, समझना और बोलना जरूरी है | मगर इसके लिए अंग्रेज बनने की जरूरत नहीं हमें | हम संस्कार निष्ठ हो कर भी अंग्रेजी लिख, पढ़ और बोल सकते हैं | ©DR. LAVKESH GANDHI #English # # इंग्लिश सीखे,इंग्लिश मैन ना बने #
Kavita jayesh Panot
न्याय की कतार अन्यायों की बस्तियों में, देखो न्याय के लिए कतार लगी है। छोटी नही है कोई आवाजे , दिल की गहराइयों से गुहार लगी है। सुनने वाला जैसे बेहरा हो, आँखों से दृष्ट राज । राज सभा में द्रोपतियो की भीड़ लगी है। सरेआम छल ली जाती है , इज्जत बाजारों में किसी बेकसूर की। जैसे किसी हैवान की वासना मुख में सजी हो। किसी के घर पकवानों की थालियां सजती है, तो कोई भूख से तड़प कर मौत की नींद सो जाता है। कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा, कोई लुटा देता है अपनी बुढ़ापे की जमा पूँजी भी, एक न्याय की आस में। फिर भी वर्षो से कागजातों में बंद उम्मीदे पड़ी है। कोई अपने हक की कमाई के लिए , गिड़गिड़ाता है, लाठी के सहारे भी पेंशन आफिस के चक्कर लगाता है। न जाने ये न्याय का कैसा रास्ता है? अधिकारों और न्याय की सुनवाई तो, मन्दिरों के द्वार पर भी धागों में बंधी है। अन्याय की इस बस्ती में , न्याय की कतारें लगी है। न्याय की गद्दी पर बैठा अंधा है, अन्यायों की महफ़िल हर जगह जमी है। कोई मखमली लिबाज पहनें तो, किसी को कफ़न भी न नसीब है। ईश्वर ने बनाया इंसान , ये इतनी सारी अलग -अलग पहचान कैसे ,क्यों बनी है? चलो अब इंसानियत को अपना मूल धर्म बना, भेदों को जहाँ से मिटा दे। हर इंन्सा को उसके मूलभूत अधिकार दिला, ख़ुशनुमा औरो के जीवन भी बना दे। चलो आज समाज को सामाजिक न्याय और, कर्तव्यों के सही मायने सीखा , अन्याय की बस्ती में आग लगा दे।। कविता जयेश पनोत ©Kavita jayesh Panot #न्यायालय #न्याय#इंसानियत