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काव्य महारथी
काव्य महारथी प्रवीण पाण्डेय "आवारा", लखनऊ, उत्तरप्रदेश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता कविता कविता कोश कविताएं
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उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा आयोजित आरक्षी नागरिक पुलिस के पदों पर सीधी भर्ती-2023 हेतु 23 से 25 अगस्त व 30 एवं #वीडियो
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दिन भर दौड़ती रही पुलिस अधीक्षक व जिलाधिकारी की गाड़ियांउत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा आयोजित आरक्षी नागरिक पुलिस #वीडियो
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उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा आयोजित आरक्षी नागरिक पुलिस के पदों पर सीधी भर्ती-2023 हेतु 23 से 25 अगस्त व 30 एवं #वीडियो
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उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा आयोजित आरक्षी नागरिक पुलिस के पदों पर सीधी भर्ती-2023 हेतु 23 से 25 अगस्त व 30 एवं #वीडियो
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उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा आयोजित आरक्षी नागरिक पुलिस के पदों पर सीधी भर्ती-2023 हेतु 23 से 25 अगस्त व 30 एवं #वीडियो
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मै और ये शहर लखनऊ जैसे कविता गुलज़ार साहब की, हर गुफ्तगु में तुम्हारा आना लगा ही रहता है, कुछ कम याद नहीं आये तुम, तुमसे मिलना, तुममें घुलना, फिर एक नये हिस्से से मिलना, उस हिस्से में भी तुमसे मिलना ताएँ ही रहा है, अब वो चाहे गोमती रिवर फ्रंट हो, या बड़ा इमाम बड़ा, या फिर वो हज़रतगंज की गलियाँ हो, या अमीनाबाद की भीड़, या वो दिलकुशा कोठी, हर दफा एक नया किस्सा तुमने बताया ही है, यूँ ही रात भर तुम्हें चलते देखना, आसमान तले तुमसे इश्क़ फरमाना, बारिशों में तुम्हें अपना सुकूँ कहाँ, यही उठाकर स्कूटी तुमसे मिलने जो रोज मैं चली आती थी, खुद को बस एक दफा तुम्हारा और कहने के लिए, जैसे तुम्हारे पास मेरे लिए अभी कितना कुछ है, और मैं तुम्हारे बिन अधूरी, अब मैं तुमसे किया इश्क़ सबको बताती हूँ, वो पहली मुलाकात, और झिझक, जैसे मिर्ज़ा गालिब की लिखी सबसे खास रचना तुम, सबसे झूठ, तुम्हें मैं अपना बताती रही, ये कम आशिकी नहीं थी मेरी तुमसे, अगर तुम्हें सुकूँ लिख तुम्हारी हूँ लिखूँ, तुम बुरा तो नहीं मानोगे, अब इतना समय साथ बिताया है, कुछ किस्से कुछ कहानियाँ तुम भी तो सुनाओगे, बताना मुझे तुम पुराना इश्क़ अपना, वो चौक की गलियों में बसी हमारी खुशबू, रेजिडेंसी की तारीखों में बसी धूप, तुम्हारे हर कोने में बसी हमारी यादें, हर मोड़ पर बसी मेरी आवाज़ें, तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है, ये तुम भी जानते हो, तुम्हारी बाँहों में बसी मेरी दुनिया, तुम्हारे बगैर, ये जिंदगी अधूरी सी लगती है। तुम्हारे नवाबी अंदाज़ ने मन मोह लिया, हर कोने में इतिहास की खुशबू मिली, बेगम हज़रत महल पार्क की हरियाली, कभी अंबेडकर पार्क की रौनक, तुम्हारी रसोई में तहरी की खुशबू, और टुंडे कबाब की चटपटी कहानी, हर मोड़ पे एक नई स्मृति बनती रही, हर शाम की महफिल में तुम थे, तुम्हारी रातें भी कितनी अनमोल थीं, जैसे तुमसे ही मेरी साँसें जुड़ी थीं, और भातखंडे संगीत महाविद्यालय की तानें, रूमी दरवाज़ा की ऊँचाई से, हर मोड़ पे एक नई स्मृति बनती रही, साइंस सिटी का जादू, और लखनऊ चिड़ियाघर की शांति, हर शाम की महफिल में तुम थे, तुम्हारी रातें भी कितनी अनमोल थीं, जैसे तुमसे ही मेरी साँसें जुड़ी थीं, अब जब भी ये शहर मुझे बुलाएगा, मेरे कदम तुम्हारी ओर खुद-ब-खुद चल पड़ेंगे, तुम्हारी सड़कों पर बिछी मेरी यादें, तुम्हारी गलियों में बसी मेरी मोहब्बत, यही मेरी अंतिम सलामत है, जैसे इस शहर की फिजाओं में बसी है मेरी खुशबू। जिसमें अंत में लिखा नाम बस मेरा है... ©_नूर_ए_दिल_ मै और ये शहर लखनऊ जैसे कविता गुलज़ार साहब की, हर गुफ्तगु में तुम्हारा आना लगा ही रहता है...... #Love #Heart #City #Pyar #Nojoto #Tranding
भारद्वाज
White पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे.. तो बच्चे की नाभि कौन काटता था, मतलब पिता से भी पहले कौनसी जाति बच्चे को स्पर्श करती थी? आपका मुंडन करते वक्त कौन स्पर्श करता था? शादी के मंडप में नाईं और धोबन भी होती थी। लड़की का पिता, लड़के के पिता से इन दोनों के लिए साड़ी की मांग करता था। वाल्मीकियों के बनाये हुए सूप से ही छठ व्रत होता हैं! आपके घर में कुँए से पानी कौन लाता था? भोज के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी? किसने आपके कपड़े धोये? डोली अपने कंधे पर कौन मीलो-मीलो दूर से लाता था और उनके जिन्दा रहते किसी की मजाल न थी कि आपकी बिटिया को छू भी दे। किसके हाथो से बनाये मिटटी की सुराही से जेठ महीने में आपकी आत्मा तृप्त हो जाती थी? कौन आपकी झोपड़ियां बनाता था? कौन फसल लाता था? कौन आपकी चिता जलाने में सहायक सिद्ध होता हैं? जाट समाज से होली थाम एव मकान निर्माण से ईंट रखवाना। जीवन से लेकर मरण तक सब सबको कभी न कभी स्पर्श करते थे। . . . *और कहते है कि छुआछूत था।* *यह छुआछूत की बीमारी अंग्रेजों ने देश को तोड़ने के लिए एक साजिश के तहत डाली थी।* *जातियां थी, पर उनके मध्य एक प्रेम की धारा भी बहती थी, जिसका कभी कोई उल्लेख नहीं करता।* *अगर जातिवाद होता तो राम कभी सबरी के झूठे बेर ना खाते,* *बाल्मीकि के द्वारा रचित रामायण कोई नहीं पढता,* *कृष्ण कभी सुदामा के पैर ना धोते!* जाति में मत टूटिये, धर्म से जुड़िये.. देश जोड़िये.. सभी को अवगत कराएं! *सभी जातियाँ सम्माननीय हैं...* * एक भारत, श्रेष्ठ भारत।*. ©भारद्वाज #love_shayari #पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे.. तो बच्चे की नाभि कौन काटता था, मतलब पिता से भी पहले कौनसी जाति बच्चे को स्पर्श कर
#love_shayari #पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे.. तो बच्चे की नाभि कौन काटता था, मतलब पिता से भी पहले कौनसी जाति बच्चे को स्पर्श कर #Life
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