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Ganesh Din Pal
वक्रता जंगल की शान है। वक्रता कृष्ण की पहचान है। वक्रता से कृष्ण त्रिभंगी लाल हो गए। वक्रता ना होती जंगल में , तो जंगल साफ हो गए होते। शुक्र करो खुदा का कि उन्होंने वक्रता बनाई। वरना कई विभाग की तो जरूरत नहीं होती भाई। ©Ganesh Din Pal #वक्रता
kumaarkikalamse
हुई एक खता और इल्ज़ाम लगे बेहिसाब टूटा भी, बिखरा भी चकनाचूर हर ख्वाब! मैंने उनकी हर गलती कर दी थी नजरअंदाज उन्होंने मेरी एक भूल पर कर दिया रिश्ता ख़राब! वृत्त रूपी जिंदगी की एक त्रिज्या वे, एक हम केंद्र बिंदु पर आ गई दूरी व्यास का ना रक्खा हिसाब! वृत्त का केंद्र बिंदु विश्वास है त्रिज्या और व्यास दोनों खास है..! जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है..! #kumaarsthought #kumaaronlove #kumaaronz
kumaarkikalamse
प्रेम के 'वृत्त' का 'केंद्र बिंदु' होता है विश्वास 'त्रिज्या', 'त्रिज्या' मिलकर बनाती हैं 'व्यास' जिसको समझ नहीं इस 'ज्यामिति' की उनके लिए 'परिधि' भी नहीं होती खास। P. S. - PINTEREST Inspird by Alien Friend (रोली जी) आज उनसे बात करते करते यह एक thought दिमाग में आया, किसी कारण से उस time पूरा नहीं लिख
Bazirao Ashish
मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या। जिसका केन्द्र हो सिर्फ़ अयोध्या। और अनन्त हो मेरे यात्रा की त्रिज्या। मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या।। ~●आशिष●द्विवेदी●~ ©Bazirao Ashish मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या। जिसका केन्द्र हो सिर्फ़ अयोध्या। और अनन्त हो मेरे यात्रा की त्रिज्या। मैं घूमना चाहता हूँ पूरी ज्या।।
Vibha Katare
मेरे जीवनवृत्त के तुम केंद्र बिंदु.. और मैं इसकी परिधि.. मेरे मन की हर नेह त्रिज्या जोड़े मुझको तुमसे.. #Collab and write a fun #mathpoem. A math poem is one that uses a maths formula or theory to make a point about life. Here’s my try: You me
AB
// caption // बोलो.,. प्रेम का कौन सा आकाशविषयक नवीन सूत्र प्रतिपादित
Shikha Mishra
ज़िन्दगी के इन ताने-बानों में उलझती जा रही हूं, सब समेटने की चाह में मैं ख़ुद बिखरती जा रही हूं। दम तक तोड़ने वाली चुनौतियां मिली हैं कई दफ़ा, हालातों से लड़कर, मैं जीना सीखती जा रही हूं। मेरी हंसी देख लगता है उन्हें, मैं टूटी हीं नहीं कभी, कैसे यकीं दिलाऊं, मैं टुकड़ों में बंटती जा रही हूं। कोशिश तो तुमने भी अच्छी की तोड़ने की मुझे, पर देखो, यारा! मैं फिर भी मुस्कुराती जा रही हूं। क्या बताऊं मैं किस क़दर उसकी यादों में जलती हूं, पर अपनी हंसी से मैं, लोगों को जलाती जा रही हूं। पढ़े और सुने तो थे,'जूही', दोस्ती के तराने कई, सिला देख, अपने याराने की त्रिज्या घटाती जा रही हूं। ज़िन्दगी के इन ताने-बानों में उलझती जा रही हूं, सब समेटने की चाह में मैं ख़ुद बिखरती जा रही हूं। दम तक तोड़ने वाली चुनौतियां मिली हैं कई दफ
Bhaskar Anand
vikas thakur
कभी पैहम निकलती है, कभी कम कम निकलती है, कभी बन चाँद पूनम का तो कभी मद्धम निकलती है! सुरों को साथ लेकर छेड़ती सरगम बन निकलती है, पहन कर पाज़ेब तू करती हुई छम-छम निकलती है! एक मामूली झटके में हुआ हूँ मैं ज़ब्ह तेरी हाथों से, किसी का दम हलाली में फँसे थम-थम निकलती है! ज़बाँ अल्फ़ाज़ से ख़ाली, हलक़ आवाज़ से ख़ाली, मगर दो आँख से पानी झमा-झम झम निकलती है! मेरी इस ग़म की शनासी से, उदासी बद-हवासी से, न तेरी लट संवरती है ना कोई ख़म निकलती है! उठा कर हाथ अंगड़ाई तू, जब शोला-बदन तोड़े, नहीं होता बयाँ, जो हुस्न का आलम निकलती है! "विकास ठाकुर" का दिल "आरोही" के इल्म पे फ़िदा, आंखें बिछाती है जमाना, जब मेरी जानम निकलती है! Dedicating a #testimonial to Arohi Tripathi You are the truly deserve my ghazals each words.. Mahadev bless uhh to fullfill your each dream