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Ayush Sharma
I restrict myself from listening too much of the songs I like, should I be doing the same for people? Who knows... You know it's been almost a day or two I heard YQ shutting and all I could murmur in my head was these lines चदरिया झीनी रे
Parasram Arora
कोइ जाकर कह दो कबीरा से झीनी चदरिया अब छिद्रित हो चुकी महक जिन्दगी की खो चुकी हैँ जीवन मूल्य संक्रमण के नैराश्य मे पहुंच चुके और सुख सारे स्थाई तौर पर अस्वस्थ हुए हैँ अब हम कैसे कहे जिन्दगी से "थोड़ा थिरक कर दिखा "....? झीनी चदरिया
Azaad Pooran Singh Rajawat
"तेरी झीनी - झीनी ओढ़नी से छनता हुआ यौवन सौंदर्य देखकर जिस्म हमारा रोमांच से भर जाता है इश्क उभरने लगता है तुझसे मिलने को दिल करता है झीनी झीनी ओढ़नी से छनता हुआ यौवन सौंदर्य देखकर.....।p ©Azaad Pooran Singh Rajawat #झीनी झीनी ओढनी से छनता हुआ यौवन सौंदर्य देखकर #
Ashok kumar sharma Upadhyay
सुन साथिया माहिया बरसा दे इश्का की स्याहिया रंग जाऊँ रंग रंग जाऊंगी हारी मैं तुझपे दिल झर झर झर झर जाऊँ हो पिया बस तेरी मैं तेरी छू ले तो खरी मैं खरी मैं खरी ❣️ शुभ रात्रि ❣️ रिमझिम बारिश की फुहार बरसे तनमन भीगे मिलने को मन तरसे अवनी पहन हरी चुनर लगे सुहानी वो लम्हा थम जाये जब कोयल कूके झीनी झीनी बूंदों में अक्
#mai_bekhabar
प्रीत की कस्ती मे सवार, मन मगन चला है तेरी ओर बहता जाए इस नदी की तरह मेरा न इसपे कोई ज़ोर की तुझसे मिलन की आस लिए गाता चला प्रेम गीत तु भी अब के बोल ही देना जो तेरे दिल मे है मेरे मीत 🌻लेखन संगी🌻 ।। नेह ।। "एहसास भरे कश्ती में सवार होकर खुशियों का आगमन पहला देना। हो जाए पवित्र त्रिवेणी सा संगम, अथाह नेह से तुम हमें सहला
Duniya_दुनिया
नज़्म जो झिलमिला रहे हैं यादों की झीनी चादर में... पेश है... कादम्बिनी - राष्ट्रीय पत्रिका - अंक: सितम्बर 2019 में प्रकाशित एक नज़्म... #Naz
Poonam Suyal
तेरी मोहब्बत से भरी निगाहें मेरा भी दिल लिए जातीं हैं। मदमस्त मुस्कान तेरी मुझे बेहद लुभाती हैं। ये कैसा जादू हुआ है हम पर तेरा, ओ मेरे साथिया, हर शख़्स में हमें बस तेरी ही तस्वीर नज़र आती है। 🌻लेखन संगी🌻 //मुस्कियाँ// "मुस्कियाँ गूँजती हैं फ़िज़ाओं में जो नि:शब्द कर मिज़ाज,हमें आमिर किए जाते हैं। उफ़्फ़्!! देखती हो तिरछी निगाहों
Shree
झूमते झूले से झूम उठता है... झांझर सी झंकार से थिरकता है... झींगुर की सी झनक से सोया... खोया-खोया झरना झिलमिलाती चांदनी... झंकृत ताल विस्तृत विश्वास झांकी सा... झीनी-झीनी रात झुरमुट शोखियों के... झटक कर झुमके पलक झपकते कमाल... झांकती झक कर झिझक इतराता तन... झमेला इश्क का झड़ी सावन की लगी... झील मौजों की झलक जन्नतों सी, मन मेरे महबूब में महबूब मेरे मन में...! झूमते झूले से झूम उठता है... झांझर सी झंकार से थिरकता है... झींगुर की सी झनक से सोया...
Sunita Bishnolia
फलक नीला है जल नीला हुआ विस्तार धरती का। गगन धरती पे है या कि गगन पे दोर धरती का। हुआ अंबर से यों मिलना दूरियाँ मिट गईं सारी। लगाकर चाँद का गोटा पहनकर झीनी सी सारी साँझ धीरे से उतरी है गुनगुनाती हुई लोरी। फलक नीला है जल नीला हुआ विस्तार धरती का। गगन धरती पे है या कि गगन पे दोर धरती का। हुआ अंबर से यों मिलना दूरियाँ मिट गईं सारी। लगाकर चाँद का