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Sunil itawadiya
ऐ मन== -सुन सको तो सुनो एक बात कहनी थी इधर उधर मत भटका करो यह अच्छी आदत नहीं- अच्छा लगे दोस्तों तो आपकी वाह-वाह चाहिए सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
Teju Bisht
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया,
RD Campus
प्रकृति की गोद में जीवन में मूल्यों का महत्व तब पता चलता है जब कीमत चुकाने की क्षमता चली जाती है , कुछ सद कर्म ही होते हैं जो उस समय आपका साथ देता है ,इसलिए सादगी समर्पण और सर्वकल्याण को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिये । कहने को तो सब कहते हैं कि देश और समाज पहले है ,लेकिन सच ये है कि सबसे पहले अपना परिवार और परिवार में भी पचले माँ पिताजी फिर भाई फिर पत्नी फिर बहन फिर ....इसमें थोड़ा आगे पीछे नंबर हो सकता है लेकिन इंसान अक्सर पहले इनके लिए ही सोचता है। देश कहाँ है सोचना कभी बुरा लगे तो माफी मगर ये सच है। ©RD Campus सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः..... #AdhureVakya
Sanjeev gupta
Clean India स्वच्छता ही स्वास्थ्य को साकार करेगी मिल बैठेगी जब सारी दुनिया खूबसूरत पर्यावरण का निर्माण करेंगी स्वच्छता
Ammara Hussain
**स्वच्छता सर्वेक्षण अभियान** सभी रोगों की एक दवा कचरे को रखो कचरे की जगह ©Ammara Hussain #स्वच्छता
Sunil Mishra ' Sunny'
स्वच्छ भारत ये तो अभिव्यक्ति है जो दिल में खिलेगी स्वच्छता कोई पढ़ाई नहीं जो किताबों में मिलेगी स्वच्छता..
Sunil itawadiya
. सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् तू निरामया
miss seemai
ये साल ऐसा रहा की बता नहीं सकते अपनी मर्जी से कहीं जा नहीं सकते आशा है अब लोटे ना ये क्योंकि हम इसको और ज्यादा अब सह नहीं सकते,,,😂 ©miss seemai #२०२०
Er Prince Kumar
अलविदा 2020 """""""""""""""""""""""""""""""""""""""" यूं कह तो 2020 विष ही बन गया जो पाया था वह सब तो लुट ही गया हमने अपना कारोबार , नौकरी खोया इसी बहाने परिवार का स्नेह पाया मार्च से कोरोना का आतंक है छाया इस दहशत की अजीब है माया सारे इंसान को कहां से कहां पहुंचाया हमने स्वच्छ प्राकृतिक वातावरण पाया ऐसा महामारी कोरोना दहशत का साया हमने खुद को ही अपने घरों में कैद पाया हमने दिखावे की जिंदगी जो थी वो खोया कम साधनों में जिंदगी गुजारना सिखाया सबके काम धंधे तो बंद पड़ा पाया किसानों पर तानाशाही का बुलंदी छाया जितना पढ़ा - लिखा सब तो हार गया पर हां हमने बेरोजगारी का दर्द जरूर पाया रेल ,तेल ,खेल सब तो करीब बिक ही गया हमने अपने संविधान को टूटते हुए पाया लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सोते पाया हां मैं स्वस्थ लोकतंत्र का नागरिक कहलाया ✍ अभियंता प्रिंस कुमार सोनदीपी, बेगूसराय(बिहार) ©prince Kumar #२०२०