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Pravin Mishra
White yaha taklif bhi hai our shor bhi mujhme himmat bhi hai hun kamjor bhi aise toh tum mujhe kho dogi tumhe mai bhi chahiye? our fir koi our bhi..... *___💔💔🖤❤🔥 ©Pravin Mishra #love_shayari pyari मोहब्बत के लिए...
#love_shayari pyari मोहब्बत के लिए...
read moreAbhi
Unsplash ये सातों जन्म का साथ है इसे हम नहीं तोड़ेंगे तूने भलाई छोड़ दिया हो हमें हम तुझे नहीं छोड़ेंगे। ©Abhi #lovelife शायरी मोहब्बत के लिए
#lovelife शायरी मोहब्बत के लिए
read moreAdv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)
White जरा सा मोल ममता का चुका पाते अगर बेटे.. लहु में दौड़ते रिश्ते निभा पाते अगर बेटे.. न होती दर बदर की ठोकरें उनके नसीबों में.. बुढ़ापा काश कांधो पर उठा पाते अगर बेटे... कभी फुटपाथ पे हालात पे रोती नहीं आँखें उन्हें दो जून की रोटी खिला पाते अगर बेटे..! नहीं कोई तमन्ना है उन्हें महलों में आने की पिता माता को पलकों पर सजा पाते अगर बेटे गंवाकर जिंदगी अपनी उन्हें क़ाबिल बनाया है जो उनके त्याग को दिल से लगा पाते अगर बेटे..! जले हैं आस में औलाद ही कल का सहारा है कभी उस आग में ख़ुद को जला पाते अगर बेटे..! न तीरथ की न जप तप की उन्हें कोई जरूरत थी श्रवन सी भावना मन में जगा पाते अगर बेटे.. नहीं कोई जमीं पर दूसरा भगवान हो शायद उन्हें भगवान से पहले मना पाते अगर बेटे..! ©अज्ञात #माता पिता
#माता पिता
read moreRahul Varsatiy Parmar
सुबह के 5 बज चुके है तो जमाने ए बंदिश खैर एक खयाल एक गजल देखिए रातों की नींद से (अदावत/ दुश्मनी) हो गई है हमे भी ज़माने के रिवाजों से (कदूरत/ नफरत) हो गई है ज़माने- ए- बंदिश में कैद है (आबरू/ इज्जत) ) हमारी अब खुद को ही खामोश कर रही है खामोशी हमारी (मशगूल-ए- महफिल /मिलना जुलना) नही है रही अब फितरत हमारी मशरूफ-ए-बेरुखी जिंदगी खुद से हमारी हिदायत-ए -दिल है की मुखातिब हो ज़माने से क्यों हया-ए- आबरू खौफ से गुजरे जिंदगी हमारी (मशरूफ/व्यस्त,) (बेरुखी/नाराजगी,)( हिदायत/ सलाह ,) (मुखातिब/ सामना,) (हया ए आबरू/ शर्म) ,(खौफ/ डर) इस गजल का सीधा सा मतलब है 4 लोगो क्या कहेंगे इसे बेफिकर होकर जियो निर्मला पुत्र सिद्धांत परमार ©Rahul Varsatiy Parmar #foryoupapa जिंदगी खुद के लिए जियो समाज के लिए नही #
#foryoupapa जिंदगी खुद के लिए जियो समाज के लिए नही #
read moreअनिल कसेर "उजाला"
इधर जाते हैं ना उधर जाते हैं, हर तरफ वो ही नज़र आते हैं। कमाने जो निकल जाते घर से, मौत से भी नहीं वो घबराते हैं। ज़ख्म पे ज़ख्म चाहे लगता रहें, दर्द सारा हँसी में ही छिपाते हैं। ग़म की बदली न छाये परिवार में, ये सोच कर तूफ़ानो से टकराते हैं। अपने सपन सारे तोड़ कर 'उजाला', ये ज़िंदगी को मुस्कुराना सिखाते हैं। ©अनिल कसेर "उजाला" पिता
पिता
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