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Divyanshu Pathak
मत हो ---------- मन मेरे अधीर मत हो और केवल शरीर मत हो प्रेम किया तो मिला सुख अब पीड़ा की लकीर मत हो एक दुनिया जो तुमने बनाई है तुम हो उसमें मैं हूँ, फूल और सितारे हैं मोहब्बत की महक खुशियों का चाँद , ख़्वाबों का आसमान सहजता और सुकून से भरे नज़ारे हैं संवारे जो बंधन इतने प्यारे वार कर उनको फ़क़ीर मत हो मत हो ---------- मन मेरे अधीर मत हो और केवल शरीर मत हो प्रेम किया तो मिला सुख अब पीड़ा की लकीर मत हो
Divyanshu Pathak
वो ग़र क़भी जो ख़फ़ा हो गया ऐसा ही कुछ फ़लसफ़ा हो गया गीत गाते रहे हम मुरव्वत भरे... बे-मुरव्वत कोई बे-वफ़ा हो गया शिक़वे गिले और शिक़ायत हुई कुछ भी कहा तो जफ़ा हो गया। मेरी मायूस धड़कन सुनाई न दी। यूँ उदासी को मेरी नफ़ा हो गया। इश्क़ आँखों में मेरी उतरने लगा। यूँ आँसू से दामन सफ़ा हो गया। दिल में तूफ़ान उठने लगा था मेरे पंछी' पिंजरे से जैसे दफ़ा हो गया। वो ग़र क़भी जो ख़फ़ा हो गया ऐसा ही कुछ फ़लसफ़ा हो गया गीत गाते रहे हम मुरव्वत भरे... बे-मुरव्वत कोई बे-वफ़ा हो गया शिक़वे गिले और शिक़ायत हुई कुछ भ
Divyanshu Pathak
तन्हाई में ख़्वाहिश तड़पती रही रात भर। रुसवाई में चाहत भड़कती रही रात भर। हसरतों को अपनी अब मैं क्या जवाब दूँ ! रूहानियत में रूह भटकती रही रात भर। ये जो रक़ीबों सा ताल्लुक़ रह गया तुमसे! ख़ुदाई इस तरह से चटकती रही रात भर। आसमाँ से बरसी मोहब्ब्त शबनम बनके! रुबाई मेरे दिल में धड़कती रही रात भर। यूँ तो प्यार का दर्द हम सह भी लेते मग़र! पंछी' यह नुमाइश खटकती रही रात भर। तन्हाई में ख़्वाहिश तड़पती रही रात भर। रुसवाई में चाहत भड़कती रही रात भर। हसरतों को अपनी अब मैं क्या जवाब दूँ ! रूहानियत में रूह भटकती रही
Divyanshu Pathak
नव निर्माण और उन्नति का माध्यम ( कोराकाग़ज़ ) ---- स्वामी दयानंद सरस्वती विरजानन्द जी के आश्रम में पहुंचे और उनसे अपना शिष्य बनाने की विनती की तब विरजानन्द जी ने उनसे पूछा कि बेटा तुम क्या जानते हो आज तक कुछ पढा है क्या? तब स्वामी जी ने कहा कि मैंने बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा है। यह सुनकर विरजानन्द जी बोले, ठीक है किताबें पढ़ीं हैं तो पर मैं तुम्हें अपना शिष्य नहीं बना सकता इसलिए तुम जा सकते हो। जब स्वामी दयानंद जी ने ये बात सुनी तो उनकी आँखों से आँसू निकलने लगे वे विनीत भाव में बोले गुरुजी मैं क्या करूँ जो आप का शिष्य हो सकूँ।तब विरजानन्द जी ने कहा कि अब तक जो कुछ भी तुमने अपने मन के काग़ज़ पे अंकित किया है उसे मिटा दे और इन किताबों की गठरी को यमुना जी में बहा दे तब मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाऊँगा, तेरे मन में कुछ लिख पाऊँगा। कुछ स्पष्ट सुंदर और स्थाई लिखने के लिए "कोराकाग़ज़" होना बहुत जरूरी है। ( कैप्शन देखें ) कोराकाग़ज़ मानव जीवन से जुड़ा हुआ एक ऐसा उपागम है,जो कालक्रम की हर एक गतिविधि का साक्षी बनता है। श्रष्टि के आरंभ में श्रुतियों का लिपिबद्ध होकर
Divyanshu Pathak
पिता ------------- सुनो! पिता को मैं नहीं समेंट सकता अपनी तुकबंदियों में , ना ही समेंट सकता हूँ कभी किसी गीत या छंद में कोई आकाश को समेंट पाता है क्या! कोई अवकाश को लपेट पता है क्या! पिता नई पीढ़ी के लिए आकाश है पिता नई पीढ़ी के लिए अवकाश है कौन क्या समझा, मैंने क्या समझाया सब ने समझा अपने अपने हिसाब से सब ने नवाजा अपने अपने खिताब से मैंने इतना समझा पिता रब की छाया है स्वप्नों की रात है और पिता ही प्रकाश है। पिता ------------- सुनो! पिता को मैं नहीं समेंट सकता अपनी तुकबंदियों में , ना ही समेंट सकता हूँ कभी किसी गीत या छंद में कोई आकाश को समेंट पा
Divyanshu Pathak
शम्मा महफ़िल में जलती रहेगी तो सिर पतंगे उठाते रहेंगे। इश्क़ जिनको है अपने वतन से वो यूँ ही सिर कटाते रहेंगे। पहरेदारी में तत्पर खड़े हैं पहरुए बन संवर कर दीवाने। मातृभूमि की सेवा में अक़्सर भामाशाह फिर से आते रहेंगे। आँच आए जो मेरे वतन पे आग बन जाएगी तब जवानी। राणा लड़ते मिलेंगे समर में शस्त्रु मुह की ही खाते रहेंगे। ना झुकेगा कभी सिर हमारा ना लजायेंगे माता की ममता हम भगतसिंह की छाया बनेंगे ओर ऊधम बनाते रहेंगे। बनके डायर कभी कोई आए ऐसा दुस्साह ना हम सहेंगे। छलनी कर देंगे उसी वक़्त सीना दुश्मनों को मिटाते रहेंगे। अब लड़ाई तो बाकी है खुद से घर के घर में लुटेरे हुए हैं। बाक़ी उम्मीद हमको है पंछी' घोंसला भी बचाते रहेंगे। 🇨🇮 शम्मा महफ़िल में जलती रहेगी तो सिर पतंगे उठाते रहेंगे। इश्क़ जिनको है अपने वतन से वो यूँ ही सिर कटाते रहेंगे। पहरेदारी में तत्पर खड़े हैं
Divyanshu Pathak
करवाचौथ का गीत ------- तुम अदाओं का मेरी अदब देखिए तुम सदाओं का मेरी सबब देखिए मेरे मन का बना मीत सजना मेरा धड़कनों का बना गीत सजना मेरा साज़ो श्रृंगार सब कुछ उसी वास्ते ख़्वाब चलने लगे सब उसी रास्ते जुड़ गया जबसे नाता ये सिंदूर का जुड़ गया जबसे नाता ये सिंदूर का मेरे जीवन की है जीत सजना मेरा ख़्वाहिशों का मेरी-2 ग़ज़ब देखिए तुम अदाओं का मेरी अदब देखिए करवाचौथ का गीत --- तुम अदाओं का मेरी अदब देखिए तुम सदाओं का मेरी सबब देखिए मेरे मन का बना मीत सजना मेरा धड़कनों का बना गीत सजना मेरा साज़ो श्
Divyanshu Pathak
मैं मौसम वफ़ा का बदलने न दूँगा। मैं फिरंगी हवा को यूँ चलने न दूँगा। मैं शफ़ा तेरी चाहत रखूँगा हमेशा। जफ़ा को तुझे यूँ हीं छलने न दूँगा। खिली धूप ख़्वाबों भरी मन में तेरे। मैं मन से तेरे धूप ढलने न दूँगा। ये रौशन जहाँ इश्क़ की चाँदनी से। नफ़रतों का अंधेरा मैं पलने न दूँगा। नाज़ नख़रे उठाऊँगा पलकों पे तेरे। मैं पंछी' तुम्हें पिंजरा खलने न दूँगा। Hello Resties! ❤️ मैं मौसम वफ़ा का बदलने न दूँगा। मैं फिरंगी हवा को यूँ चलने न दूँगा। मैं शफ़ा तेरी चाहत रखूँगा हमेशा। जफ़ा को तुझे यूँ हीं
Divyanshu Pathak
एक युवती झूले पर झूलते झूलते मुझसे बोली कि आज मैं तुम्हें देवी के बचपन की कहानी सुनाती हूँ। मुझे प्रतीक्षा है कि तुम मोहन कुण्ड के फेरे लगाओ ताकि मैं तेरी हो जाऊँ.... कोई ऐसा भी स्वप्न देखता है क्या? मैंने आज सुबह 5.55 पे यह देखा 6 बजे अलार्म बज गया.... मोहनकुण्ड कहाँ है ? 🤔 दिव्यांशु पाठक --------------
Divyanshu Pathak
किसी की उम्मीद किसी का ख़्वाब लगती है। वह अपने घर का मुझको मेहताब लगती है। तमाम कोशिश करती है कुछ नया पन लाये। वह अपने आज - कल का हिसाब लगती है। मोहब्बत से ख़ुद को कोशों दूर रखा उसने। वह लेकिन मुझको चाहत ए रुआब लगती है। यूँ तो लड़की होने का अफ़सोस है उसको। लेकिन इरादों से अपने आफ़ताब लगती है। बेताब दिल चाहता है कुछ पल हों सुकून के! पंछी' कामना जैसे नदी का बहाब लगती है। किसी की उम्मीद किसी का ख़्वाब लगती है। वह अपने घर का मुझको मेहताब लगती है। तमाम कोशिश करती है कुछ नया पन लाये। वह अपने आज - कल का हिसाब लगत