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rj_vishwa

बैठा हूँ SAD alone

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Shashi Bhushan Mishra

#आजाद हूँ अब# #शायरी

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अंधेरे की सोहबत से आजाद हूँ अब, 
बेख़बर सुनता कोई फरियाद हूँ अब, 

नहीं है ख़्वाहिश दिखाई दूँ शिखर पे,
मुक़म्मल से घर की बुनियाद हूँ अब, 

फूल कलियों से  चमन में  ताज़गी है, 
दुआओं  के  इत्र  से  आबाद हूँ  अब, 

चाँदनी  उतरी  है  दिल  के  दरीचे में, 
लग रहा  जैसे  कोई  महताब हूँ अब, 

जलने  वाले  इस  क़दर  हैरानगी से, 
देखते  जैसे   कोई   तेजाब  हूँ  अब, 

झुकाते  हैं  शीश  दरवाजे पे आकर, 
नगर सीमा पर खड़ी मेहराब हूँ अब,

ख़त्म  दौर-ए-जहाँ का  करके गुंजन,
ख़ुद से मिलने को बड़ा बेताब हूँ अब, 
      --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
             चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #आजाद हूँ अब#

ranjit Kumar rathour

पराई हूँ न #कविता

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DR. LAVKESH GANDHI

Buraee # मैं बुरा हूँ #

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Kishor Saklani(KRISH)

मुसाफिऱ हूँ....shayari #शायरी

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Shashi Bhushan Mishra

#ठहरा हूँ सैलाब देखकर# #शायरी

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Meri Mati Mera Desh ठहरा  हूँ  सैलाब  देखकर, 
दरिया का फैलाव देखकर, 

रंजिश इतनी रखता है वो, 
लगा भीड़ में ताव देखकर, 

बँटवारे  का  खेल  खेलता, 
बुरा लगा अलगाव देखकर, 

गौरव  गाथा  के परिसर में, 
फक्र हुआ मेहराब देखकर, 

दाल नहीं गल पाया शायद, 
लगा यही बिखराव देखकर, 

असमंजस  में  बैठी जनता, 
डरते  लोग  तनाव देखकर, 

सच की नाव चलाए सेवक,
बैठ शज़र की छाँव देखकर, 

मंज़िल  अभी  दूर है 'गुंजन',
चलो न बाबू ख़्वाब देखकर, 
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #ठहरा हूँ सैलाब देखकर#

DR. LAVKESH GANDHI

Mankadahan # नासमझ हूँ मैं #

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Sethi Ji

🩷💫 किस्मत की अमीरी 💫🩷 🩷💫 किस्मत की फ़कीरी 💫🩷 किस्मत का लकीरों से क्या लेना देना दोस्तों नसीब तो उनके भी होते हैं , जिनके हाथ नहीं होते हैं

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Kiran Chaudhary

मैं चाँद हूँ।। #beHappy #शायरी

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।। जिनको इतना पसंद करता हूँ । उनको बासी गुलाब कैसे दें ।। हुस्न की आज मल्लिका वह #शायरी

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ग़ज़ल :-
अब उसे आफताब कैसे दें ।
प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।।

जिनको इतना पसंद करता हूँ ।
उनको बासी गुलाब कैसे दें ।।

हुस्न की आज मल्लिका वह है ।
सोचता हूँ ख़िताब कैसे दें ।।

चंद कतरे मिलें हमें खत में ।
तू बता दे जवाब कैसे दें ।।

गीत जिनके लिए लिखे हम थे ।
हम उन्हें वो किताब कैसे दें ।।

प्यार उम्र भर जवान रहता है ।
तू बता फिर ख़िज़ाब कैसे दें ।।

हसरतें दीद की लिए दिल में ।
अब प्रखर ये नक़ाब कैसे दें ।।

१३/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
अब उसे आफताब कैसे दें ।
प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।।

जिनको इतना पसंद करता हूँ ।
उनको बासी गुलाब कैसे दें ।।

हुस्न की आज मल्लिका वह
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