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KUNWA SAY
White तुम बिलकुल नाजुक हो गुलाब जैसी हो , तुम दिलकश अंदाज जैसी हो ,लबो को छूकर जिस्म में उतर जाऊं ,,तुम संगेमरमर आफताब जैसी हो ,,👩❤️💋👨 मेरे को फोलो करें बहूत मेहनत करते है ©KUNWA SAY #Couple तुम बिलकुल नाजुक गुलाब जैसी हो ,तुम दिलकश अंदाज जैसी हो ,... ,लबो को छूकर जिस्म में उतर जाऊं ,... ,तुम संगेमरमर आफताब जैसी हो ,,
Ravendra
Ravendra
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।। जिनको इतना पसंद करता हूँ । उनको बासी गुलाब कैसे दें ।। हुस्न की आज मल्लिका वह है । सोचता हूँ ख़िताब कैसे दें ।। चंद कतरे मिलें हमें खत में । तू बता दे जवाब कैसे दें ।। गीत जिनके लिए लिखे हम थे । हम उन्हें वो किताब कैसे दें ।। प्यार उम्र भर जवान रहता है । तू बता फिर ख़िज़ाब कैसे दें ।। हसरतें दीद की लिए दिल में । अब प्रखर ये नक़ाब कैसे दें ।। १३/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।। जिनको इतना पसंद करता हूँ । उनको बासी गुलाब कैसे दें ।। हुस्न की आज मल्लिका वह
Ellipsis
Person's Hands Sun Love चमकना तो हम भी चाहते हैं कभी। आफताब नहीं, तो जुगनू बनकर ही सही! ©Ellipsis आशाएं... #sunlove #चमक #आफताब #जुगनू
Amit Sir KUMAR
हर चमकती चीज आफताब नहीं हो सकती हर फुल गुलाब नहीं हो सकती ये जो समेट रखे हैं कुछ लम्हें उम्मीदों के ये दरकिनार हो नहीं सकती जिंदगी के अंधेरे रास्ते में उम्मीद कि रौशनी कम हो नहीं सकती तु जिंदा है तो जिंदगी कि रवानगी कम हो नहीं सकती। ©Amit Sir KUMAR #rosepetal हर चमकती चीज आफताब हो नहीं.....
Devesh Dixit
श्रद्धा (दोहे) हिस्सों में अब बट रहीं, कितनी श्रृद्धा आज। आफताब घेरे इन्हें, बन कर के वो बाज।। घटनाओं का सिलसिला, बढ़ता है दिन रात। कहती हैं श्रद्धा सभी, समझो अब जज्बात।। धोखा दूँ माँ बाप को, श्रद्धा करे न पाप। आफताब जैसे मिलें, तब होता संताप।। हो श्रद्धा मन में बहुत, खुश होते भगवान। संकट करते दूर हैं, हों पूरे अरमान।। श्रद्धा जिसमें भी रहे, हो उसका उद्धार। पाप कर्म से दूर हो, बना रहे उद्गार।। श्रद्धा से कोमल बने, मन के अपने भाव। दूजों की पीड़ा दिखे, उभरे उर के घाव।। ........................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #श्रद्धा #दोहे #nojotohindi श्रद्धा (दोहे) हिस्सों में अब बट रहीं, कितनी श्रृद्धा आज। आफताब घेरे इन्हें, बन कर के वो बाज।। घटनाओं का सिल
Mohit Kumar Goyal
मुठ्ठी भर उजाले की ख्वाहिश थी अपनी, मेहरबां ने आफताब ही हवाले कर दिया । ©Mohit Kumar Goyal मुठ्ठी भर उजाले की ख्वाहिश थी अपनी, मेहरबां ने आफताब ही हवाले कर दिया । #sunrisesunset
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
जिसकी खातिर तू बड़ा बेताब है । वह तुम्हारी आँख का बदख्वाब है ।।१ उम्र भर पीछा किया जिसका यहाँ । दे रहा वो आँख में सैलाब है ।।२ अब नहीं उनको दिखाना नूर तुम । जानता जिनको यहाँ आफताब है ।।३ भूल जा तू उस हँसी को यार अब । इस ज़मीं का एक वह महताब है ।।४ हर घड़ी जिसके चला है साथ तू । वह न कोई और तेरा अहबाब है ।।५ जानता हूँ उस तरफ जो मैं गया । हुस्न का उसकी तरफ़ गिर्दाब है ।।६ फूल सा पाला उसे माँ बाप ने । जो कली दिखती तुम्हें नायाब है ।।७ देख अपनी हैसियत मुझसे कहो । की तुम्हारे खातिर वह अस्वाब है ।।८ सुन प्रखर जैसे झुकाते सिर उसे । उसके चेहरे में दिखा वह आब है ।।९ २७/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जिसकी खातिर तू बड़ा बेताब है । वह तुम्हारी आँख का बदख्वाब है ।।१ उम्र भर पीछा किया जिसका यहाँ । दे रहा वो आँख में सैलाब है ।।२
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- वह जो पीकर शराब रहता है । हर नज़र में खराब रहता है ।।१ पूजता वह नही गुलो को कभी पास जिसके गुलाब रहता है ।।२ क्यों करूँ फ़िक्र मैं अँधेरों की । पास अब माहताब रहता है ।।३ उम्र से पहले हो गया बूढ़ा । अब लगाकर ख़िज़ाब रहता है ।।४ नूर देखा नही अभी तुमने । रुख पर डाले हिज़ाब रहता है ।।५ मत छुओ हस्तियां कभी उनकी । जिनमें अब आफताब रहता है ६ ये असर है प्रखर दुवाओं का । पास जो हर जवाब रहता है ।।७ १४/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वह जो पीकर शराब रहता है । हर नज़र में खराब रहता है ।।१