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person
पेपर मंगाया कलम मंगाई भाषा और शब्दों और विचारों से मैंने एक शब्द बनाए जिंदगी का हर एक पन्ना है एक इम्तिहान सा है जीना तो मैं प्रारंभ किया था मरना है अंतिम निर्णय सा है ©person किताबों पर लिखा हुआ बात
Mehfuza
White सुना मुक़द्दर का लिखा नहीं मिटता! फिर मेरी तुमसे मोहब्बत की ताज़ीर क्या होगी? ©Mehfuza #love_shayari सुना मुक़द्दर का लिखा नहीं मिटता! फिर मेरी तुमसे मोहब्बत की ताज़ीर क्या होगी?
Mehfuza
White सुना मुक़द्दर का लिखा नहीं मिटता! फिर मेरी तुमसे मोहब्बत की ताज़ीर क्या होगी? ©Mehfuza #love_shayari सुना मुक़द्दर का लिखा नहीं मिटता! फिर मेरी तुमसे मोहब्बत की ताज़ीर क्या होगी?
ranjit Kumar rathour
इन पेड़ों से रिश्ता है मेरा कभी हर सुबह आता था सबसे पहले तलाशने एक आम जो पानी मे होता उसे पाकर जितनी खुशी मिलती उसे बता पाना मुश्किल है आज इनकी हालात पे रोना आया सिर्फ ठूंठ रह गयी है अब लोग इंतज़ार में है गिर जाने का शायद जलावन की दरकार होगी तू गिरना नही मुझे तुम्हे देखना हा अच्छा लगता है तू मेरी दादी सी है शायद दादा ने तुझे सींचा होगा तू रहना अभी सालों साल जब घर जाऊं तो तुझे देखना है हमे महशुस करना है ©ranjit Kumar rathour तू रहना अभी
Radhey Ray
मै इसलिए नही लिखता, ताकि तुम पढ़ सको, मै इसलिए लिखता हु, ताकि जिंदा हु अभी भी, तुम ये जान सको ll 🚫ADDICTED ©Radhey Ray अभी भी जिंदा हु...
Dev Rishi
Village Life वो लिखा ही नहीं..... खुली खेतों की पगडंडी पर मस्ती से चलना धान गेहूं मक्का के शीश को तोड़ फिर वही फेक देना हमने वह भी किया जामुन के पेड़ों पर दिन भर लटकना पर कौन लिखें, ..? वो दिन ....वह बचपना के मस्ती भरी बातें जिक्र अब कर लेते हैं, हां शब्दों में रख लेते हैं पर हम किसी से ये नहीं कह पाते हैं कि...... उन दिनों की याद शहरों में रोज आतें हैं.... जब एक कमरे में दिन की सूय बल्ब हो... गांव छोड़ शहर के किसी मकान में जब घर हो हां ये सच है कि उस कमरे को रूम ही कहते हैं, घर की रौनक वहां कहां, , क्योकि अपना घर तो गांव में होते हैं हमने वो लिखा ही नहीं, जब से शहर ए जाम हाला पीएं है गांव की भूख लगते ही शहर छोड़ गांव की ओर भागे है बहुत छुपाना पड़ता है अपने आप को ...... कुछ झूठी कहानी बतानी पड़ती है अपनों को.... हां इतना बड़े हो जाते हैं कि सब ख़ुद ही देख लेते हैं घर से फ़ोन जब भी आएं सब ठीक है यही सब बतलाते हैं भले दिन औ रात यूं खुले आंखों में बीतें हो सपना और सफ़र कुछ नहीं समझ में आतें हो शब्दों की गाढ़े भी मन को मजबूत न कर पाते हो तब ख़ुद शब्द बन कुछ कहने, लिखने को आतुर हुए है.... फिर भी वह लिखा ही नहीं...... वही जो दर्द ए ताज बनी है.... ©Dev Rishi #villagelife #वो लिखा ही नहीं
Aawaz Zindagi Ki
ज़ख्मी दिल
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ ©कुमार विनोद अभी तक ज़िंदा हूँ