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nisha Kharatshinde
मी एक डिपार्टमेंट कुणाला माझी आता काळजीच नाही पहिल्यासारखे काही राहिलेच नाही कित्येक आले कित्येक गेले माझी व्यथा कुणा कळलीच नाही चाललंय ना डिपार्टमेंट एवढंच सर्वा दिसत आले कुणावाचून काही अडत नाही सगळेच असे म्हणत आले मनापासून काम करणारे क्वचितच मला समजू शकले नाहीतर पाट्या टाकणारे मलाच नावे ठेवून गेले पहिले कसे बरे होते प्रेम करणारे जुणे होते सहवासातील काही वर्षांतच डिपार्टमेंट घर होत होते काही वर्षे गेली की प्रेम जडते त्यांचे माझ्यावर मी ही फिदा होतो मग माझ्या स्टाफ परिवारावर स्वच्छता, नीटनेटकेपणा सर्व मनापासून असते मग माझे ते...मी त्यांचा आपलेपण येते मग शिकूदेत त्यांनाही इच्छेने एक घरपरिवार होऊदेत सेवेलाही जोर येईल मग सर्व प्रोब्लेम दूर होऊदेत नका बदलू इच्छेविरुद्ध डिपार्टमेंट जोरात चालूदेत काही चुकलं असेलतर नियम अर्थातच लागूदेत मी एक डिपार्टमेंट माझी व्यथा मला मांडूदेत चाललंय ना व्यवस्थीत जिथे तिथे तसंच चालूदेत..सेवेला बळ येऊदेत ✍️काव्यनिश ©nisha Kharatshinde मी एक डिपार्टमेंट
मी एक डिपार्टमेंट
read moreसंगीत कुमार
(प्राणप्रिया) चंचल मन तू चंचला प्रिया। पुष्प-रूपी तू पुष्प लता।। दिव्यस्वरुपनी तू दिव्या प्रिया। चंचल मन तू चंचला प्रिया ।। रमा-रूपी तू कांता प्रिया। हरिप्रिया तू प्राण प्रिया।। श्रृंगार -रूपी तू दारा प्रिया। चंचल मन तू चंचला प्रिया। अपूर्व (तनय) की तू जननी प्रिया। घर की तु पद्मा प्रिया।। उपवन की तू कुसुम प्रिया चंचल मन तू चंचला प्रिया।। आलय की तू वामा प्रिया । सुख-दुख की तू छवि प्रिया।। आँगन की तू आह्लाद प्रिया । चंचल मन तू चंचला प्रिया ।। आकांक्षा की तू मयूख प्रिया। समृद्धि की तू लक्ष्मी प्रिया।। घरनी तू घरवाली प्रिया। चंचल मन तू चंचला प्रिया।। बाग की तू गुल प्रिया। आँगन की तू शोभा प्रिया।। परिवार की तू ऐश्वर्य प्रिया। चंचल मन तू चंचला प्रिया।। ©संगीत कुमार #BirthDay (प्राणप्रिया) चंचल मन तू चंचला प्रिया। पुष्प-रूपी तू पुष्प लता।। दिव्यस्वरुपनी तू दिव्या प्रिया। चंचल मन तू चंचला प्रिया ।। रमा-
#BirthDay (प्राणप्रिया) चंचल मन तू चंचला प्रिया। पुष्प-रूपी तू पुष्प लता।। दिव्यस्वरुपनी तू दिव्या प्रिया। चंचल मन तू चंचला प्रिया ।। रमा-
read moreIG @kavi_neetesh
White चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब पर है। जीवन तो चल रही है यु ही आजकल लोग हों रहें हैं चांद, तारों से दूर जिंदगी जीए जा रहें हैं जैसे कोई हिसाब पर है। शरद की पुर्णिमा तो बरस रही है। कृष्ण से मिलने को राधा तरस रही है। अब न जाने रास क्यों नहीं हो रहा है। दुःख से तड़प रहा इंसान,मानव भगवान से दूर कहीं खो रहा है। इसलिए इंसान रो रहा है। शरद पूर्णिमा की चांद की खुबसूरती जैसे प्रिया मिलन को सजी है। गहरे आकाश के माथे पर बसी कोई दुल्हन की बिंदी है। मंद मंद हवा बह रही है रात शीतल है। पेड़ पौधों के पत्ते डोल रहें हैं। तारों की बारात लेकर शरद की पुर्णिमा की चंद्रमा सुंदर सजी है। शरद पूर्णिमा में मैं बेगाना कवि प्रियसी की याद में रो रहा हूं। कब वो देंगी दर्शन मुझे बस यही चांद को देख सोच रहा हूं। वादियों में आज अजीब सा नशा है। क्यों की इस चांदनी रात में उसकी याद दिल में बसा है। जनम जनम से उसकी ही तलाश है। इस शरद पूर्णिमा में उस प्रभु से मिलन की आस है। ©IG @kavi_neetesh #sunset_time Hinduism प्रेम कविता हिंदी कविता हिंदी दिवस पर कविता देशभक्ति कविताकविता। शरद पूर्णिमा। चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब प
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