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Stories related to किससे

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर आरज़ू भी कहां सुकूं देती, सांस आती है पर नहीं जाती। हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी, कहीं आवाज असर नहीं पाती। यह सफर, यह तमाम रास्ते,

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आरज़ू भी कहां सुकूं देती,
सांस आती है पर नहीं जाती।
हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी,
 आवाज कहीं असर नहीं पाती।

यह सफर, यह तमाम रास्ते,
खुद से मिलने की खबर नहीं लाती।
किससे कहें ये दिल के किस्से,
कोई सुनता है पर नहीं सुन पाती।

आरज़ू और भी बढ़ती जाती है,
मगर मंज़िल की कोई खबर नहीं आती।
हर लम्हा ठहर-सा जाता है,
जैसे सांस चलती, मगर नहीं आती।

किसी मोड़ पर शायद जवाब मिले,
पर सवालों की गूंज थम नहीं पाती।
हमने खुद को भुला दिया है यहां,
और जिंदगी ये समझ नहीं पाती।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
आरज़ू भी कहां सुकूं देती,
सांस आती है पर नहीं जाती।
हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी,
कहीं आवाज असर नहीं पाती।

यह सफर, यह तमाम रास्ते,

theABHAYSINGH_BIPIN

#sad_quotes वर्षों से आग जलती रही, बुझाई नहीं सेज प्यार की हमारी भी सजाई नहीं वक्त ने किस हद तक हाशिए पर रखा हमें, लिखे हजार ख़त, उस तक पहु

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White वर्षों से आग जलती रही, बुझाई नहीं
सेज प्यार की हमारी भी सजाई नहीं
वक्त ने किस हद तक हाशिए पर रखा हमें,
लिखे हजार ख़त, उस तक पहुँचाई नहीं

अफवाहों के किस्से फैलते अखबारों में,
सच्ची कहानी मेरी, कभी सुनाई नहीं 
छुपाकर रखा मुझसे मेरे ही राज़ सारे,
किसी से भी मेरी कभी लड़ाई नहीं 

कितना यकीन था, सब मेरे थे यहाँ,
मेरी आँखों से वो पर्दा हटाई नहीं
उसने भी ढूँढ लिया अकेलेपन की दवा,
किए हजारों वादे, पर कोई निभाई नहीं

किससे शिकायत करूँ, सभी अपने ही थे,
खंजर से भरे हाथ, जो कभी दिखाई नहीं 
कैसे लिखूँ अपने ही मारे जाने की कहानी,
ये राज़, जो खुद से भी बताई नहीं

फैसला कहाँ हुआ, मेरी अर्ज़ियों का,
झूठ से मेरी कभी रिहाई हुई नहीं 
हाशिए पर आकर भी यकीन है मुझे,
अभय, दुनिया से अभी सच्चाई गई नहीं

©theABHAYSINGH_BIPIN #sad_quotes 
वर्षों से आग जलती रही, बुझाई नहीं
सेज प्यार की हमारी भी सजाई नहीं
वक्त ने किस हद तक हाशिए पर रखा हमें,
लिखे हजार ख़त, उस तक पहु

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं, तो किसे इत्येलाह करूं। तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में, खुद से भी गिला करूं। तुम्हीं न समझो मेरा द

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तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं,
तो किसे इत्येलाह करूं।
तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में,
खुद से भी गिला करूं।

तुम्हीं न समझो मेरा दर्द,
तो और किससे वफा करूं।
जो अश्क छुपा रखे हैं पलकों में,
उन्हें कैसे रिहा करूं।

जिन लफ्ज़ों में था तेरा जिक्र,
अब उनका क्या सिलसिला करूं।
तुम्हारी खामोशी है गवाही मेरी,
तो शिकायत किससे भला करूं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं,
तो किसे इत्येलाह करूं।
तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में,
खुद से भी गिला करूं।

तुम्हीं न समझो मेरा द
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