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A J
Mirjapur School of parenting: every parent should watch# 1 मिर्ज़ापुर उस कड़ी का हिस्सा लगती है जहां एक बहुत अच्छी कथा को गुंडो में प्रत्यारोपित करके गाली के इर्द गिर्द बुना जाता है
AK__Alfaaz..
कल प्रातः, भोर भये, महकी-महकी पुरवईया में, सूरज, सिंदूरी किरणों की नदी से, नहाकर निकला, और.., आसमान की सितारों वाली कंघी से, अपने बाल सँवार कर, रौशनी की सुनहरी बूँदें, छिटका दी मेरे आँगन की भूमि पर, कल प्रातः, भोर भये, महकी-महकी पुरवईया में, सूरज, सिंदूरी किरणों की नदी से, नहाकर निकला, और..,
अज्ञात
पेज-88 कृपया कैप्शन में पढ़िए 🙏 ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी पेज-88 मंच के पार्श्व भाग में पंचतत्वों को उकेरा गया है-भूमि गगन वायु अनल नीर.. सबको जोड़ा गया तो एक संयुक्त नाम बना "भगवान
Arsh
तुझे उपमा दूँ तो आखिर किसकी उपमा से भी तू अनुपम अनुपमता में हीं मैं भटका कैसे करूँ , मैं तेरा वर्णन ।। बर्फ के भीतर से रश्मि, छन कर आती वैसा कहूँ बर्फ पर बिछी चाँदनी या चंदा को बिंदिया कहूँ ।। तेरे लहराते आँचल को बादल कहूँ या केशों को मृग सा बना, इधर~उधर मैं तुझको हीं ढूँढा करूँ ।। तुम हीं कहो, तुम कौन हो मेरे सांसों की डोर हो, या ज़िन्दगी का झंकार मेरे मुझ कमल पर सोई शबनम या सागर की तृष्णा कहूँ अलसाई रात की सर्द हवा या प्रेम की ज्वाला कहूँ ।। उपमा:-किसी की तारीफ में कहे जाने वाले शब्द, यथा- मृगनैनी, गजगामिनी आदि। upma #arsh #jewells #gems #love #emotion #feeling #desire #passion #
Sonia Miglani
इतनी मस्त चली पुरबाई। उसपर याद पिया की आई। अँगड़ाई कुछ महक गई तो, कुछ मत कहना कुछ मत कहना------ नई नवेली साँस सुहागिन पग धरती जैसे गजगामिन जागी ऐसी प्यास अभागिन पनघट जान लगी पनिहारिन ऐसे में सर से गर चुनरी सरक गई तो कुछ मत कहना यौवन तक ले आया सावन यौवन में पुलकित स्पंदन देह हुई है कुन्दन चन्दन सारी सृष्टि में अभिनन्दन ऐसे में दर्पण की दृष्टि बहक गई तो कुछ मत कहना गीत ग़ज़ल या कोई रुबाई तुलसी की अदभुत चौपाई मैं जब शब्द शब्द इतराई कलियों ने पहिनी तरुणाई तरुणाई में कोई कली गर चटक गई तो कुछ मत कहना माटी की है कौन सहेली कितनों की संगत है झेली फिर भी इतनी रही अकेली माटी ही माटी से खेली पर इसकी तन्हाई कहीं से दरक गई तो कुछ मत कहना ख़ामोशी सन्नाटे चुपचुप खिड़की सब दरवाज़े चुपचुप नैनों के अंगारे चुपचुप गीत मिलन के सारे चुपचुप ऐसे में साँसों की सरगम दहक गई तो कुछ मत कहना ऐसा पहली बार हुआ है पहला पहला प्यार हुआ है तन्हाई पर बार हुआ है जब सोलह सिंगार हुआ है ऐसे में सोनम की चूड़ी खनक गई तो कुछ मत कहना इतनी मस्त चली पुरबाई। उसपर याद पिया की आई। अँगड़ाई कुछ महक गई तो, कुछ मत कहना कुछ मत कहना------ नई नवेली साँस सुहागिन पग धरती जैसे
रजनीश "स्वच्छंद"
जीवन सार।। लघु-शेष तन्द्रित जीवधारा, अवसान वृहद न किंचित होगा। मूल विहीन, संचय विहीन, शुष्क बाग न तब सिंचित होगा। प्रयत्नशील, शीला-काय प्रण, मूर्छित भी नहीं, विस्मित भी नहीं। दिक-भ्रम रहित अविरल वेगी, लज्जित भी नहीं, कम्पित भी नहीं। सृजन की धारा..... नवसृजित एक पल्लव, अन्तरगर्भ ले रहा आकार है। दलन करने दमन को, मूक हो, ले उठा जयकार है। शुष्क सी बंजर धरा भी, हो मुदित है खिल गई। स्वप्नसज्जित नयन द्वार को, एक दस्तक मिल गई। अश्रुपूरित हैं नेत्र, किंतु, मंगल गान हृदय में फूटता। यज्ञ आहूत हो रहा, मलय गन्ध वायु झूमता। है दीवाली मन रही, आरम्भ से अवसान हारा। आस की ज्योति प्रज्वलित, हुआ जग गुंजायमान सारा। कपट कुत्सित विचार की, होलिका है जल रही। आनंद रस का स्वाद ले, लेखनी है चल रही। सूर्य उदित होने को आतुर, छंट रहा तम बाह्य-अंदर। मन का सूरज आ किनारे, डाल बैठा लौह-लंगर। बनती दिशाएं स्वयं सूचक, किरणें हुईं सहगामिनी। है थिरकती लेखनी, ज्यों मद में चली गजगामिनी। ©रजनीश "स्वछंद" जीवन सार।। लघु-शेष तन्द्रित जीवधारा, अवसान वृहद न किंचित होगा। मूल विहीन, संचय विहीन, शुष्क बाग न तब सिंचित होगा। प्रयत्नशील, शीला-काय प्र
Pnkj Dixit
👰🌷💓💝 तुम इतना भी नादान नहीं हो जितना तुम को समझूं मैं पागल प्रेमी आजाद परिंदा मन की चितवन समझूं मैं तुम मृगनयनी गजगामिनी प्रभात कुमुदिनी मनमोहिनी मन हर्षाती ,हिमकणिका , प्रेम की उत्पत्ति समझूं मैं तुम प्रेम कपोत, कूकती कोयल, प्रेम मरीचिका श्वेत हिम शिखर घुमड़ती बदरी प्रेम सागरिका समझूं मैं प्रियतमा तुम प्राणदायनी हृदयवासिनी जीवन गंगा स्वर्गिक सुख मन की मूरत जीवन संगिनी समझूं मैं ०६/०५/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 👰🌷💓💝 तुम इतना भी नादान नहीं हो जितना तुम को समझूं मैं पागल प्रेमी आजाद परिंदा मन की चितवन समझूं मैं तुम मृगनयनी गजगामिनी प्रभात कुमुदिनी म