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अज्ञात
पेज-25 ज्ञान चक्षु खुलते ही पुष्पा जी-ओये होये.... सु'''''''''धि.. सु,,,,,, धि.. सुधि... जल्दी बाहर निकल..! यहाँ बालकनी में जल्दी आ ना... री... hurry up..! 🤷अर्रे बालकनी क्यूँ नीचे उतर.. फट्टाक से.. सुधा-हे भग्ग.वान.. क्यूँ इत्ता चिचिया रही है सुबह सुबह...! क्या हुआ... मुझे कितना काम है अभी बिलकुल समय नहीं रे पगली...! आटा गूँथ रहीं हूं देख ले... ताऊ जी को भूख लगी है जोर की पुष्पा जी -अर्रे..तेरे ताऊ जी की तो... 😡 अभी समय को मार गोली.. सुन. उधर देख... जल्दी वरना वो मुड़ जायेंगे अगली गली.. सुधा-कौन है..? किसे दिखा रही है.. मुझे तो... sss अच्छा वो तीन लोग जा रहे हैं उन्हें... ! पुष्पाजी -हाँ वही... वही... 🥰🥰 so so so beautiful... हाय हाय हाय.. माशाअल्लाह हाय.. अल्लाह.. !, मैंने इतनी सुंदर लड़की तो जीवन में नहीं देखी.. ओह्हो हो.. आज नजर ना लग जाये बेचारी को मेरी...! तू उतर तो जल्दी रे 😏😏😏😏 सुधा- अर्रे वो तो मुड़ गये.. ! वैसे उन्हें क्यूँ दिखा रही थी क्या बात है.. और इतना हेवी एक्सप्रेशन क्यूँ दे रही है जैसे कुछ चमत्कार देख लिया हो..!🙄 पुष्पा जी-(उन्हें लगा इसको समझाने से कोई फ़ायदा नहीं समय नहीं है अभी इसलिये) - तू फटाफट नीचे उतर जा.. और राखी , दिव्या को भी आवाज़ दे ज़रा... अर्रे तू रूक तेरी आवाज़ तो तुझे ही सुनाई नहीं देगी मैं दहाड़ ss मेरा मतलब मैं चिल्ला.. मतलब बुलाती हूं.... अरे राखी जी .. ओ री राखी...जी. . ! अरि दिव्या.. बेटा दिव्या... ओ प्रिया प्रिया ओ प्रिया... ! जल्दी निकलो री घर से बाहर जल्दी.. सुनो री... पगलुओं..! (आवाज़ की दहशत और चेतावनी ऐसी कि हाथों का काम छोड़कर त्रिदेवियाँ दौड़कर गेट के बाहर... राखी जी -अरे क्या हुआ पुष्पा जी.. क्यूँ चीख रही हो..? पेज-26 ©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी पेज-25 ज्ञान चक्षु खुलते ही पुष्पा जी-ओये होये.... सु'''''''''धि.. सु,,,,,, धि.. सुधि... जल्दी बाहर निकल..! यहाँ बालकनी मे
अज्ञात
पेज-2 ------------ लेखक यहाँ से अपना परिचय कथाकार के रूप कराते हुये मुख्य द्वार से होते हुये पहले फ्लेट तक पहुंचा जहाँ विशाल जी मॉर्निंग वॉक के लिये अपने गेट से बाहर निकल रहे हैं और उनके घर के सामने ही उनके प्रिय मित्र नौसाद साहब को साथ चलने के लिये आवाज़ दे रहे हैं.."अर्रे जॉनी जल्दी करो भाई लेट हो रहा है"- ये शब्द साफ साफ कथाकार के कानों में पड़ते हैं,.. कथाकार आगे बढ़ चला, अभी कुछ दरवाज़े निद्रामग्न हैं,कथाकार के कदमों के साथ निगाहें हर फ्लेट की ओर बढ़ते जा रही हैं कि तब तक सुधा का घर आ चुका। घर का दरवाजा खुला है.. सुधा प्रातः स्नान करके हाथों में पूजन थाल लिये मंदिर जाने को घर से निकल रहे हैं.. उनके फ्लेट के बगल में उनकी लाड़ली बहना दिव्या का फ्लेट है.. सुधा के फ्लेट के ठीक सामने उनकी प्राणप्यारी सखी पुष्पा जी का फ्लेट है किन्तु अभी उनके घर पर ताला लगा हुआ दिखाई दे रहा है कदाचित वो अपने परिवार सहित कहीं भ्रमण पर हैं, यहाँ सुधा ने दिव्या को आवाज़ दी तब तक दिव्या अपने गेट में सुधा दी के साथ मंदिर जाने को तैयार खड़ी थी.. दोनों एक साथ मंदिर को चलीं.. कुछ कदम चलते ही अंशुला भी साथ हो ली... ज्यों ही तीनों एक साथ मंदिर को चले त्यों ही कथाकार को लगा मानो रत्नाकर कालोनी में सूरज की पहली किरण के साथ ही त्रिदेवियाँ एक साथ मंदिर को प्रस्थान कर रहीं हैं सर्वश्रृंगार से सुसज्जित तीनों के पदचाप से नूपुरध्वनि जिस ओर बढ़ते जाती उस दिशा के बंद दरवाज़े अब खुलते जाते... दिव्या सुधा और अंशुला तीनों मानो अपनी कालोनी के सुख समृद्धि की मंगलकामना लिये ईश्वर के द्वार जा रही हों...और शायद यही उनका नित्यधर्म बन चुका था...! कथाकार के प्रयास सार्थकता की ओर बढ़ते हुये प्रतीत हुये सो, कथाकार मंद मंद मुस्कुराते हुये आगे बढ़ चला अब आगे-3 ©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी पेज-2.. लेखक यहाँ से अपना परिचय कथाकार के रूप कराते हुये मुख्य द्वार से होते हुये पहले फ्लेट तक पहुंचा जहाँ विशाल जी मॉर्