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राघव_रमण (R.J)..

ज' कही हम मिथिला घुमब पिया घुमायब कोना अहां से त' कहु।। षड्दर्शन के टीका जतय सं निकलय वेद वेदांग के धुन जतय सं बहय ज' कही हम एकरा पढवै पिय #कविता

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ज' कही हम मिथिला घुमब पिया
घुमायब कोना अहां से त' कहु।।

षड्दर्शन के टीका जतय सं निकलय
वेद वेदांग के धुन जतय सं बहय 
ज' कही हम एकरा पढवै पिया
पढायब कोना अहां से त' कहु।।

टाट तिलकोर सीम भरल छल जतय
चार पर सजमैन आ कदीमा फरल
ज' कही हम ई सब खायब पिया
खुआयब कोना अहां से त' कहु।।

भोर पराती गावैत मैया उठल
दिन नचारी सुनावैत देव पुजल
ज' कही हम ई सब सीखब पिया
सीखायब कोना अहां से त' कहु।।

सब मिलि क रहैत छल एकहि आंगन
माय बाबु के पूजैत चरण पावन
ज' कही हम संगहि पूजब पिया
पूजायब कोना अहां से त' कहु।

आब बदलि गेल देखु अपन मिथिला
संस्कार बदलल भेल अबला 
मातृभाषा अपन पूत बाजत पिया
बजायब कोना अहां से त' कहु।।

ज' कही हम मिथिला घुमब पिया 
घुमायब कोना अहां से त' कहु।।

                                        © राघव रमण 
                                                  28/11/19 ज' कही हम मिथिला घुमब पिया
घुमायब कोना अहां से त' कहु।।

षड्दर्शन के टीका जतय सं निकलय
वेद वेदांग के धुन जतय सं बहय 
ज' कही हम एकरा पढवै पिय

Divyanshu Pathak

4. देवी कूष्मांडा और संख्या - षष्ठ ( 6 ) --------------------------------- माता शैलपुत्री (9) आरम्भ से अनन्त, ब्रह्मचारिणी (8) अंक से जीवन क #yqdidi #yqquotes #नवरात्रि #पाठकपुराण

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4. देवी कूष्मांडा और संख्या - षष्ठ ( 6 )
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माता शैलपुत्री (9) आरम्भ से अनन्त, ब्रह्मचारिणी (8) अंक से जीवन का पोषण , माता चन्द्रघण्टा (7) से सृष्टि के कौतूहल और चमत्कारों के रुप में दर्शन कर चुके हैं। आज देवी दर्शन का चौथा दिन है दुर्गे मैया के चौथे स्वरूप को कूष्मांडा कहते हैं।वे ऋतुओं की स्वामिनी हैं और हमारे देश की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहाँ 6 ऋतुयें होती हैं। ऋतुओं के अनुसार मुख्य फ़सल भी 6 ही हैं। सनातन परंपरा के अनुसार शास्त्रों को षड्दर्शन ( सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व-मीमांसा और उत्तर मीमांसा ) कहते हैं। भगवान सूर्य की उपासना भी छठ को की जाती है। शिशु को प्रथम बार दुग्धपान छठवें दिन कराया जाता है।छठी का दूध याद दिलाने का तात्पर्य भी यही है। हमारे शरीर में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास छठी इन्द्रिय से ही होता है। हीरे की आकृति भी षट्कोण वलय होती है। इंद्र के वज्र में भी 6 कोण हैं।योग और उपासना में भी षट्चक्रों ( मूलाधर, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा ) का विशेष महत्व है। भ्रमर 6 पाँव होने के कारण षडपद कहलाते हैं। साहित्यिक  कृतियों में 6 पदों वाले छंद (गीत-छंद) का ख़ास स्थान हैं। तो आओ माता कूष्मांडा के साक्षात दर्शन करते हैं।
कैप्शन पढ़ें---- 4. देवी कूष्मांडा और संख्या - षष्ठ ( 6 )
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माता शैलपुत्री (9) आरम्भ से अनन्त, ब्रह्मचारिणी (8) अंक से जीवन क
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