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Sangeeta Kalbhor
Red sands and spectacular sandstone rock formations एकाग्र होकर प्रयास करो.. एकाग्र होकर प्रयास करो सफलता कदम चुमेगी कबतक रहेगी मंजिल दूर खुद होकर मिलने आयेगी रहना ना मगर गाफिल तुम पल पल की खबर लेते रहना स्वयं का साथी स्वयं बनकर हौसला ,बल खुद ही देते रहना नजर होगी लक्ष्य पर तो परिश्रम से हिम्मत ना थक पायेगी कबतक रहेगी मंजिल दूर खुद होकर मिलने आयेगी सुबह शाम ना देखा करो ना देखो तिज त्यौहार को अनुभूति ही समझ लेना सफलता से पहले वार को फूंकफूंकर रखना पग बहारे भी मंगल गीत गायेंगी कबतक रहेगी मंजिल दूर खुद होकर मिलने आयेगी खुद होकर मिलने आयेगी..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #Sands एकाग्र होकर प्रयास करो सफलता कदम चुमेगी कबतक रहेगी मंजिल दूर खुद होकर मिलने आयेगी रहना ना मगर गाफिल तुम पल पल की खबर लेते रहना स्वयं
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
के हिज्र ए जहन में बिखरी है तेरी यादें इस कदर, ये शेर,ये नज़्म,ये अशआर,ये गजल इस कदर//१ इनमे से कोई तो मेरी रू दाद को आ जाए,ये मंच, ये समात,ये एहबाब,ये महफिल इस कदर//२ तू आए तो सही तुझे हरफों में पिरोकर,तरन्नुम में पढ़ दूं, ये जुदाई,ये तड़प,ये गफलते गाफिल इस कदर//३ अब भी उस गाफिल के वस्ल को मुंतजिर है,ये आलुदा चश्म,ये अश्क,ये आह,ये इश्के विसाल इस कदर//४ "शमा"इश्क के मसीहा से रंजीदा है बहुत,की है अब तक ये आजिजी,ये इसरारी ये मिन्नते,मुसलसल इस कदर//५ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #landscape के हिज्र ए जहन में बिखरी है तेरी यादें इस कदर,ये शेर,ये नज़्म,ये अशआर,ये गजल इस कदर//१ इनमे से कोई तो मेरी रू दाद को आ जाए,ये म
Azhar Azad Khan
मलाल नही के वो अरसे के बाद हाल-चाल लेता है, दुख इस बात का है मैं कहता हूं ठीक हूं और वो मान लेता है। ©Azhar Azad Khan #chaandsifarish #गाफिल सनम
सुसि ग़ाफ़िल
" बहुत शिकायतें लेकर बैठ गई है जिंदगी जिंदगी है कि हमें बता रही है कि तुम जहां चले हो वहां काबिल नहीं हो मैं चला था मैं रुका था मुझे सब याद है आखिर में बीमार था लगता है कोई फरियाद है " " बहुत शिकायतें लेकर बैठ गई है जिंदगी जिंदगी है कि हमें बता रही है कि तुम जहां चले हो वहां काबिल नहीं हो मैं चला था मैं रुका था मुझे सब याद
सुसि ग़ाफ़िल
हाल जो हमारा नहीं पूछा हाल अब और भी अच्छा ही हुआ... हाल जो हमारा नहीं पूछा हाल अब और भी अच्छा ही हुआ रहने को तो रहते हैं हम भी ताक में कि पूछो हमसे भी तबीयत तुम मगर तुम अपने हाल से ना निकल
सुसि ग़ाफ़िल
कविताओं में नहीं समा पाया कोई भी कवि एक शहीद की अस्थियां सुख याद सब गाफिल हुए कविता बंजर हुई नहीं उगा पाई दोबारा एक सैनिक को | कविताओं में नहीं समा पाई कोई भी कवि एक शहीद की अस्थियां सुख याद सब गाफिल हुए कविता बंजर हुई
सुसि ग़ाफ़िल
एक बार एक घड़ी सजना तुम काम करना देख कर मेरा चेहरा खुदा को सलाम करना | मांगा है तुम को हर दुआ की चुप्पी में गर कभी मैं चुप रहा हूं तो मेरा मान करना | काली - काली रातों में दबे हुए जज्बातों में ना हो सके कभी गुफ्तगू तो गुणगान करना | गर हम मिले कभी श्रीगंगा घाट के किनारे नजरें मत झुकाना तुम यह एहसान करना | बंजर पड़ी छाती का जब तुम सजदा करोगे चलाना पोरें फूलों की नींव तैयार नाम करना | चूमना तुम भी मेरा माथा बारीकी से और मन में सिमरन - ए - भगवान करना | सुशील की आंखें नशीली और तासीर गाफिल तेरे आंचली इत्र से गफलत को हराम करना | अगर उठें कभी किसी बिस्तर से सोकर हम उन बिस्तरों को आयतों का अता नाम करना | मेरी रूह में नहीं है खींचातानी के फरमान तेरे हिस्से का थोड़ा सा अमृत मेरे नाम करना | एक बार एक घड़ी सजना तुम काम करना देख कर मेरा चेहरा खुदा को सलाम करना | मांगा है तुम को हर दुआ की चुप्पी में गर कभी मैं चुप रहा हूं त
सुसि ग़ाफ़िल
मैं लंबे अरसे से गाफिल रहा हूं तुम भूलना मत मुझे कुरेदना जगाना उठाना जख्मों की गहरी नींद से मैं भी चाहता हूं गफलत की दुनिया से उठकर तेरा माथा चूमना यह सब तेरे होने से ही मुमकिन है | मैं लंबे अरसे से गाफिल रहा हूं तुम भूलना मत मुझे कुरेदना जगाना उठाना जख्मों की गहरी नींद से
सुसि ग़ाफ़िल
एक सहमा-सा माहौल बन जाता है शाम आते आते | मुझे अंदर ही अंदर डर लगने लगता है शाम आते आते | मैं बेवकूफ हूं इतना मुझे दर्द होता है फिर भी गाफिल हो जाता हूं शाम आते आते | दिन भर रहता हूं दुनिया में मुझे मालूम पड़ जाता है कुछ नहीं है मेरे पास शाम आते आते | " सुशील " वो फूल बन जाता है प्रसाद का जो सुबह चढ़ाया था मंदिर में फेंक दिया जाता है बाहर शाम आते आते | संकुचित हो जाता हूं ये महसूस करके जो चाहा है वो मुझे मिलेगा देर रात आते आते | एक सहमा-सा माहौल बन जाता है शाम आते आते | मुझे अंदर ही अंदर डर लगने लगता है शाम आते आते |